बीकानेर । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) एवं जैव विविधता बोर्ड, जयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आज दिनांक को एनआरसीसी में ‘बायोडाइवर्सिटी कंजर्वेशन, इट्स सस्टेनेबल यूज एण्ड फेयर एण्ड एक्विटेबल शेयरिंग‘ विषयक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया । जिला स्तरीय जागरूकता संबद्ध इस कार्यक्रम में जैव विविधता बोर्ड, एनआरसीसी, वन विभाग, पशुपालन विभाग, राजुवास आदि से आए 70 से अधिक पदाधिकारियों, अनुसंधानकर्त्ताओं तथा स्टैक होल्डर्स ने सक्रिय सहभागिता निभाई ।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि श्री हनुमान राम, संभागीय मुख्य वन संरक्षक, बीकानेर ने कहा कि जैव विविधता के तहत बदलते परिवेश में कई प्रजातियों एवं प्राकृतिक संसाधनों आदि के विलुप्तीकरण (विनाश) को रोकने हेतु एक सोच विकसित करते हुए देश के किसान के साथ प्रत्येक व्यक्ति को जुड़ना होगा तथा हम सौभाग्यशाली हैं क्योंकि भारत जैव विविधता की दृष्टि से एक परिपूर्ण राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि इस धरा पर कोई भी पशु अथवा पौधा व्यर्थ नहीं है बशर्ते उसका सकारात्मक उपयोग खोजा जाए। मुख्य अतिथि ने ऊँट प्रजाति के संरक्षण एवं विकास हेतु एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना भी की।
इस अवसर पर एनआरसीसी के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने पशु प्रजातियों यथा ऊँट, चिंकारा, टाईगर आदि की जैव विविधता को पहचानते हुए इनके बढ़ावे पर विशेष जोर दिया तथा कहा कि ऊँट एक ‘औषधि का भण्डार’ है, अत: आवश्यकता इस बात की है कि इस प्रजाति की उपयोगिता को पहचाना जाए, इस पशु में इसकी प्रबल संभावनाएं भी विद्यमान हैं जिससे न केवल इस पशु बल्कि इससे जमीनी रूप से जुड़े समुदायों को भी इसका लाभ मिल सकें। डॉ.साहू ने आवश्यकता अनुरूप प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर पृथ्वी को बचाने की बात कही ।
कार्यक्रम विशिष्ट अतिथि डॉ.शरत बाबू, उप वन संरक्षक, बीकानेर ने प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग हेतु स्थानीय लोगों की सहभागिता की आवश्यकता जताई । वहीं संदीप कुमार छलानी, डीएफओ (वाइल्ड लाइफ) ने कहा कि जैव विविधता एक व्यापक अवधारणा है तथा राजस्थान अपनी भौगोलिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं के रहते जैव विविधता के संरक्षण की महत्ती आवश्यकता है यद्यपि इस दिशा में सतत रूप से प्रयास जारी हैं । विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री मदन सिंह चारण, डीएफओ (आईजीएनएफ) ने जैव विविधता के संरक्षण एवं इसकी उपयोगिता से जुड़े अभियान को सफल बनाने के लिए ग्राम पंचायत, जिला स्तर पर कार्य करने एवं इस हेतु ग्रामीणों को परंपरागत घासों आदि विविध पहलुओं की जानकारी होने को महत्वपूर्ण बताया । कार्यक्रम समन्वयक श्री अरबिन्द कुमार झा, जैव विविधता बोर्ड, जयपुर ने जैव विविधता की व्याख्या करते हुए अवगत कराया कि जैव विविधता में न केवल वन्य एवं वन्य प्राणी बल्कि कृषि, एवं पशुधन से जुड़ी प्रजातियां भी वृहद् स्तर पर इसका ही अंग है, अत: इनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए पारंपरिक पद्धतियों के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए । इस अवसर पर भाकृअनु-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र बीकानेर के प्रभागाध्यक्ष डॉ.शरत चन्द मेहता ने भी जैव विविधता को लेकर अपने विचार रखें।
तकनीकी सत्र में श्री झा द्वारा ‘रोल ऑफ टैक्नीकल सर्पोट ग्रुप एट डिस्ट्रिक्ट लेवल’ एवं कनर्जेवेशन ऑफ बायोडाइवर्सिटी, इट्स सस्टेनेबल यूज एण्ड फेयर एण्ड एक्विटेबल बेनिफिट शेयरिंग’ विषयक व्याख्यान प्रस्तुत किए गए एवं जैव विविधता बोर्ड की कार्यप्रणाली पर भी विस्तृत जानकारी संप्रेषित कीं। प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा प्रमाण-पत्र वितरित किए गए तथा अंत में एनआरसीसी की ओर से इस कार्यक्रम की समन्वयक रहीं डॉ.प्रियंका गौतम, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने इसकी सफलता हेतु सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
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