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कोटा में स्टूडेंट्स की जान बचाने का अचूक इलाज!:इसने कुछ दिनों में ही रोके 4 सुसाइड; परेशानी- हॉस्टल मालिक नहीं दिखा रहे इंटरेस्ट

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कोटा में स्टूडेंट्स की जान बचाने का अचूक इलाज!:इसने कुछ दिनों में ही रोके 4 सुसाइड; परेशानी- हॉस्टल मालिक नहीं दिखा रहे इंटरेस्ट

जिला प्रशासन के अधिकारी अब ज्यादा से ज्यादा हॉस्टल्स का सर्वे कर रहे हैं। वहां अगर गाइडलाइन फॉलो नहीं की जा रही तो उन्हें सील किया जा रहा है। - Dainik Bhaskar

जिला प्रशासन के अधिकारी अब ज्यादा से ज्यादा हॉस्टल्स का सर्वे कर रहे हैं। वहां अगर गाइडलाइन फॉलो नहीं की जा रही तो उन्हें सील किया जा रहा है।

कोटा में अब कोचिंग स्टूडेंट हॉस्टल-पीजी से बाहर निकलकर सुसाइड करने लगे हैं। महज 50 दिन में 5 बच्चे मौत के मुंह में जा चुके हैं। एक स्टूडेंट तो अभी भी लापता है।

इन मामलों को रोकने के लिए हॉस्टल-पीजी के गेटकीपर को ट्रेनिंग भी दी गई थी, ताकि वे बच्चों के तनाव को पहचान सकें। 12 दिनों में हुए 24 सेशन में महज 5 हजार कर्मचारियों ने ही ट्रेनिंग ली है, जबकि कोटा में 3800 से ज्यादा हॉस्टल और 30 हजार से ज्यादा पीजी चल रहे हैं।

हमारी पड़ताल में सामने आया कि गेटकीपर ट्रेनिंग काफी कारगर साबित हुई है। सुसाइड करने से पहले ही चार स्टूडेंट को बचा लिया गया था। जबकि ट्रेनिंग नहीं होने के चलते गेटकीपर ऐसे बच्चों को पहचान नहीं पाए जो तनाव में थे।

सबसे पहले वो मामले जिनमें लक्षण नहीं पहचान सके हॉस्टल कर्मी…

केस-1 : रिजल्ट से पहले तनाव में आए स्टूडेंट ने दिए थे संकेत

शुभ कुमार ने सुसाइड से पहले संकेत दिए थे।

शुभ कुमार ने सुसाइड से पहले संकेत दिए थे।

छत्तीसगढ़ सूरजपुर का रहने वाला शुभ कुमार जेईई की तैयारी कर रहा था। 12 फरवरी 2024 की रात को उसका जेईई मेन (सेशन फर्स्ट) का रिजल्ट आना था। उस शाम से वह टेंशन में था। रात को रोज 9 बजे खाना खाता था, लेकिन उस रात उसने खाना नहीं खाया तो हॉस्टल वार्डन ने उससे बात की। इस पर छात्र ने कहा कि आज उसका रिजल्ट आने वाला है, इसलिए भूख नही हैं, रिजल्ट के बाद ही खाना खाएगा।

शुभ कुमार की यह बात अपने आप में संकेत था कि वह रिजल्ट को लेकर टेंशन में है। लेकिन हॉस्टल कर्मी इस बात को समझ ही नहीं सके। उन्होंने उसे अकेले कमरे में रहने दिया। सुबह शुभ कुमार कमरे में पंखे से लटका हुआ मिला। यहां यह भी बात चौंकाने वाली है कि हॉस्टल में एंटी हैंगिंग डिवाइस नहीं लगी थी।

केस-2 : नौ दिन बाद गरडिया के जंगल में लाश मिली

रचित के गुमशुदा होने के 9 दिन बाद जंगलों में लाश मिली।

रचित के गुमशुदा होने के 9 दिन बाद जंगलों में लाश मिली।

एमपी के राजगढ़ का रचित कोटा में जेईई की तैयारी कर रहा था। 11 फरवरी 2024 की सुबह वह हॉस्टल से निकला था। नौ दिन बाद उसकी लाश गरडिया के जंगल में मिली।

तलाशी और जांच के दौरान पुलिस को कई जानकारियां मिली। जैसे कि वह तनाव में था, उसने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ऐसे ही कुछ स्टेटस भी लगा रखे थे। हॉस्टल में भी उसका व्यवहार बदला हुआ था।

रचित 10 फरवरी से ही गुमसुम था, उसने नुकीली चीज से हाथ की नसें काटने की कोशिश की थी। इस स्टूडेंट के बैग में रस्सी और चाकू मिला था, लेकिन इतना सब होने के बाद भी हॉस्टल कर्मियों को भनक तक नहीं लगी।

क्या है गेटकीपर ट्रेनिंग?

