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क्या राजस्थान से गायब हो जाएगा रेगिस्तान?:साइंटिस्ट बोले- हिंद महासागर बना रहा पश्चिमी क्षेत्रों को हरा-भरा, अगले 90 सालों में नहीं रहेगा रेगिस्तान

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क्या राजस्थान से गायब हो जाएगा रेगिस्तान?:साइंटिस्ट बोले- हिंद महासागर बना रहा पश्चिमी क्षेत्रों को हरा-भरा, अगले 90 सालों में नहीं रहेगा रेगिस्तान

जयपुर

क्या राजस्थान में हजारों वर्ष पुराना थार का रेगिस्तान गायब होने वाला है? क्या रेत के धोरों की जगह हरे-भरे पेड़ दिखाई देंगे? इन सवालों का जवाब है- हां।

दुनिया भर के कई वैज्ञानिकों ने अलग-अलग रिसर्च में इसका खुलासा किया है। रिसर्च के अनुसार, अगले 90 से 100 वर्ष के बीच पश्चिमी राजस्थान का रेगिस्तान खत्म हो जाएगा। पश्चिमी राजस्थान फिर से 4 हजार साल पहले जैसा बन जाएगा। एकदम हरा-भरा।

आज विश्व जैव विविधता दिवस (22 मई) के मौके पर दिल्ली में राजस्थान के रेगिस्तान की इस बदलती तस्वीर को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार भी भारत और अमेरिका के विभिन्र वैज्ञानिक शोध संस्थानों की ओर से हो रही है। इस सेमिनार में भारत के टेरी (दी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज) के चीफ साइंटिस्ट और आयुष मंत्रालय के प्रोफेसर डॉ. दीप नारायण पांडे थार के रेगिस्तान में हो रहे बदलावों पर शोध पत्र पढ़ेंगे। डॉ. पांडे थार के रेगिस्तान और अरावली पर कई पुस्तकें व लेख भी लिख चुके हैं। इस अ‌वसर पर साइंटिस्ट डॉ. दीप नारायण पांडे से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है उस बातचीत के प्रमुख अंश।

डॉ. दीप नारायण पांडे राजस्थान में आईएफएस अधिकारी रहे हैं और थार के रेगिस्तान और अरावली के पहाड़ी वन क्षेत्रों पर पुस्तकें लिख चुके हैं।

डॉ. दीप नारायण पांडे राजस्थान में आईएफएस अधिकारी रहे हैं और थार के रेगिस्तान और अरावली के पहाड़ी वन क्षेत्रों पर पुस्तकें लिख चुके हैं।

थार के रेगिस्तान के गायब हो जाने की कितनी संभावनाएं हैं?

डॉ. दीप नारायण पांडे : धरती पर विभिन्न जलवायु और पर्यावरण संबंधी परिवर्तनों के चलते समुद्र, पहाड़, वन, रेगिस्तान, नदियों आदि में व्यापक परिवर्तन होते रहते हैं। पहले भी हुए हैं। ऐसे ही परिवर्तनों के कारण थार का रेगिस्तान भी अब करीब 90-100 सालों में रेगिस्तान नहीं रहेगा। यह पूर्वी राजस्थान की ही तरह हरा-भरा हो जाएगा।

रेगिस्तान के हरियाली क्षेत्र में बदलने के कारण क्या हैं ?

डॉ. दीप नारायण पांडे : मूल कारण मानसून के पैटर्न में हुआ बदलाव है। हिंद महासागर और अरब सागर से उठने वाला मानसून अब तक पूर्वी राजस्थान पर ही ज्यादा मेहरबान होता था। पश्चिमी राजस्थान पर नहीं। बल्कि पश्चिमी भारत के एक बड़े हिस्से गुजरात के कच्छ, राजस्थान के थार, पाकिस्तान के थार और हरियाणा-पंजाब के दक्षिणी हिस्से में बारिश बहुत कम होती रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी राजस्थान में हर वर्ष औसत बारिश बढ़ रही है। बाड़मेर, जोधपुर, जालोर, सिरोही, पाली जैसे इलाकों में बाढ़ के हालात बने हैं। पिछले वर्ष 2023 में ही बिपरजॉय तूफान ने इस इलाके में कहर बरपाया था। गुजरात व पाकिस्तान में भी इसका असर रहा था।

पिछले दो दशक में पश्चिमी राजस्थान के किसी न किसी इलाके में भारी बारिश, तूफान और चक्रवात के बाद इस तरह के नजारे अब आम होते जा रहे हैं।

पिछले दो दशक में पश्चिमी राजस्थान के किसी न किसी इलाके में भारी बारिश, तूफान और चक्रवात के बाद इस तरह के नजारे अब आम होते जा रहे हैं।

रेगिस्तान के गायब होने के और कोई कारण?

