*तुर्की ने लौटाया भारत का गेहूं:56,877 मिलयन टन अनाज से लदे जहाज को तुर्की ने वापस भेजा, कहा- गेहूं में रूबेला वायरस*
लगातार बढ़ती महंगाई और कमजोर होती करेंसी से जूझ रहे तुर्की ने भारतीय गेहूं की खेप लेने से इनकार कर दिया है। फाइटोसैनिटरी चिंताओं का हवाला देते हुए तुर्की ने ऐसा किया है। फाइटोसैनिटरी यानी पेड़-पौधों से जुड़ी बीमारी। एस&पी ग्लोबल ने इससे जु़ड़ी एक रिपोर्ट पब्लिश की है।इस्तांबुल के एक ट्रेडर ने कहा, ‘कृषि मंत्रालय को भारतीय गेहूं की खेप में रूबेला बिमारी का पता चला है जिस कारण इसे रिजेक्ट किया गया है।’ अब 56,877 मिलियन टन गेंहू से लदा एमवी इंस अकडेनिज जहाज तुर्की के इस्केंडरुन पोर्ट से वापस निकल चुका है और इसके जून के मध्य तक गुजरात के कांडला पोर्ट पर पहुंचने की उम्मीद है।
*तुर्की ने अब तक नहीं दिया कोई जवाब*
तुर्की के कृषि मंत्रालय ने खेप को रिजेक्ट करने से जुड़े सवालों का अब तक कोई जवाब नहीं दिया है। तुर्की का यह कदम ऐसे समय में आया है जब रूस-यूक्रेन जंग के कारण गेहूं की सप्लाई दुनियाभर में प्रभावित हुई है और अंतरराष्ट्रीय खरीदार गेहूं की आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं।
तुर्की के इस कदम ने भारतीय निर्यातकों को थोड़ी परेशानी हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगले कुछ दिनों में मिस्र सहित विभिन्न देशों में भारतीय गेहूं का शिपमेंट जाना है। भारतीय गेहूं को रिजेक्ट करने से दूसरे देश भी इसकी क्वालिटी को लेकर सवाल उठा सकते हैं।
*इंडियन फाइटोसैनिटरी मेजर्स का इंस्पेक्शन*
मिस्र ने करीब 2 महीने पहले ही क्लालिटी चेक के बाद भारत को गेहूं सप्लायर के रूप में मंजूरी दी थी। भारतीय गेहूं की क्वालिटी चेक करने के लिए मिस्र का एक डेलिगेशन भारत आया था। इस डेलिगेशन ने मध्य प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र का दौरा किया था। डेलिगेशन ने गेहूं के सैंपल्स की जांच की थी। इंडियन फाइटोसैनिटरी मेजर्स का भी इंस्पेक्शन किया था।भारत में मिस्र के राजदूत वाल मोहम्मद अवद हमीद भी इस टीम के साथ थे। भारत दुनिया में गेहूं का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन वो कम गेहूं एक्सपोर्ट करता है। दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं एक्सपोर्टर रूस है। गेहूं एक्सपोर्ट में यूक्रेन 6 नंबर पर है। रूस-यूक्रेन जंग के कारण ग्लोबल मार्केट में गेहूं की उपलब्धता में गिरावट आई है।
*भारत ने गेहूं एक्सपोर्ट पर बैन लगाया*
भारत ने गेहूं की बढ़ती घरेलू कीमतों को रोकने के उद्देश्य से 13 मई को गेहूं के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था। सरकार ने यह भी साफ किया है कि जिन कंपनियों-फर्मों को 13 मई तक लेटर ऑफ क्रेडिट (एलओसी) मिल चुके हैं, वे निर्यात कर सकेंगे।एक्सपोर्ट पर अगर सरकार रोक नहीं लगाती तो 2006-07 जैसे हालात बन सकते थे। उस समय भारत को गेहूं इंपोर्ट करना पड़ा था वो भी लगभग डेढ़ गुना ज्यादा कीमत पर। सरकार अगर रोक नहीं लगती तो भारत में गेहूं के दाम 3000 रुपए प्रति क्विंटल तक उछल सकते थे, जो अभी 2500 रु. के करीब है।
*तुर्की अब कहां से गेहूं इंपोर्ट करेगा*
तुर्की के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीते दिनों रॉयटर को बताया था कि तुर्की की रूस और यूक्रेन के साथ कॉरिडोर के जरिए ग्रेन इंपोर्ट करने पर बातचीत चल रही है। फरवरी में रूस के आक्रमण के बाद से यूक्रेन के ब्लैक सी पोर्ट्स को ब्लॉक कर दिया गया था।
इस कारण वहां 20 मिलियन टन से ज्यादा अनाज सिलोस में फंसा हुआ है। हालांकि अगर तुर्की की रूस और यूक्रेन के साथ गेहूं आयात करने का बातचीत फेल हो जाती है तो उसका भारतीय गेहूं को रिजेक्ट करने का फैसला महंगा पड़ सकता है।
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