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नोटबंदी मामले में 5 जजों की बेंच में जस्टिस बीवी नागरत्ना अन्य जजों से रही असहमत, जानिए क्या रहा टुकड़ों में बंटे जजों का अभिमत

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नोटबंदी मामले में 5 जजों की बेंच में जस्टिस बीवी नागरत्ना अन्य जजों से रही असहमत, जानिए क्या रहा टुकड़ों में बंटे जजों का अभिमत
Dr Mudita Popli
नोटबंदी मामले में चल रही विभिन्न याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी। इस निर्णय ने जहां एक और नोटबंदी को सही करार दिया वहीं दूसरी ओर इसके बहुत से राजनीतिक मंतव्य भी निकाले जा रहे हैं। यह फैसला 5 जजों की एक बेंच ने सुनाया जो चार एक के बहुमत से दिया गया। इसमें जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे।
इस पूरे मामले में 5 जजों की बेंच में जस्टिस बीवी नागरत्ना अन्य चार जनों से पूरी तरह असहमत दिखी। अगर उनकी असहमति के कारणों का अवलोकन करें तो पता चलता है कि उन्होंने ऐतराज इन बिंदुओं पर उठाया कि इतना महत्वपूर्ण फ़ैसला लेते वक़्त संसद को अंधेरे में रखना गलत था। इसके अलावा संसद लोकतंत्र का केंद्र है, इस फ़ैसले को नोटिफ़िकेशन से लागू करने की बजाय संसद के साथ चर्चा करके क़ानून बनाकर लागू करना चाहिए था।जो दस्तावेज़ सबमिट किए गए हैं, उसमें आरबीआई ने कई जगह लिखा है – “जैसा कि केंद्र सरकार चाहती है”…इसका मतलब आरबीआई ने स्वतंत्र रूप से कुछ नहीं किया है. पूरी एक्सरसाइज़ 24 घंटे में कर ली गई। उन्होंने कहा है कि ये प्रस्ताव केंद्र सरकार की ओर से आया था, उस पर आरबीआई की राय मांगी गई जबकि आरबीआई एक्ट के मुताबिक इसे आरबीआई का सुझाव नहीं माना जा सकता। आरबीआई की राय नतीजों को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र और सपाट होनी चाहिए।
इस फ़ैसले के बाद जो मुश्किलें आई, ये सोचने वाली बात है कि क्या आरबीआई को इसका अंदाज़ा नहीं था? उन्होंने कहा कि ये फ़ैसला गैर-क़ानूनी है, लेकिन इस पर काम हो चुका है, तो इसे अब बदला नहीं जा सकता. इसलिए अब क्या रिलीफ़ दिया जाए इस पर बात की जा सकती है।
उन्होंने ये भी माना कि 98 फीसदी नोट बदले गए, ये बताता है कि ये कदम प्रभावी नहीं रहा जिसकी उम्मीद की गई थी। लेकिन कोर्ट इस आधार पर फ़ैसला नहीं दे सकता। अंत में उन्होंने कहा कि ये कदम अच्छी नीयत से लिया गया था, सोच-समझ कर लिया गया था। इसे आतंकवाद, काले-धन, नकली करेंसी से निपटने के लिए सोचा गया था मैं इस बात से इंकार नहीं करती परंतु ये कदम सिर्फ़ क़ानून के आधार पर गैर-क़ानूनी ठहरा रही हूं, ना कि उद्देश्य के आधार पर।
जबकि बाकी 4 जजों ने अपनी बात कहते हुए कहा कि इस कदम से क्या हासिल हुआ या नहीं, इस आधार पर इसके कानूनी रूप से सही होने या ना होने का कोई संबंध नहीं है।जो ज़रूरी है वो ये कि एक उद्देश्य होना चाहिए, जो वाजिब काम के लिए तय किया गया हो, और कदम और उद्देश्य का संबंध तार्किक हो। उन्होंने कहा कि हम समझते हैं कि तीन उद्देश्य – आतंकवाद की फंडिंग, काला-धन, नकली नोट वाजिब उद्देश्य हैं। हमें लगता है कि इन उद्देश्यों के लिए इस कदम का तार्किक संबंध है। हमें लगता है कि इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नोटबंदी के अलावा कोई और कदम नहीं उठाया जा सकता था।इन उद्देश्यों की महत्ता और संवैधानिक अधिकारों को सीमित करने के बीच वाजिब संबंध भी है. इसलिए इस कदम पर ‘Doctrine of proportionality’ लागू नही होता। यहां यह जानने योग्य है कि Doctrine of proportionality क्या है, इससे आशय है कि किसी उद्देश्य को हासिल करने के लिए ज़रूरत से बड़ा एक्शन ना लिया जाए।जैसे कि चिड़िया को मारने के लिए तोप का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आरबीआई एक्ट के मुताबिक केंद्र सरकार को एक सीरीज़ या सभी सीरीज़ के नोट बंद करने का अधिकार है। इससे पिछली दो बार सभी नोट की बजाय कुछ नोट बंद किए गए थे तो इसका मतलब ये न निकाला जाए कि केंद्र सरकार को बस इतना करने का अधिकार है। उन्होंने माना कि फ़ैसला लेने की प्रकिया में कोई गलती नहीं है।
साथ ही नोट बदलने के लिए जितना वक़्त दिया गया वो अतार्किक नहीं है। उन्होंने कहा कि
कोर्ट उस पर ही फ़ैसला देता है जितना उससे पूछा जाता है यानी जो भी अपील की गई होती है। पांचों जज मानते हैं कि सही नीयत से लिया गया फ़ैसला है।लेकिन ये कोई नहीं कहता कि इसका उद्देश्य पूरा हुआ। कोर्ट केवल उन्हीं दस्तावेजों को ध्यान में रखकर निर्णय देगा तो उसे दिखाई गए हैं।
यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि आरबीआई अपने आप को कोर्ट में डिफ़ेंड कर रहा था।नोटबंदी के लिए सलाह लेते वक़्त आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन थे जबकि फ़ैसला लागू करते वक़्त उर्जित पटेल गवर्नर थे।इस मसले पर रघुराम राजन तो पहले ही नोटबंदी के बारे में अपने विचार ज़ाहिर कर चुके हैं कि वे और उनके कार्यकाल में आरबीआई नोटबंदी नहीं चाहते थे। उर्जित पटेल अपना कार्यकाल ख़त्म होने से पहले ही 2018 में इस्तीफ़ा देकर जा चुके हैं और बाकी दो डिप्टी गवर्नर भी 2017 में रिटायर हो चुके हैं.
ऐसे हालातों में फैसला जरूर भाजपा सरकार के पक्ष में गया है परंतु इस फैसले ने देश में एक नई बहस को जरूर जन्म दे दिया है।

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