दूधमुंहे बच्चे पाकिस्तान में, मांएं भारत में:एक साल से नहीं देखा चेहरा; पिता सरहद पार, 14 साल की बेटी कर रही मजदूरी
कहानी 1 : वह दुनिया में आया ही था…उसे पैदा हुए 4 दिन हुए ही थे…लेकिन मजबूरी में उसे पाकिस्तान में किसी रिश्तेदार के पास छोड़ आई। एक साल हो गए बेटे का चेहरा नहीं देखा।
कहानी 2 : जब वीजा लगाया तब गर्भवती थी…बेटे के वीजा के लिए अप्लाई किया, लेकिन नहीं मिला। 1 महीने के बेटे को पाकिस्तान में छोड़ कर आना पड़ा।
कहानी 3 : पूरे परिवार ने सोचा था कि भारत जाएंगे और वहां अपने बच्चों को पढ़ाएंगे। 40 साल का बेटा वहीं रह गया और उसकी बेटी मेरे साथ आ गई। उसकी बेटी यहां मजदूरी कर रही है।
ये तीन कहानियां उन परिवारों की है जो पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गए। एक साल से ये परिवार प्रयास कर रहे हैं कि बाकी सदस्य भी भारत आ जाएं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में मुद्दा भी उठा था… एक वादा किया गया था कि पाकिस्तान से इन परिवार के शेष सदस्यों को भारत लाया जाएगा। चुनाव हो चुके हैं और सरकार बन चुकी है, इसी बीच इन विस्थापित परिवारों को एक नई उम्मीद जगी।
चुनावी मुद्दे की हकीकत जानने टीम इन परिवारों के बीच पहुंची तो किसी की मां, किसी के पिता और किसी की बेटी की दर्दभरी कहानी सामने आई।
विजय और रायमल अपनी पत्नी के साथ भारत में हैं। इनका बेटा पाकिस्तान में किसी रिश्तेदार के पास है।
जेठानी-देवरानी के दोनों बच्चे पाकिस्तान में, एक साल से चेहरा नहीं देखा
नवंबर 2022 में विजय व उसकी पत्नी कविता और छोटा भाई रायमल व उसकी पत्नी पूनम पाकिस्तान से जोधपुर आकर बस गए थे। कविता और पूनम ने बताया कि वहां के हालात देखकर हम चारों ने भारत आने का मन बना लिया था। इसके बाद हमने वीजा के लिए अप्लाई किया। इस दौरान हम दोनों गर्भवती हो गई तो आने वाले बच्चों के लिए भी वीजा अप्लाई कर दिया। अक्टूबर में दोनों ने बच्चों को जन्म दिया। जब नवंबर में भारत आने का समय हुआ तो बच्चों का वीजा नहीं मिला।
उस समय कविता का बेटा चार दिन का था और पूनम का 15 दिन का। कविता और पूनम ने बताया- हमारे बच्चों को ढंग से मां का दूध भी नसीब नहीं हुआ। क्योंकि, हमारे लिए भारत आना जरूरी था। सीने पर पत्थर रख हम अपने बच्चों को किसी रिश्तेदार के यहां छोड़ आईं।
हमारे पास उनकी केवल एक तस्वीर है, जब वे पैदा हुए थे। अब वे एक साल के हो गए। हमें ये भी नहीं पता कि वे अपनी मां को पहचान पाएंगे या नहीं। महीने में एक बार रिश्तेदार का फोन आता है तो बच्चों के रोने की आवाज सुन लेते हैं। यहां दिन और रात रो-रो कर निकलती है। मां-बाप होने के बाद भी दोनों बच्चे पाकिस्तान में अनाथ जैसी जिंदगी बिता रहे हैं। हमारा दर्द कोई नहीं समझ सकता। पाकिस्तान भी नहीं जाना चाहते। हम कोशिश कर रहे हैं कि हमारे बच्चे हम लोगों के पास आ जाएं।
टिकूराम अपने पोते-पोतियों के साथ जोधपुर में रह रहे हैं, जबकि बेटा पाकिस्तान में है।
40 साल का बाप पाकिस्तान में, 14 साल की बेटी मजदूरी करती है
58 साल के टिकूराम जब अपने परिवार का जिक्र करते हैं तो फफक-फफक कर रोने लगते हैं। कहते हैं- मेरे 40 साल के बेटे होतूराम का चेहरा देखे 4 साल हो गए। 6 महीने में कभी-कभी उससे बात होती है। ज्यादा बात इसलिए भी नहीं करता, क्योंकि वह रोने लगता है।
