WRITTEN BY MEKHALA GUPTA
तिलकधारी कबीर
कभी कभी कुछ ऐसे अनजाने लोग टकरा जाते हैं, जो अपनी बातों से यादों में रह जाते हैं| ऐसे ही कुछ हुआ था हमारे साथ 2019 में, जब हम गए थे वॉर मेमोरियल| मार्च के शुरू में गए थे, ये सोचकर की ज्यादा धूप नहीं होगी आराम से घूम लेंगे | 1 बजे तक का टाइम था कैब से वहां पहुंच गए थे| थोड़ी देर घूमे तो सूरज अपना रौद्र रूप दिखाने लगा | वापसी करने के लिए कैब करने लगे तो कोई कैब आने को राजी नहीं हुई| बच्चे दोनों धूप में लाल हुए जा रहे थे और पसीने से बेहाल भी| मैंने एक ऑटो को रोकते हुए पूछा रोहिणी चलोगे? वह तैयार हो गया| जैसे-तैसे हम चारों बैठ गये| बच्चे छोटे भी थे और दुबले-पतले भी तो एडजस्ट हो गया| सेहत के मामले में माँ-बाप पर बिलकुल भी नहीं ना गये थे|
सफर शुरू हुआ तो उसने पूछा सर आप सबको कैसा लगा वॉर मेमोरियल?
ये बोलते इससे पहले ही बेटा बोला बहुत अच्छा था अंकल|
सर जी जबसे बना है भीड़ उमड़ी पड़ी है| मैंने भी देखा है बहुत ही अच्छा बनाया है| हम हां, हूँ करने लगे|
तब ही कोई फ़ोन आया तो बोला हां जी हां कबीर ही बोल रहा हूँ, थोड़ी ज्यादा देर लग जाएगी | रोहिणी जा रहा हूँ|
शायद कोई ऑटो बुक कर रहा होगा, ऐसा मुझे लगा|
मैंने कहा बेटा बुरा ना मनो तो एक बात पूछूँ ?
पति ने घूरकर देखा पर मैंने ऐसे दिखाया जैसे मैंने देखा ही नहीं |
बोला हां मैडम जी?
मैंने कहा अभी तुमने नाम बताया कबीर और ऑटो पर बैठते समय मैंने तुम्हारे माथे पर तिलक देखा था|
बोला मैडम जी मैं माँ का खरीदा हुआ बच्चा हूँ|
मैंने पूछा कैसे? एकदम से मन में कई सवाल जो आ गये थे|
उसने बताना शुरू किया|
मेरी माँ के मुझसे पहले चार बच्चे हुए थे, जो बिना किसी वजह से होते ही गुजर गये| माँ को किसी ने टोटका बताया की अगर आप अपने बच्चे को होते ही किसी को दे दोगी और उसे पैसे देकर वापस लोगी तो आपका बच्चा बच जायेगा|
अब आप तो जानती हो मैडम जी हमारे देश में बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं कर जाते सब और माँ तो विशेष रूप से| तो हुआ ये कि हमारे पड़ोस में सलमा आपा रहती थीं, जिनकी मेरी माँ से अच्छी दोस्ती थी|
माँ ने जब उन्हें बताया, तो बोली इसमें क्या हुआ बीबी, कर ले ये भी कुछ नुकसान थोड़े ना है |
पर माँ को घर परिवार में ऐसा कोई नहीं मिल रहा था, जो बिना ज्यादा पूछेताछे यह काम कर ले| किसी ने कुछ, तो किसी ने कुछ बहाना बनाकर माँ-बाबा को टरका दिया|
माँ हैरान परेशान होते हुए सलमा आपा से बात करने लगीं, जीजी हमारे यहाँ तो कोई नहीं मिल रहा पता नहीं कैसे बचाऊंगी बच्चे को|
अचानक से पता नहीं माँ के मन में क्या आया और बोलीं जीजी ये काम तुम ही कर दो ना, तुमको तो सब पता है
बोली मैं तो कर दूंगी, बस तु देख ले तेरे घरवाले मानेंगे या नहीं|
माँ और बाबा से बात की और दोनों जीजी के पास आकर बोले आप तो कर दो बाकी का हमे नहीं पता| हमें कोई परेशानी नहीं|
खैर मेरे आते ही बाबा ने मुझे सलमा आपा की गोद में सौंप दिया| वो चहकते हुए बोलीं माँ को मुझे दिखाते हुए बोलीं बीबी कितना प्यारा लल्ला है| कबीरा बहुत सुंदर बनेगा|
माँ ने खुश होते हुए कहा जीजी सब आपकी कृपा है, आपने तो मेरे बेटे का नाम भी रख दिया|
बस तबसे मैं कबीर हो गया
और यकीन मानिये सर जी जितना ख्याल मेरी माँ ने रखा उससे कुछ बीस ही मुझे सलमा आपा ने पाला|
बच्चे तब तक ऑटो में सो चुके थे और इस कहानी को पतिदेव भी बड़े शौक से सुन रहे थे| पूरा रास्ता कैसे निकला पता ही नहीं चला| और घर भी आ गया|
और एक बार फिर समझ आया की जो दिखता है कई बार वो होता नहीं और जो सुनाई देता है उसके भी सामने वाले के लिए कई मायने होते हैं| इसलिए कयासों पर नहीं असलियत को जाने|
@ मेखला
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