डॉ. दीप नारायण पांडे : इसके दो बड़े कारण और भी हैं। पहला खेती-किसानी और दूसरा बड़े पैमाने पर पौधारोपण। इंदिरा गांधी नहर पश्चिमी राजस्थान में आई तो लोग वहां खेती करने लगे। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ हरियाली वाले इलाकों में तब्दील हो ही चुके हैं। अब ऐसा ही परिवर्तन जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर जैसे इलाकों में भी दिखाई दे रहा है। पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते वन विभाग, विभिन्न सरकारी-गैर सरकारी संगठन और लोग पिछले कुछ दशकों में करोड़ों पेड़ थार मरुस्थल में लगा चुके हैं। इसका भी असर होने लगा है।

यह भी संयोग है कि दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तान सहारा (अफ्रीका) का प्रतिवर्ष विस्तार हो रहा है, लेकिन थार विस्तार पाने के बजाय सिकुड़ रहा है।

क्या इसे प्रकृति का पॉजिटिव संकेत माना जाए?

डॉ. दीप नारायण पांडे : बिल्कुल, यह पॉजिटिव संकेत ही है। हमें अभी से सरकार के स्तर पर भी और समाज के स्तर पर भी तैयारी करनी चाहिए। इस पूरे इलाके में बारिश के पानी को सहेजने, नदियों, तालाबों, झीलों, नाड़ियों को संभालने पर काम किया जाना चाहिए, ताकि हरियाली आने में तेजी आए। प्रकृति अपना काम कर रही है। हमें भी उसके साथ कदमताल कर बेहतर पहल करनी चाहिए।

क्या थार का रेगिस्तान 3500-4000 साल पहले हरा-भरा था?

डॉ. दीप नारायण पांडे : हां, बिल्कुल…करीब 3500-4000 वर्ष पहले और उससे भी 10 हजार साल पहले के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि यह इलाका हरा-भरा था। इसी कालखंड में गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और पाकिस्तान के इलाकों में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।

लोथल, पीलीबंगा, कालीबंगा, आहड़, धोलावीरा, राखीगढ़ी, मोहनजोदड़ो सभी इसी इलाके में पनपी थीं। उस दौर में इस क्षेत्र में मानसून की सक्रियता ज्यादा थी। बाद के समय में मानसून पूर्व की तरफ खिसकता चला गया और यह क्षेत्र धीरे-धीरे सूखे व रेतीले इलाके में तब्दील हो गया। अब मानसून वापस पश्चिमी क्षेत्र की तरफ ज्यादा बारिश ला रहा है।

क्या थार के रेगिस्तान की हरियाली बढ़ोतरी इंदिरा गांधी नहर के कारण भी हो रही है?

डॉ. दीप नारायण पांडे : हां, वह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। हालांकि वो मनुष्य निर्मित व्यवस्था है। नहर का पानी आया है, तो खेती-किसानी जाहिर तौर से बढ़ी है। अब दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान में भी नहर का पानी पहुंच रहा है, तो वहां भी परिवर्तन दिखने लगा है।

इंदिरा गांधी नहर परियोजना को राजस्थान की गंगा भी कहा जाता है। इस नहर से एक बहुत बड़ा इलाका पहले ही रेगिस्तान से हरे-भरे क्षेत्र में तब्दील हो चुका है।

इंदिरा गांधी नहर परियोजना को राजस्थान की गंगा भी कहा जाता है। इस नहर से एक बहुत बड़ा इलाका पहले ही रेगिस्तान से हरे-भरे क्षेत्र में तब्दील हो चुका है।

पहले तो वैज्ञानिकों द्वारा यह चिंता जताई जा रही थी कि थार का रेगिस्तान पूर्वी राजस्थान की तरफ बढ़ रहा है, अवैध खनन से अरावली की दीवार ध्वस्त हो रही है, अब यह नया बदलाव कैसे आ रहा है?

डॉ. दीप नारायण पांडे : अवैध खनन के अलग नुकसान हैं। अरावली एक प्राकृतिक दीवार है जो रेगिस्तान का प्रसार रोकती है। इसका अर्थ है कि अरावली ने देश के हरे-भरे, पहाड़ी इलाकों को रेगिस्तान बनाने से रोका हुआ है। अब मानसून पैटर्न के कारण रेगिस्तान में भी हरियाली हो रही है, तो अच्छी बात है। अरावली को भी बचाना बहुत जरूरी है वो प्रकृति का अहम हिस्सा है।

हिंद महासागर हो रहा है गर्म, थार को मिल रहा फायदा

डॉ. दीप नारायण पांडे बताते हैं, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से हिंद महासागर लगातार गर्म हो रहा है। इस स्थिति को वैज्ञानिकों ने इंडियन ओशियन वार्म पूल (आईओडब्ल्युपी) नाम दिया है। इसी वार्म पूल के कारण से हिंद महासागर के एक हिस्से अरब सागर से उठने वाला मानसून पश्चिम क्षेत्रों की तरफ ज्यादा जा रहा है।

इसके चलते राजस्थान और गुजरात देश के दो ऐसे राज्य हैं, जहां पिछले दशकों में सामान्य से ज्यादा बरसात हुई है। इन्हीं दोनों राज्यों में थार का रेगिस्तान फैला हुआ है। देश में गुजरात और राजस्थान में सामान्य से 80 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है। इन दो राज्यों के बाद हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना का नंबर है जहां क्रमश: 63 और 62 प्रतिशत तक ज्यादा बारिश हुई है।

