अदालत की अवमानना से जुड़ी शक्ति जजों को आलोचना से बचाने के लिए नहीं…CJI चंद्रचूड़ ने समझाया कंटेंप्ट का मतलब
CJI on Contempt of Court : जस्टिस चंद्रचूड़ पिछले साल 9 नवंबर को सीजेआई बने थे। उनके कार्यकाल का एक साल पूरा हो चुका है। इस मौके पर हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए खास इंटरव्यू में उन्होंने तमाम मुद्दों पर अपनी बात रखी।
हाइलाइट्स
- सीजेआई चंद्रचूड़ के कार्यकाल के एक साल हुए पूरे
- अभी एक साल से ज्यादा का बचा है उनका कार्यकाल
- टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस मौके पर सीजेआई से की खास बातचीत
नई दिल्ली : अदालतों के पास उसके अपमान या उसकी अवमानना की सूरत में सजा देने और दंडित करने का अधिकार होता है। अदालत के पास अवमानना से जुड़ीं शक्तियों की काफी आलोचना भी होती है और लोगों में इसे लेकर डर भी बना रहता है। तो क्या कंटेंप्ट पावर जजों को आलोचना से परे बना देता है? हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए खास इंटरव्यू में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अवमानना से जुड़ी शक्तियों पर तस्वीर साफ की है। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य जजों को आलोचना से बचाने के लिए नहीं बल्कि अदालतों की तरफ से न्याय करने की प्रक्रिया में किसी व्यक्ति के दखल को रोकना है।
सीजेआई के तौर पर अपने कार्यकाल का एक साल पूरा होने पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ न्यायपालिका से जुड़े तमाम मसलों और कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट में 23 साल से ज्यादा वक्त तक जज रहने के अनुभव पर बातचीत की। जस्टिस चंद्रचूड़ पिछले साल 9 नवंबर को सीजेआई बने थे और वह अभी एक साल से ज्यादा वक्त तक इस पद पर बने रहेंगे।
उनसे पूछा गया कि क्या सोशल मीडिया के इस युग में अदालतों की अवमानना से जुड़े कानूनों पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है क्योंकि लोगों के मन में जो कुछ भी आता है, वह कह देते हैं और इस दौरान तनिक भी नहीं सोचते कि इससे किसी व्यक्ति या संस्था की गरिमा, प्रतिष्ठा और सार्वजनिक जीवन को नुकसान पहुंचता है। इसके जवाब में सीजेआई ने कहा, ‘अदालत की अवमानना पर दंडित करने की शक्ति इसलिए मौजूद है कि लोगों को अदालतों के कामकाज में दखल देने से रोका जा सके, न कि इसलिए कि जजों की प्रतिष्ठा बचाई जा सके। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी कोर्ट ऑर्डर का अपमान कर रहा है या कोर्ट में हंगामा करता है या कार्यवाही को होने से रोकता है तो ऐसा व्यक्ति अवमानना कर रहा है।’
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि कंटेंप्ट पावर जजों को आलोचना से बचाने के लिए नहीं होती। उन्होंने कहा, ‘लेकिन मेरा मानना है कि कोर्ट की कंटेंप्ट पावर का इस्तेमाल जजों को आलोचना से बचाने के लिए नहीं होना चाहिए। जजों और अदालतों की प्रतिष्ठा कंटेंप्ट के लिए दोषी ठहराए जाने के भय पर नहीं टिकी होनी चाहिए। यह जज के कामकाज और उसके फैसलों पर अधारित होनी चाहिए।’
सोशल मीडिया पर जजों की आलोचना और उनसे जोड़कर किए जाने वाले फर्जी दावों की ओर इशारा करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘यह सच है कि सोशल मीडिया के दौर में लोगों के संवाद पर कोई अंकुश नहीं है। मैंने खुद अपने डीपफेक या फर्जी आर्टिकल्स देखें हैं जिसमें मेरे हवाले से उन बातों का दावा किया जाता है जो मैंने कभी कही ही नहीं होती है। हालांकि, मेरा मानना है कि इंटरनेट पर मौजूद ऐसे हर झूढ या गुमराह करने वाले पोस्ट को टारगेट करना और कार्रवाई करना न सिर्फ बेकार है, बल्कि ध्यान भटकाने वाला भी है। हां, अगर कोई पोस्ट बहुप्रचारित हो जाए और उससे न्यायिक प्रक्रियाओं को खतरा हो जाए तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए।’
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