किसानों को क्यों नहीं पसंद आया सरकारी प्रस्ताव:जिन 5 फसलों की खरीद का वादा किया, उनकी कीमत MSP से ज्यादा
पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर पिछले 7 दिन से दिल्ली कूच को तैयार किसानों को मनाने के लिए रविवार को सरकार एक फॉर्मूला लाई। इसमें 5 फसलों को 5 साल तक MSP पर सीधे किसानों से खरीदने का प्रस्ताव रखा गया।
किसान संगठनों ने इस पर दो दिन विचार करके 20 फरवरी की शाम को अपना फैसला सुनाने की बात कही, लेकिन सोमवार शाम ही सरकार के प्रस्ताव को रिजेक्ट कर दिया।
आंदोलन रोकने के लिए सरकार का प्रस्ताव क्या है, ये किसानों को कितना प्रभावित करेगा, किसान इतने भर से क्यों नहीं माने
सवाल 1: आंदोलन कर रहे किसानों की सरकार से क्या मांग है?
जवाब: जिन 23 फसलों पर पहले से MSP लागू है, किसान उन्हीं फसलों पर स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर MSP कानून बनाने की प्रमुख मांग कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र शर्मा के मुताबिक, किसान ये नहीं चाहते कि उनकी पूरी फसल सिर्फ सरकार खरीदे, बल्कि किसान खुले बाजार में भी अपनी फसलों को बेचने पर न्यूनतम कीमत को लेकर गारंटी चाहते हैं।
किसानों का कहना है कि MSP के नीचे उनकी फसल को सरकार, प्राइवेट कंपनियां या पब्लिक सेक्टर की एजेंसियां कोई भी नहीं खरीद पाएं।
इसके अलावा किसानों की पूर्ण कर्ज माफी, बिजली बिल माफ करने, लखीमपुर खीरी के आरोपी को कठोर सजा देने की मांग की जा रही है। किसानों की 12 मांगों में WTO से भारत के अलग होने और किसान आंदोलन में मरे किसानों के लिए मुआवजा देने की मांग भी शामिल है।
सवाल 2: चौथे दौर की बातचीत में केंद्र सरकार ने किसानों को क्या प्रस्ताव दिया है?
जवाब: केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 18 फरवरी रात कहा, ‘2004 से 2014 के बीच UPA सरकार ने सिर्फ साढ़े 5 लाख करोड़ रुपए की फसलों की खरीद MSP पर की थी। मोदी जी के कार्यकाल में 18 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की खरीद हो चुकी है। केंद्र आगे भी किसानों के हित में फैसला लेने के लिए तैयार है। मसूर दाल, उड़द दाल, तुअर दाल, कपास और मक्का MSP पर खरीदने के लिए किसानों के साथ 5 साल का एग्रीमेंट किया जाएगा।’
केंद्र सरकार की ओर से किसानों को दिए प्रस्ताव की प्रमुख बातें…
- 5 फसलों को MSP पर अगले 5 सालों तक सीधे किसानों से खरीदा जाएगा। ये फसलें मसूर, उड़द, तुअर, मक्का और कपास हैं।
- जो किसान इन 5 फसलों की उपज करेंगे, उनके साथ दो सहकारी एजेंसियां NCCF (राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ) और NAFED (भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ) 5 साल के लिए एग्रीमेंट करेंगी। इस एग्रीमेंट के जरिए किसानों से ये फसल MSP पर खरीदी जाएगी।
- खरीद की मात्रा (Quantity) पर कोई सीमा नहीं होगी, यानी यह अनलिमिटेड होगी और इसके लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा।
- अलग-अलग फसलों के उत्पादन से पंजाब की खेती बचेगी। राज्य के भूजल स्तर में सुधार होगा और भूमि को बंजर होने से बचाया जाएगा, जिस पर पहले से ही खतरा मंडरा रहा है।
सवाल 3: किसानों से सरकार ने जो वादे किए हैं, उसके क्या मायने हैं?
