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एक शताब्दी से गिरफ्तार पेड़ को देखने आते है हजारों सैलानी!
जब घबराहट में एक अंग्रेज अफसर ने दिया पेड़ को अरेस्ट करने का निर्देश !

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The Internal News, Special Report

ब्रिटिश राज के दौरान क्रूर कानूनों की कहानियां इतिहास की किताबों में दफन है । अंग्रेजों की यह क्रूरता केवल मनुष्यों तक ही सीमित रही हो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है । अंग्रेजी राज के अधीन आने वाला तत्कालीन भारत और वर्तमान में विभाजन के बाद पाकिस्तान के प्रांत खैबर पखतूनख्वा में एक अंग्रेज द्वारा गिरफ्तार पेड़ की अपनी अलग दास्तां है। जो सच तो यह है कि दिलचस्प तो यह है कि अब तक इस पेड़ को आजाद नहीं किया गया है वरन पाकिस्तानी इस गिरफ्तार पेड़ को दिखाकर सैलानियों से मोटी रकम भी वसूल कर रहे हैं।


भारत और पाकिस्तान में अंग्रेजों का कानून खत्म हुए बहुत लंबा अरसा गुजर चुका है। यहां किस्सा कुछ अलग ही है पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में बरगद का एक पेड़ है जो की जंजीरों से जकड़ा हुआ है। यह पेड़ पिछले लगभग 122 सालों से भी अधिक समय से बंदी है।प्रांत के लंडी कोतल में यह जंजीरों से जकड़ा हुआ है और उस पर एक तख्ती भी लगी है जिस पर ‘I am under arrest’ लिखा हुआ है।
यह पेड़ पाकिस्तान के लांडी कोटल आर्मी में लगा है। इसकी जंजीरों के पीछे की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। बड़े बूढ़ों की माने तो ये कहानी साल 1898 में प्रारंभ होती है जब नशे में धुत्त ब्रिटिश अफसर जेम्स स्क्वायड लांडी कोटल आर्मी कैंटोनमेंट में टहल रहा था। इसी दौरान उसे महसूस हुआ कि सामने मौजूद बरगद का पेड़ उसकी तरफ आ रहा है। वो इससे इतना ज्यादा घबरा गया कि आस-पास मौजूद सैनिकों को आदेश देकर उसने पेड़ को गिरफ्तार कर लिया। सैनिकों ने भी आदेश का पालन करते हुए पेड़ को जंजीरों से बांध दिया। 121 साल की इतनी लंबी अवधि के बावजूद आज भी ये पेड़ ऐसे ही जंजीरों से बंधा हुआ खड़ा है।
इस गिरफ्तार पेड़ पर आज भी भारी-भारी जंजीरें लटकी हुई हैं यही नहीं गिरफ्तार पे़ड़ पर एक तख्ती भी लटकी हुई है जिस पर लिखा हुआ है ‘मैं गिरफ्तार हूं।’


इस पेड़ को अब तक जंजीरों से इसलिए बांध के रखा गया है ताकि यह जंजीरे अंग्रेजी शासन की क्रूरता को दिखा सके।
स्थानीय लोगों के अनुसार ये बंदी पेड़ ब्रिटिश राज के काले कानूनों में से एक British Raj Frontier Crimes Regulation (FCR) ड्रेकोनियन फ्रंटियर क्राइम रेगुलेशन कानून की क्रूरता को दुनिया के सामने लाता है।
अंग्रेजी सरकार द्वारा यह कानून पश्तून विरोध का मुकाबला करने के लिए लागू किया गया था। इसके तहत उस काल में ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार था कि वह पश्तून जनजाति के किसी भी व्यक्ति या परिवार के अपराध करने पर उसे सीधे दंडित किया जा सकता था।

साल 2011 में एफसीआर कानून में कुछ सुधार किए गए जैसे झूठे मुकदमों के लिए मुआवजा, महिलाओं, बच्चों और बड़ों के लिए प्रतिरक्षा जैसी चीजें जोड़ी गईं। साथ ही इनमें जमानत का प्रावधान किया गया। परंतु इसे पूरी तरह खत्म करने में ये सरकार नाकाम रही।
बरसों से बंदी पाकिस्तान का यह जंजीरों से जकड़ा पेड़ अब वहां पर “टूरिस्ट डेस्टिनेशन” का रूप ले चुका है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से टूरिस्ट आते हैं, इसके साथ ही ले जाते हैं अपने मन में ब्रिटिश कानूनों के खौफ की वह कहानी जो इतने लंबे अंतराल के बाद भी लोगों के जेहन में अब तक जिंदा है।

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