इमरान को जेल में डालकर लंदन से नया दूल्हा लाई आर्मी! क्या नवाज की वापसी से पाकिस्तान में कुछ बदलेगा?
PML(N) Leader Nawaz Sharif Returned Pakistan : पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की राजनीति के मैदान में वापसी इस सच्चाई को नहीं बदल पाएगी कि 2024 के चुनाव के बाद गठित किसी भी सरकार पर सेना का दमघोंटू कब्जा होगा। हां, यह संभव है कि नवाज शरीफ ही पाकिस्तान की नई सरकार का नेतृत्व करें।
पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में रंग भरने के लिए नवाज शरीफ का पिछले शनिवार को लाहौर आगमन हुआ, लेकिन इससे वहां की राजनीतिक हालात में कोई बदलाव हो जाए, इसकी गुंजाइश नहीं के बराबर है। नवाज ने चार साल पहले भ्रष्टाचार के दो मामलों में जेल की सजा अधूरी छोड़कर लंदन में चार सप्ताह के इलाज के लिए अदियाला जेल से निकले थे। सेना ने उन्हें 2017 में पीएम के पद से हटाया था। तब से रावी नदी में बहुत पानी बह चुका है। उनके देश ने उनके बाद पांच पीएम देखे हैं। पार्टी में उनके जूनियर शाहिद खाकान अब्बासी 2017 में उनकी जगह पीएम बने थे। फिर 2018 में हुए एक फिक्स्ड इलेक्शन में सेना ने इमरान खान को पीएम की गद्दी पर लाया।
जब इमरान पाकिस्तान की सेना के साथ तनातनी हो गई तो अप्रैल 2022 में उनसे कुर्सी छीनकर एक गठबंधन सरकार बना दी गई जिसका नेतृत्व नवाज के भाई शहबाज शरीफ ने किया था। फिर अगस्त 2023 में एक कार्यवाहक सरकार ने शरीफ की जगह ली। इस कार्यवाहक सरकार की अध्यक्षता सेना की तरफ से प्लांटेड अनवारुल ककर कर रहे हैं जिन्हें देश में चुनाव करवाने का जिम्मा दिया गया। उम्मीद की जा रही है कि 2024 की शुरुआत में पाकिस्तान में संघीय चुनाव हो जाएंगे। अधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन उस सेना प्रमुख के छह वर्ष के शासन का अंत था जिसने नवाज का रास्ता आसान बना दिया था। एक साल पहले जनरल असीम मुनीर ने जनरल बाजवा की जगह ली और तेजी से राजनीतिक सत्ता को मजबूत किया। इस बीच, देश की अर्थव्यवस्था नए निचले स्तर पर आ गई है।
सेना की सर्वोच्चता पर सवाल उठाने के लिए दंडित नवाज शरीफ को पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा डिजाइन किए गए ‘माइनस-नवाज’ फॉर्मूले के तहत हटा दिया गया था। इस फॉर्मूले में पीएमएल-एन को अपना संसदीय कार्यकाल पूरा करने की अनुमति मिली थी, लेकिन इस शर्त के साथ कि नवाज पूरे सीन से गायब हो जाएं। उनके सामने जेल या देश छोड़ने (निर्वासन) का विकल्प दिया गया था। वो अब एक ‘लेवल प्लेइंग फील्ड’ में लौट चुके हैं। उनके खिलाफ कानूनी मामले हटा दिए गए हैं और कट्टर प्रतिद्वंद्वी इमरान खान जेल में है। पीटीआई और पूर्व सहयोगी पीपीपी, दोनों ही उस ‘गुप्त सौदे’ पर बिलख-बिलख कर रो रहे हैं। समझौते में कानूनी रूप से भगोड़े नवाज को ‘जेल की जगह जमानत’ मिल गई है।
लाहौर में मिनार-ए-पाकिस्तान के पास एक लाख लोगों की मौजूदगी में हुई घर वापसी के शक्ति प्रदर्शन में नवाज ने अपनी पार्टी के चुनाव अभियान का आगाज किया। पीएमएल-एन को पंजाब में अपने सपोर्ट बेस को सक्रिय करने और पीटीआई के हाथों खोई अपनी सियासी जमीन को वापस पाने के लिए मेहनत करनी होगी। पीएमएल-एन की चुनौती यह है कि पीटीआई के पास इमरान खान जैसा करिश्माई नेता है जिन्होंने जेल से ही नवाज की रैली का विश्लेषण जरूर किया होगा। नवाज ने प्रतिशोध की राजनीति को छोड़ते हुए पाकिस्तान को आर्थिक समृद्धि और पड़ोसियों के साथ शांति की ओर ले जाने का संदेश दिया। लेकिन उन्होंने सेना पर हमला नहीं किया, यहां तक कि पूर्व सेना प्रमुख बाजवा पर भी नहीं। न ही उन्होंने अन्य राजनेताओं के साथ बातचीत की पेशकश की। पाकिस्तान के मशहूर अंग्रेजी अखबार द डॉन ने शिकायत की कि नवाज ने ‘राजनीतिक क्षेत्र में न्यायपालिका और सेना के अतिक्रमण’ के बारे में बोलने से परहेज किया।