जवाब: देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि सरकार ने जिन 5 फसलों को MSP पर खरीदने की गारंटी दी है, बाजार में पहले से ही उन फसलों की कीमत MSP से ज्यादा मिल रही है। ऐसे में सरकार ने किसानों की मांगों से फोकस डायवर्ट करने की कोशिश की है।
देश में किसानों की स्थिति बेहतर करने के लिए इनकम की गारंटी जरूरी है। मतलब MSP का एक लीगल सिस्टम बनना चाहिए। बाजार में फसलों की कीमतें ऊपर-नीचे होती रहती हैं। हम आए दिन देखते हैं कई बार किसान अपनी उपज सड़कों पर फेंकने के लिए मजबूर होते हैं। सरकार ने चौथे दौर की बातचीत में जो वादे किए हैं, उससे ये समस्या खत्म नहीं होगी।
कृषि विज्ञान फाउंडेशन के अध्यक्ष विजय सरदाना के मुताबिक 5 फसलों को लेकर सरकार का प्रस्ताव आज की स्थिति में ठीक है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन फसलों का स्टॉक अभी कम है। मुझे लगता है कि MSP को लेकर सरकार अगले दो-तीन साल का प्लान बनाए और कीमत को हर साल रिव्यू करे। हम बाजार के हिसाब से MSP फॉर्मूला नहीं बदलते हैं तो कोई भी फॉर्मूला काम नहीं करेगा।
सवाल 4: क्या सरकार के वादे से सिर्फ पंजाब-हरियाणा या पूरे देश के किसानों को फायदा होगा?
जवाब: देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि सरकार का फोकस पंजाब-हरियाणा पर है, क्योंकि वहां के किसान आंदोलन कर रहे हैं। सरकार उनके आंदोलन को दबाने के लिए 5 और फसलों को MSP पर खरीदने की गारंटी दे रही है। मध्य भारत , पूर्वांचल और दक्षिणी भारत के किसानों को सरकार के इस ऐलान से कुछ खास नहीं मिलने जा रहा। तिलहन, मसाले और फल-सब्जियों को लेकर भी सरकार ने कुछ खास बातें नहीं कही हैं।
लंबे समय से सरकार पंजाब और हरियाणा के किसानों को चावल और गेहूं के अलावा दूसरे फसलों पर शिफ्ट कराना चाह रही है। किसानों को कपास और मक्का बोने के लिए खूब प्रोत्साहित किया गया है। पंजाब की जमीन दलहन और कपास के लिए काफी सही है, इसके बावजूद यहां कपास और मक्का की पैदावार सबसे कम है।
देश में उड़द, मसूर, तुअर की दालें तो पहले से ही MSP से ऊपर बिक रही थीं। ऐसे में इन फसलों पर MSP का कानूनी अधिकार देने का मतलब समझ नहीं आता है। इसमें सरकार को कुछ देने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सरकार का ये प्रस्ताव किसानों की मांगों का सॉल्यूशन नहीं है। किसानों को एडिशनल इनकम देने की जरूरत है।
सवाल 5: क्या जिन दलहन की फसलों को MSP पर खरीदने की सरकार गारंटी दे रही है, वो फसलें धान और गेहूं के बराबर इनकम देंगी?
जवाब: हां, दलहन का भाव ज्यादा है, ऐसे में किसान को गेहूं के बजाय अरहर बोने पर भी घाटा नहीं है। इसे ऐसे समझें कि एक एकड़ जमीन में अधिकतम 20 क्विंटल तक गेहूं की उपज होती है। एक क्विंटल गेहूं की कीमत MSP पर 2,275 रुपए है। इस हिसाब से एक एकड़ गेहूं की फसल बोने पर किसान को 45,550 रुपए तक की कमाई हो सकती है।
वहीं, अगर गेहूं के बजाय किसान अरहर की बुआई करे तो एक एकड़ में 8 क्विंटल अरहर की उपज होती है। MSP पर एक क्विंटल अरहर की कीमत 7,000 रुपए है। इस हिसाब से किसान को अरहर दाल पर 56,000 तक की कमाई हो सकती है। कीमत और उपज में थोड़ा-बहुत अंतर हो सकता है।
सवाल 6: सभी 23 फसलों को MSP पर खरीदे जाने की गारंटी सरकार क्यों नहीं दे रही है?
