ना चुनाव प्रचार, ना वोटिंग के हालात और अजीब सा डर, मणिपुर में कैसे मनेगा लोकतंत्र का पर्व?
जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चुनाव की दहलीज पर खड़ा है, मणिपुर में एक अजीब सी शांति हैं, यहां ना चुनावी प्रचार का शोर सुनाई दे रहा है, ना यहां पर लोगों में अपने मताधिकार को लेकर कोई उत्साह है।
मणिपुर में भड़की हिंसा को एक साल होने को है, 219 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन कहा जाए कि हालात सामान्य हैं, फिर वहां पर सबकुछ ठीक हो चुका है, तो ऐसा जमीन पर दिखाई नहीं देता है। जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चुनाव की दहलीज पर खड़ा है, मणिपुर में एक अजीब सी शांति हैं, यहां ना चुनावी प्रचार का शोर सुनाई दे रहा है, ना यहां पर लोगों में अपने मताधिकार को लेकर कोई उत्साह है।
पूर्वोत्तर के इस राज्य में आलम ये चल रहा है कि 50 हजार लोग विस्थापित हो चुके हैं। राहत शिविरों में भी बड़ी तादाद में पीड़ित इस समय रहने को मजबूर हैं, ऐसे में किस तरह से इन सभी को वोटिंग वाले दिन मतदान के लिए लाया जाए, प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती ये है। चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर प्रदीप कुमार झा का कहना है कि विस्थापित हुए 24,500 लोग तो पात्र वोटर हैं, वे आराम से वोट कर सकें, इसके लिए राहत शिविरों में ही खास इंतजाम किए जा रहे हैं।
जानकारी दी गई है कि मणिपुर में कुल 2,955 पोलिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं. वहां भी अभी 50 फीसदी के करीब ऐसे हैं जहां पर हालात चिंताजनक हैं, स्थिति संवेदनशील बनी हुई है। अब ऐसे इलाकों में हालात विस्फोटक इसलिए भी हैं क्योंकि कई ऐसे हिस्ट्री शूटर मौजूद हैं जो माहौल खराब करने के लिए कभी भी हिंसा को हवा दे सकते हैं। इसी वजह से चुनाव आयोग ने ऐसी जगहों पर वीडियोग्राफी के इंतजाम किए हैं, वेबकास्टिंग की व्यवस्था भी रहने वाली है।
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