NATIONAL NEWS

गौचर की रक्षा हो, गौआधारित कृषि हो तभी देश खुशहाल बनेगा : श्रीराजेन्द्रदासजी महाराज सुबह उठते ही गौमाता के जरूर करें दर्शन, भूल से भी गौचर पर कब्जा न करें : श्रीराजेन्द्रदासजी महाराज

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare


बीकानेर। भीनासर स्थित मुरलीमनोहर मैदान पर आयोजित सप्तदिवसीय श्रीभक्तमाल कथा के तीसरे दिवस रविवार को गौमाता व विभीषण के बारे में विशेष व्याख्यान दिया गया। भक्तमाल कथा आयोजन समिति की ओर से श्रीरामानंदीय वैष्णव परम्परान्तर्गत श्रीमदजगद्गुरु मलूक पीठाधीश्वर पूज्य श्रीराजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज ने कहा कि सुबह उठें तो गौमाता का दर्शन करें, गौसेवा हमारे हृदय में बसे। हम गाय के लिए गौशाला बनाए , हम गाय को अपने घर में रखे, लेकिन हमें कभी भी गौशाला में अपना घर या गौचर में घर नहीं बनाना चाहिए। गौचर भूमि पर कभी खेती नहीं करनी चाहिए, गौचर पर मंदिर, आश्रम अथवा व्यावसायिक आदि कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए अर्थात किसी भी अवस्था में गोचर पर कब्जा नहीं करना चाहिए। गौचर मतलब केवल गाय के चरने का स्थान है और गौचर को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। भूल से या लोभ से भी यदि गौचर पर कब्जा या उपयोग कर रखा है तो तुरन्त त्याग दो। पश्चाताप कर लो और इस घोर पाप से मुक्ति प्राप्त करो, क्योंकि 14 इंद्रों के कार्यकाल में 21 पीढिय़ां नरक भोगती है। श्रीराजेन्द्रदास देवाचार्यजी महाराज कहा कि गौसेवा में राजस्थान का नाम बहुत बड़ा है। देश में लगभग हर गौशाला में किसी न किसी राजस्थानी का नाम अथवा काम जरूर जुड़ा हुआ होता है। गौसेवा करने वाला कभी दरिद्र नहीं रह सकता, कभी भूखा नहीं रह सकता। गौरक्षा व गौसेवा कार्य को ठीक से व्यवस्थित करने के लिए इस देश में गौ आधारित कृषि व्यवस्था स्थापित की जाए। महाराजश्री ने बताया कि धरती माता का आहार गोबर और गौमूत्र है वह धरती को नहीं मिल रहा। रासायनिक खाद कीटनाशकों का प्रयोग खेती में किया जा रहा है। यह धरती माँ के लिए घातक है और अन्न खाने वाले के लिए तो सौफीसदी घातक है। जो गौकृषि यानि गौ आधारित कृषि करे उन्हें सब्सिडी मिलनी चाहिए, उनका सहयोग करना चाहिए। गौमूत्र व गोबर की ही खाद तैयार होनी जरूरी है। महाराजश्री ने कहा कि दुष्ट अपनी दुष्टता के पाप से ही नष्ट हो जाता है और सज्जन पुरुष अपनी सज्जनता से सम्पूर्ण प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है। विभीषण रावण को बड़ी सज्जनता से कहते हैं आप मेरे पिता के तुल्य हैं लेकिन श्रीराम के भजन में ही आपका परम हित है। विभीषण की संगति की महिमा यह है कि उनके साथ रहने वाले सेवक सचिव निशाचर भी उनकी तरह संत बन गए। लंका का सदाचार विभीषण के रूप में लंका में व्याप्त था और विभीषण के जाते ही वहां से धर्म, तप, दान सब नष्ट हो गए। लंका की समृद्धि का कारण ही विभीषण का धर्मसेवक होना था। आयोजन समिति के घनश्याम रामावत ने बताया कि आज की कथा के यजमान महादेव रामावत व देवेन्द्र भारद्वाज परिवार द्वारा की गई। कथा आयोजन में गजानंद रामावत, महादेव रामावत, मयंक भारद्वाज, श्रवण सोनी, नरसिंहदास मीमाणी, भंवरलाल साध, इंद्रमोहन रामावत, ओमप्रकाश स्वामी, कुलदीप सोनी, रामसुखदास, राजेश सोनी, अमित सोनी, जयदयाल सोनी, रामसुखलाल, गोपालदास, मदनदास एवं सत्यनारायण आदि ने व्यवस्थाएं संभाली।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!