जवाब: कृषि विज्ञान फाउंडेशन के अध्यक्ष विजय सरदाना के मुताबिक MSP शॉर्टेज इकोनॉमी का फॉर्मूला है। मतलब ये हुआ कि सरकार की तरफ से समर्थन या प्रोत्साहन तभी होता है, जब किसी भी प्रोडक्ट की डिमांड ज्यादा हो और सप्लाई कम हो।
सरकार ने चावल और गेहूं पर भी MSP तब दिया था, जब देश में इस अनाज की कमी थी। अब अगर सरकार को लगता है कि दलहन और कपास की देश में शॉर्टेज है तो सरकार इसे MSP पर खरीद सकती है। हालांकि, 5 साल बाद ऐसा भी हो सकता है कि इन फसलों की शॉर्टेज कम हो जाए। ऐसा हुआ तो सरकार को दोबारा से MSP को लेकर रिव्यू करना चाहिए।
इसे ऐसे समझिए, अगर हर साल सरकार MSP बढ़ाएगी तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में फसलों का दाम भारत की फसलों से कम हो जाएगा। मुर्गी फॉर्म वाले को सस्ता मक्के का दाना चाहिए, वो भारत का हो या विदेश का। ऐसा हुआ तो विदेशी फसलों का सस्ते दाम में आयात होगा। इससे भी किसानों को ही नुकसान है।
अगर किसी फसल का स्टॉक सरप्लस है और उसका प्रोडक्शन ज्यादा है, तो उस फसल को कहां और कौन संभाल कर रखेगा? इसीलिए सरकार MSP को लेकर किसानों के दबाव में आकर कोई गलत फैसला लेने से बचती है।
सवाल 7: सरकार ने 5 फसलों पर खरीद की जो गारंटी दी है, वो PM अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-आशा) से अलग कैसे है?
जवाब: 2018 में भारत सरकार ने तीन मुख्य फसलों दलहन, तिलहन और नारियल की गरी पर किसानों को उचित कीमत दिलाने के लिए ‘PM अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ शुरू किया था। इस योजना के तहत दलहन, तिलहन और गरी की फसलें केंद्र सरकार की एजेंसी नैफेड, सहकारिता विभाग और भारतीय खाद्य निगम यानी FCI खरीदती है।
जैसे ही इन तीनों फसलों की कीमतें MSP से नीचे आती हैं सरकारी एजेंसी खरीद शुरू कर देती है। PSS के तहत खरीद तब तक जारी रहती है जब तक कीमतें MSP पर या उससे ऊपर न चली जाएं।
अभी सरकार ने सिर्फ 5 फसलों को MSP पर खरीद की गारंटी दी है। इसका मतलब ये है कि बाजार में भले ही ये फसलें MSP से ज्यादा या कम कीमतों पर बिक रही हों, लेकिन सरकार इन फसलों को MSP पर ही खरीदती रहेगी।
सवाल 8: सरकार और किसानों के बीच विवाद को सुलझाने का सबसे बेहतर तरीका क्या हो सकता है?
जवाब: देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि रेटिंग और बाजार पर रिसर्च करने वाली संस्था क्रिसिल के मुताबिक 23 फसलों पर बाजार के भाव और MSP के अंतर के बराबर पैसा सरकार किसानों को भुगतान कर सकती है। 2022-23 में हुई फसलों के उत्पादन और बिक्री को देखें तो सरकार को इस पर सिर्फ 21,000 करोड़ का खर्च आएगा।
सरकार किसानों की इनकम को बढ़ाकर देश की इकोनॉमी को रफ्तार देना चाहती है, तो ये ज्यादा पैसा नहीं है। कुछ समय पहले सरकार ने बिजनेस मैन को सपोर्ट करने के लिए इंडस्ट्री प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव यानी PLI के तौर पर 1.97 लाख करोड़ का पैकेज जारी किया था।
दिसंबर 2023 तक इस पैकेज से सिर्फ 1.07 लाख करोड़ रुपए खर्च हुआ है। सरकार चाहे तो इसी पैकेज में बचे हुए 90,000 करोड़ रुपए को किसानों पर खर्च कर सकती है। देश के एग्रीकल्चर को इसकी जरूरत है। ये पैसा खेती पर आए संकट को आराम से मैनेज कर सकता है।
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