स्टूडेंट्स कोचिंग में कुछ ही घंटे बिताते हैं, उनका सबसे ज्यादा समय हॉस्टल या पीजी में गुजरता है। इस दौरान बच्चे वहां के मेस संचालक, कुक, गार्ड, वार्डन या अन्य कर्मचारियों के संपर्क में ज्यादा रहते हैं। सुसाइड के मामले भी इसी दौरान के होते हैं। ऐसे में कर्मचारी ही वो कड़ी हैं जो तनाव लेने वाले बच्चों के हावभाव पहचान सकते हैं। इसी को ध्यान में रखकर कोटा प्रशासन ने दिसंबर 2023 में ‘क्यूपीआर’ ट्रेनिंग शुरू की थी।

इस तरह से दिसंबर 2023 में प्रशासन ने हॉस्टल संचालकों को गेटकीपर ट्रेनिंग दिलवाई थी।

इस तरह से दिसंबर 2023 में प्रशासन ने हॉस्टल संचालकों को गेटकीपर ट्रेनिंग दिलवाई थी।

‘क्यू’ का मतलब क्वेश्चन : यानी कि अगर बच्चे में किसी तरह तनाव के हल्के से भी लक्षण लगते हैं तो स्टाफ उसे कैसे संभाले, कैसे बात करें, कैसे उससे सवाल करें, जिससे ये पता लग जाए कि वह तनाव में है।

‘पी’ से मतलब परसूएसन : स्टूडेंट से बात कर उसकी परेशानी को निकालने की कोशिश की जाए, उसकी बातों को जाना जाए, बच्चे को विश्वास में लिया जाए।

‘आर’ से मतलब रेफर : इसके बाद आर यानी कि अगर बच्चा ज्यादा मानसिक तनाव में है तो उसे रेफर किया जाए। किसी विशेषज्ञ, अधिकारियों तक पहुंचाकर बच्चे की काउंसलिंग करवाई जाए, उसके पेरेंट्स को सूचित किया जाए।

इस ट्रेनिंग में हॉस्टल-पीजी के हर कर्मचारियों का तीन से चार घंटे का सेशन होता है, जिसमें उन्हें लक्षणों के आधार पर बच्चे की स्थिति को भांपने की ट्रेनिंग दी जाती है। बच्चा ऐसा क्या कर रहा है, जिससे पता लग सके कि वह तनाव में है, उसके दिमाग में सुसाइड का विचार आ रहा है, जैसे सारे पॉइंट कवर करवाए जाते हैं।

अब बताते हैं वो मामले जिनमें ट्रेनिंग मिलने के बाद स्टूडेंट्स को समय रहते बचा लिया गया

हॉस्टल कर्मचारी ट्रेनिंग लेने के बाद कई लोगों को हावभाव से पहचान पाए।

हॉस्टल कर्मचारी ट्रेनिंग लेने के बाद कई लोगों को हावभाव से पहचान पाए।

केस- 1 : हॉस्टल कर्मी ने पहचानी कंडीशन, बच गई जान

झारखंड निवासी एक कोचिंग छात्रा एक साल से जवाहर नगर इलाके में हॉस्टल में कमरा लेकर रह रही थी। 17 फरवरी को उसने खुद को अचानक कमरे में बंद कर लिया। उसकी होस्टल मेट ने दरवाजा खटखटाया तो उसने उन्हें वहां से जाने के लिए कहा। इसकी जानकारी छात्राओं ने वार्डन को दी।

वार्डन ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। महिला पुलिसकर्मी हॉस्टल में पहुंची। बच्ची से समझाइश की और भरोसे में लेकर दरवाजा खुलवाया। पुलिसकर्मियों ने बच्ची की काउंसलिंग करवाई, छात्रा को प्राथमिक उपचार दिलवाया और उसके घरवालों से बात करवाई।

