यह कहानी है 70 वर्षीय उस महिला कि जिन्होंने अपने जज्बे से कोरोना के कहर के भी छक्के छुड़ा दिए। उनके बेटे ने भीउनके जीवन की आशा छोड़ दी थी। डॉक्टरों ने प्रत्युत्तर दिया कि इन्हें आईसीयू की जरूरत है लेकिन हमारे सभी आईसीयू भरे हैं तो हमें इन्हे आईसीयू में भी शिफ्ट नहीं कर सकते। उस दिन केवल उनके लिए परिवार वालों ने दुआएं ही मांगी लेकिन उनका एक कथन कि फिक्र मत करो मैं ठीक हो जाऊंगी ।शायद यही वह जज्बा था जो उन्हें वापस जिंदगी की ओर मोड़ लाया ।1990 में अपने बड़े पुत्र को खोने और 10 वर्ष पूर्व अपने पति को खोने के बाद जिंदगी में उनके पास खोने को इतना कुछ था भी नहीं ।इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी ।ऐसी परिस्थिति में भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया ,हिम्मत नहीं खोई और अगले ही दिन अपना इंसुलिन लेने और नाश्ता करने के बाद अपने छोटे पुत्र से कहा मेरे लिए फल ले आओ। डॉक्टर भी अचंभित रह गए उनके जज्बे और अंदरूनी ताकत को देखकर।उनका ऑक्सीजन लेवल जो 73 तक आ चुका था उस दिन 80 से 82 के बीच रहा और अगले 4 दिनों में उनका ऑक्सीजन लेवल 92 पर पहुंच चुका था ।उन्होंने एक ही बात कही यदि हम अपने आपको अपने लिए सबसे महत्वपूर्ण समझ लेंगे तो फिर हमें हराने की ताकत किसी कोरोना में नहीं है। यही इच्छा शक्ति और दृढ़ता उन्हें कोरोना से वापिस जिंदगी की ओर मोड़ लाई।
जैसा कि रंजीता अशेष ने बताया
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