परिवार के साथ वीजा अप्लाई किया था। बेटे होतूराम को छोड़कर मेरी पत्नी, पोती माया, मूमल और पोते धनेश व कैलाश का वीजा मिला। सभी को लेकर जोधपुर आ गया। सोचा था हमारे जाने के बाद दोबारा अप्लाई करेंगे तो बेटे का वीजा भी हो जाएगा। कई बार अप्लाई किया, लेकिन उसका वीजा नहीं हुआ। अब उसकी हालत ये हो गई है कि उसके पास रुपए भी नहीं बचे। एक ही बेटा है और वह भी पाकिस्तान में रह गया है। परिवार का पेट पालने के लिए 14 साल की पोती और बहू मजदूरी पर जाती है। इसी से हमारा घर चल रहा है।
अपने बेटे को याद कर टिकूराम रोने लग जाते हैं। वे अब भी इस उम्मीद से यहां हैं कि एक दिन उनका बेटा भी भारत आ जाएगा।
पत्नी और बेटी को छोड़कर आया
इन परिवारों के बीच में एक रातूराम भी है। रातूराम भी इसी उम्मीद में था कि भारत जाएंगे और खुशहाली से रहेंगे। वह जोधपुर तो आ गया, लेकिन पाकिस्तान में पत्नी और 5 साल की बेटी पीछे छूट गए। यहां रहने वाले लोगों ने बताया कि जब वह आया तो हम लोगों के बीच बैठकर बहुत रोया था। रात-दिन यहां वहां घूमता रहता और रोता रहता था। इसी बीच उसे पता चला कि उसकी पत्नी और बेटी को परेशान किया जा रहा है। पत्नी ने एक दिन कॉल किया कि कुछ लोग आए थे जो उसे उठाकर ले जाने वाले थे, लेकिन वह अपनी बच्ची के साथ छुप गई। इसके बाद वह परेशान हो गया और दोबारा पाकिस्तान लौट गया।
मां बोली- बेटे को देखना चाहती हूं
मैं (मरियम) 85 साल की हो चुकी हूं। दो साल पहले पूरे परिवार ने भारत आने के लिए वीजा लगवाया था। बेटे को छोड़कर मेरा, बहू और तीन पोते-पोतियों का वीजा हो गया। हम भारत आ गए और बेटा पाकिस्तान में ही रह गया। वहां मकान बेच कर हम जोधपुर में झोपड़ियों में रह रहे हैं। हम लोग मजदूरी कर परिवार पाल रहे हैं, क्योंकि कमाने वाला केवल एक बेटा ही था। अब उसने वीजा अप्लाई किया है। उम्मीद है कि वह भी यहां आ जाए। बेटे को देखना चाहती हूं।
ऐसी ही कहानी लखीराम की है। लखीराम ने बताया- पाकिस्तान में उसका खेत और मकान था। परिवार की सुरक्षा के लिए उसे बेच दिया, जिसके बदले उसे 40 लाख रुपए मिले थे। पाकिस्तान की करेंसी को भारत की करेंसी में बदला तो वह 8 लाख रह गई। तीन कमरे, रसोई और बड़े आंगन वाले घर को छोड़कर अब तीन बेटी, दो बेटों व पत्नी के साथ झोपड़ी में रहना पड़ रहा है। पूरा परिवार मजदूरी पर जाता है। लखीराम ने बताया- मेहनत से घर तैयार कर देंगे। क्योंकि यहां उसका परिवार सुख की नींद ले सकता है।
27 साल के हूतेश ने बताया- अपने साथ, भाई, पत्नी और बच्चे का वीजा लगाया था। मेरे अलावा किसी को वीजा नहीं मिला। पिछले डेढ़ साल से जोधपुर में अकेले रह रहा हूं। पत्नी और बच्चे से बात कर मेरी आंखें भर आती हैं। वीजा लगाने के लिए मजदूरी कर पैसे जमा कर रहा हूं, ताकि परिवार यहां आ सके।
कई परिवार पाकिस्तान में अपना घर बेचकर आए और यहां इस हाल में रह रहे हैं।
आराम से रहने वाले बच्चे पत्थरों के बीच खेलते हैं
लोगों ने बताया कि पाकिस्तान में उनकी अच्छी कमाई थी। खेत-खलिहान थे। घर और सभी सुख-सुविधाएं थी, लेकिन सुरक्षा नहीं थी। वहां उनके बच्चे स्कूल जाते थे, आराम से सोते थे। यहां दिन भर पत्थर के बीच धूप में खेलते हैं। जहां जगह मिल जाए, वहां सो जाते हैं।
जिनकी बेटियां बड़ी हो रही, उन्हें ज्यादा डर
लोगों ने बताया कि पाकिस्तान में सबसे ज्यादा डरे हुए वे लोग हैं, जिनकी बेटियां बड़ी हो चुकी हैं। लोगों ने बेटियों की पढ़ाई छुड़वा दी है। खेतों और मजदूरी पर भी नहीं भेजते हैं। हर समय यही डर सताता है कि उनकी बेटी घर से निकलेगी तो वापस नहीं आएगी या किस हालत में आएगी। ऐसे में ये लोग अपने और अपने परिवार की सुरक्षा भारत में मान रहे हैं।
इन बच्चों का स्कूल तक में एडमिशन नहीं हो पा रहा है। ये बच्चे पत्थरों के बीच दिन-रात गुजार रहे हैं।
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