दूसरी बड़ी कमी इमरान खान की है, जिन्हें अप्रैल 2022 में पाकिस्तान की राजनीति से बेदर्दी से हटा दिया गया था। उनके खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था जो पूरी तरह से मैनेज्ड था। माइनस-इमरान फॉर्मूले के साथ सेना ने न केवल पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय राजनेता को जेल में डाल दिया है, बल्कि उनकी पीटीआई को भी काफी हद तक नष्ट कर दिया है। जहांगीर तरीन के नेतृत्व में एक नया राजनीतिक दल आईपीपी गठित किया गया और पीटीआई के कई दिग्गजों को इस ‘रीसाइक्लिंग बिन’ में फेंक दिया गया। अन्य पूर्व पीटीआई नेता ‘सॉफ्टवेयर अपडेट’ के साथ हिरासत से छूटते रहते हैं; सबसे ताजा उदाहरण पूर्व मंत्री शेख राशिद का है, जो हफ्तों की हिरासत के बाद इमरान की आलोचना करने और सेना की प्रशंसा करते हुए बाहर आए।
इमरान पर अब 9 मई को सेना के खिलाफ तख्तापलट करने का आरोप है और उन्हें लंबी जेल की सजा हो सकती है। उन्होंने आपदा को भुनाने की कोशिश करते हुए जेल से ऐलान किया कि वो किसी नवाज स्टाइल डील में देश छोड़ना नहीं चाहेंगे। दुख की बात है कि उनके लिए ऐसी कोई पेशकश है भी नहीं। उन्हें जेल से बाहर निकलना है तो उन्हें अपना व्यवहार बदलने और ठोस वादे करने की जरूरत हो सकती है।
पाकिस्तान के राजनीतिक दलों के लिए एक बात साफ है- जो कायदे में है, वो फायदे में है और फायदा सेना के साथ ही रहता है। सेना ने इमरान की हाइब्रिड रिजाइम से अपना हाथ खींचकर एक आज्ञाकारी पीडीएम गठबंधन पर रख दिया। वर्तमान केयरटेकर सेटअप को एक ‘हाइब्रिड-प्लस’ शासन के रूप में देखा जाता है, जो आज्ञाकारी टेक्नोक्रेट से भरा हुआ है। जनरल मुनीर लगातार सत्ता को मजबूत करते रहे हैं, कोर कमांडर बदल रहे हैं और प्रभावी रूप से उन सेना अधिकारियों को रास्ते पर ला रहे हैं जिन्होंने पीटीआई के लिए कोई व्यक्तिगत या पारिवारिक सहानुभूति प्रदर्शित की। कड़ी सुरक्षा चुनौतियों से के साथ-साथ पाकिस्तान की राजनीति से निपटने के लिए सेना के पास एक साफ-सुथरी स्क्रिप्ट है।
पाकिस्तान की सेना राजनीति से कितनी दूरी बरतेगी, इसकी परीक्षा आने वाले महीनों में हो जाएगी। क्या वह भारत की प्रतिस्पर्धी राजनीति के आधार पर पाकिस्तान में राजनीति में आमूल चूल बदलाव की अनुमति देगी? क्या वह एक ऐसी डील से चिपक जाएगी जिसके तहत वो पीएमएल-एन को वैसे ही सहारा देगी जैसा उसने पीटीआई को दिया था?
महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या नवाज पाकिस्तानी आर्मी का नया डांसिंग पार्टनर बन जाएंगे, इस सच्चाई के बावजूद कि सेना ने उन्हें तीन बार पीएम पद से हटाया जिसके लिए उन्होंने लंदन आर्मी लीडरशिप की कड़ी आलोचना की थी? प्रधानमंत्री के रूप में तीन अधूरे कार्यकालों में नवाज के साथ हर बार कार्यकाल के मध्य में कुछ ना कुछ ऐसा हुआ, जिस कारण वो पाकिस्तान की राजनीति पर सेना की दमनकारी पकड़ पर सवाल उठाने को मजबूर हुए। उन्हें इस दिलेरी की सजा मिलती रही और हर बार बर्खास्त कर दिए गए। संभव है कि सेना के साथ हुई ताजा सिक्रेट डील में नवाज को अपनी राजनीति और प्रचार अभियान बड़ा फलक देने की अनुमति मिली हो। इसके तहत उनकी अगली सरकार में उनके भाई और उनकी बेटी को भी शामिल किया जा सकता है।
कई पाकिस्तानी पूछेंगे कि क्या नवाज इस बार भी सेना की स्क्रिप्ट को किनारे कर सकते हैं? क्या वो सेना को तटस्थ रहने और आम चुनाव में नागरिकों के बीच निष्पक्ष मुकाबले के लिए इमरान को रिहा करने के लिए राजी कर सकते हैं? यह सवाल तो थोड़ा बड़ा हो सकता है लेकिन उम्मीद तो कोई खास नहीं है।
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