केस- 2 : पीजी संचालक ने ट्रेनिंग के बाद रखी नजर, बच गई एक स्टूडेंट की जान

शहडोल मध्य प्रदेश का रहने वाला कोचिंग छात्र महावीर नगर फर्स्ट में रहकर जेईई की तैयारी कर रहा था। एक साल से वह कोटा में था। 12 फरवरी को रिजल्ट आया, लेकिन उसके अनुरूप नंबर नहीं आए तो परेशान हो गया। 15 फरवरी को उसने खुद को कमरे में बंद कर सुसाइड की कोशिश की। उसने कमरे में फंदा लगाने की कोशिश की थी, लेकिन समय रहते पुलिस ने उसे बचाया।

दरअसल, रिजल्ट आने के बाद से वह परेशान था, उसके दोस्त और पीजी संचालक भी उस पर निगरानी रख रहे थे। उसने जैसे ही खुद को कमरे में बंद किया, पीजी संचालक हरकत में आया और एक बच्चे की जान बच गई। पीजी संचालक ने गेटकीपर ट्रेनिंग ले रखी थी। इसी के चलते वह बच्चे के हावभाव को पहचान पाया।

कोटा में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा बच्चे कोचिंग के लिए आते हैं।

कोटा में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा बच्चे कोचिंग के लिए आते हैं।

घर से दूर होता है बच्चा, इसलिए जरूरी ये ट्रेनिंग

कोटा में बच्चा आता है तो अपने से ज्यादा टैलेंटेड बच्चों को देखकर, कोचिंग टेस्ट में रिजल्ट कम आने के चलते परेशान हो जाता है। दरअसल, बच्चा अपने परिवार के साथ रहता है, तो छोटी मोटी परेशानी अपनी मां, बहन या भाई को बता देता है। लेकिन यहां आकर वह अकेला हो जाता है। खासकर हॉस्टल में रहने वाला बच्चा एक तरह से पैक ही रहता है।

डॉ. एमएल अग्रवाल के अनुसार जब बच्चे को अपने से अलग भेज दिया जाता है तो बच्चा अकेला हो जाता है। सेपरेशन एंग्जायटी होने लगती है। माता पिता पढ़ने के लिए छोड़ जाते हैं, लेकिन कई बार बच्चा परेशान हो जाता है। उसे पढ़ाई समझ नहीं आती, माहौल में ढल नहीं पाता, लेकिन घरवालों से कह भी नहीं पाता।

हॉस्टल नहीं कर रहे गाइडलाइन फॉलो

हॉस्टल-पीजी में गाइडलाइन की पालना नहीं हो रही है क्योंकि न तो सभी हॉस्टलों में एंटी हैंगिंग डिवाइस लगी है और न ही गेटकीपर ट्रेनिंग दी गई है। इस साल अब तक दो हॉस्टलों को सीज किया जा चुका है।

कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने बताया कि गेटकीपर ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। गेटकीपर ट्रेनिंग का असर भी देखने को मिला है जहां बच्चों की जान भी बचाई गई है। हमने अपने स्तर पर 800 लोगों की ट्रेनिंग करवाई है। संगठन से जुड़े हॉस्टल्स के स्टाफ की तो ट्रेनिंग हो जाती है लेकिन दिक्कत वहां आती है जहां हॉस्टल एसोसिएशन से जुड़े हुए नहीं हैं या लीज पर हैं।

अब प्रशासन कर रहा सर्वे

दिसंबर 2023 से कोचिंग संस्थानों में यह ट्रेनिंग शुरू कर दी गई थी। जिसमें कोटा के छोटे बडे करीब दस से ज्यादा कोचिंग संस्थान के पांच हजार कर्मियों को दिल्ली से ट्रेनर बुलाकर ट्रेनिंग दी गई। ट्रेनिंग करने वालों को सर्टिफिकेट भी दिए गए थे।

हालांकि कुछ हॉस्टल संचालकों का दावा है कि उन्होंने अपने स्तर पर भी ट्रेनिंग करवाई है। लेकिन हकीकत में 35 हजार से ज्यादा पीजी तक ये ट्रेनिंग नहीं पहुंची है। प्रशासन अब कोचिंग संस्थानों के साथ मिलकर हर एरिया में हॉस्टल और पीजी का निरीक्षण करेगा। उनके सर्टिफिकेट देखे जाएंगे।

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