*इस्लामिक देशों के संगठन को भारत की हिदायत:OIC से कहा- कश्मीर हमारा है.. उसके परिसीमन पर पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा न फैलाएं*
भारत ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को लेकर इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की टिप्पणी पर ऐतराज जताया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने सोमवार को कहा- हम इस बात से निराश हैं कि OIC सेक्रेट्रिएट ने एक बार फिर भारत के आंतरिक मामलों पर अनुचित टिप्पणी की है। जम्मू-कश्मीर हमारा अभिन्न हिस्सा और अविभाज्य हिस्सा है।
भारत ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि इस संगठन को किसी एक देश के इशारे पर अपना सांप्रदायिक एजेंडा फैलाने से परहेज करना चाहिए। दरअसल, OIC ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को लेकर भारत की आलोचना की थी, जिसके तुरंत बाद भारत ने प्रतिक्रिया दी है।बता दें कि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा और लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर केंद्र के आयोग ने मई की शुरुआत में अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी।
*परिसीमन को कश्मीरियों के अधिकारों के खिलाफ बताया*
इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने सोमवार को ट्वीट कर जम्मू कश्मीर में परिसीमन को लेकर आपत्ति जताई। इसमे कहा गया कि भारत का यह प्रयास जम्मू कश्मीर के डेमोग्राफिक ढांचे को बदलने और कश्मीरी लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है।
OIC ने कहा- परिसीमन की यह प्रक्रिया चौथे जिनेवा कन्वेंशन सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून का सीधा उल्लंघन है।
*इससे पहले भी कर चुका है भारत विरोधी कमेंट*
यह पहली बार नहीं है जब OIC ने ऐसी टिप्पणी की है। पिछले महीने ही OIC ने इस्लामाबाद में अपनी विदेश मंत्री लेवल बैठक में ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष को बुलाया। इस मसले पर भी भारत ने कड़ी आपत्ति जाहिर की थी।
कुछ हफ्ते बाद ही OIC ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया। इसे लेकर OIC की मीटिंग में एक रिजॉल्यूशन भी पास किया गया। संगठन ने कहा था कि जब तक कश्मीर मसला सुलझा नहीं लिया जाता, तब तक स्थायी शांति हासिल नहीं होगी। विदेश मंत्रालय ने इस रिजॉल्यूशन को बेतुका करार देते हुए कहा कि ये सभी आरोप तथ्यहीन और बेबुनियाद हैं।
*आसान भाषा में जानिए क्या है OIC*
1967 की अरब-इजराइल जंग के बाद मई 1971 में OIC की स्थापना हुई। इसका पूरा नाम ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन है। इसका मकसद ही फिलिस्तीन की मदद करना और उसे इजराइल के साए से मुक्त कराना था। शुरुआत 30 देशों से हुई थी, आज 57 देश इसके सदस्य हैं। इनकी कुल मिलाकर आबादी करीब 180 करोड़ है।
अमूमन हर दौर में सऊदी अरब का ही इस पर दबदबा रहा। इसकी दो वजह हैं। पहली- मुस्लिमों की आस्था के दो सबसे बड़े केंद्र यानी मक्का और मदीना सऊदी में ही हैं। दूसरी- आर्थिक तौर पर कोई दूसरा मुस्लिम देश सऊदी के आसपास भी नहीं फटकता।

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