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कृष्ण के अनन्य भक्त –सूरदास

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आलेख : लिपि अनुवादक जय प्रकाश शर्मा


भक्ति काव्य की सगुण धारा के कृष्ण भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास का जन्म संवत 1478 ई विक्रम संवत 1535 वैशाख माह शुक्ल पक्ष पंचमी को आगरा से मथुरा जाने वाले मार्ग पर स्थित रूनकता नामक गांव में हुआ था । कुछ विद्वान दिल्ली के समीप सीही नामक गांव को इनका जन्म स्थान मानते हैं । सूरदास सारस्वत गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम पंडित रामदास सारस्वत और माता का नाम जमुना दास था । सूरदास बचपन से ही भगवत भक्ति के गायन में रुचि रखते थे।उनके भक्ति पदों को सुनकर महाप्रभु वल्लभाचार्य ने उनको अपना शिष्य बना लिया । सूरदास जी ने महाप्रभु वल्लभाचार्य जी से दीक्षा ली । दीक्षा के बाद गुरु जी के आशीर्वाद से सूरदास जी ने गोवर्धन के श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन शुरू कर दिया । सूरदास जी ने पांच ग की रचना की —
१ -सूरसागर २- सूरसरावली ३- साहित्य लहरी। ४- नल दमयंती ५- ब्याहहलो
सूरदास जी की काव्य भाषा ब्रजभाषा है । इनकी भाषा में लोकभाषा और संस्कृत दोनों का समावेश है । सूरदास जी ने अपने काव्य में कृष्ण भक्ति के साथ-साथ कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत सुंदर चित्रण किया है । हिंदी साहित्य में इनको सूर्य की उपाधि दी गई है ।
सूरदास जी अपने जीवन के अंतिम समय में गोवर्धन के पारसौली नामक स्थान पर रहे । यही पर सन 1583 ईस्वी संवत् 1640 में इनका देहावसान हो गया ।

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