अनार की यह लकदक खेती बाड़मेर में हो रही है। बाड़मेर देश के मानचित्र पर अनार की खेती के महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में उभर रहा है।

अनार की यह लकदक खेती बाड़मेर में हो रही है। बाड़मेर देश के मानचित्र पर अनार की खेती के महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में उभर रहा है।

क्या और कैसे बदलाव हो रहे हैं राजस्थान की जलवायु में

  • इंडिया मेटीरियोलॉजिकल डिपार्टमेंट (आईएमडी-मौसम विभाग ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1961 से 2010 और 1971 से 2020 के बीच अलग-अलग 50 सालों में राज्यों में बरसात के आंकड़े बदले हैं। जिन राज्यों में बरसात का ट्रेंड सबसे ज्यादा और तेजी से बदला है, उनमें राजस्थान भी शामिल है।
  • बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर, पाली, जालोर, सिरोही, जोधपुर जैसे इलाकों में अब पिछले दो दशक में अनार, अमरूद, सीताफल, अंगूर जैसे फलों, मेथी, जीरा, मिर्ची जैसे मसालों के साथ-साथ सब्जियों में पालक, गेहूं, गोभी, मटर, आलू, टमाटर, मिर्च, बैंगन आदि की खेती भी काफी बढ़ गई है।
  • राजस्थान में पिछले दो-तीन दशक में पश्चिमी क्षेत्र (थार) और पूर्वी क्षेत्र (अरावली) में बारिश क्रमश: 32 और 14 प्रतिशत बढ़ी है। वर्ष 2020 से 2049 के बीच राजस्थान के पश्चिमी इलाके में 20 से 35 प्रतिशत तक बारिश में बढ़ोतरी होगी। वहीं पूर्वी इलाके में यह बढ़ोतरी 5 से 20 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना है।
  • राजस्थान के पश्चिमी इलाके में स्थित जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर, पाली, नागौर, जालोर, सिरोही, श्रीगंगानगर आदि जिलों का तापमान अधिकतम 45 से 47 डिग्री के बीच रहने लगा है, जो पूर्वी राजस्थान के हरे-भरे जिलों के बराबर ही है।
  • पिछले दो दशक से लगातार जुलाई से सितंबर के बीच जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, पाली, सिरोही आदि इलाकों में कहीं न कहीं बाढ़ जैसे हालात जरूर बनते हैं।
  • 1961 से 2010 के बीच 50 साल में राजस्थान में औसत बरसात 414 एमएम हुई थी। वहीं साल 1971 से 2020 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 435 एमएम हो गया है। जिन जिलों में सबसे कम बारिश होती थी, वहां अब सबसे ज्यादा बारिश हो रही है। पिछले एक दशक में पश्चिमी राजस्थान में ज्यादा पानी बरसा है।

पश्चिमी राजस्थान पर मेहरबान रहा है मानसून

  • 2022 में अपने निर्धारित आंकड़े से पूर्वी राजस्थान में जहां 25 प्रतिशत ज्यादा बरसात हुई। वहीं पश्चिमी राजस्थान में यह 58 प्रतिशत ज्यादा रहा।
  • वर्ष 2021 में पूर्वी राजस्थान में 16 तो पश्चिमी राजस्थान में 20 प्रतिशत ज्यादा।
  • 2020 में पूर्वी राजस्थान में जहां माइनस 2 प्रतिशत बरसात हुई। वहीं पश्चिमी राजस्थान में यह 21 प्रतिशत ज्यादा रहा।
  • 2017 में पूर्वी राजस्थान में निर्धारित आंकड़े से माइनस 8 प्रतिशत बरसात हुई, यानी कम पानी बरसा। वहीं पश्चिमी राजस्थान में यह 39 प्रतिशत ज्यादा पानी बरसा।
  • 2015 में भी इसी तरह पूर्वी राजस्थान में माइनस 10 प्रतिशत बारिश हुई। वहीं पश्चिमी राजस्थान में 45 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई।

भारत से पाकिस्तान तक फैला है थार का रेगिस्तान

थार का रेगिस्तान लगभग 2 लाख वर्गकिलोमीटर में फैला हुआ है। इसका लगभग 1 लाख 22 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र राजस्थान में है। इसे ग्रेट इंडियन डेजर्ट भी कहा जाता है। थार रेगिस्तान का 85 प्रतिशत हिस्सा भारत और 15 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में आता है। इसका करीब 61 प्रतिशत रेगिस्तान राजस्थान में है। कच्छ का रण भी थार डेजर्ट का ही हिस्सा माना जाता है।

राजस्थान के कई जिले थार क्षेत्र में आते हैं। इसमें जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़, सीकर, पाली, जालोर, सिरोही, नागौर, चूरू, झुंझुनूं, बाड़मेर, जयपुर, अजमेर, दौसा आदि शामिल हैं।

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