पाकिस्तान चुनाव : सिंध में हिंदुओं पर अत्याचार, बलूचिस्तान में आजादी चुनावी मुद्दा:इमरान खान के जेल में होने से पंजाब में नवाज शरीफ को फ़ायदा
पाकिस्तान में 8 फरवरी को आम चुनाव हैं। पाकिस्तान में 4 प्रॉविंस हैं, पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान। भारत में जैसे कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता UP से होकर जाता है, वैसे ही पाकिस्तान में सत्ता का रास्ता पंजाब से निकलता है। यहां नेशनल असेंबली की सबसे ज्यादा 141 सीटें हैं।
पाकिस्तान के चारों प्रॉविंस में क्या है सियासी माहौल, यहां किन मुद्दों पर इलेक्शन लड़ा जा रहा है और कौन सी पार्टी कहां मजबूत है, पढ़िए ये रिपोर्ट-
सबसे पहले पंजाब की बात
आबादी और सीटों के लिहाज से सबसे बड़ा सूबा होने की वजह से पंजाब हर पार्टी के लिए अहम है। 2018 के चुनाव में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ, यानी PTI ने पंजाब में 67 सीटें जीती थीं।
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (N) को 64 सीटें मिली थीं। इस बार इमरान खान ने पंजाब की राजधानी लाहौर और अपने शहर मियांवाली से नेशनल असेंबली के लिए नॉमिनेशन किया था, लेकिन इलेक्शन कमीशन ने दोनों नॉमिनेशन रद्द कर दिए।
PTI के बड़े नेताओं के जेल में होने और चुनाव लड़ने की परमिशन न मिलने से PML (N) के कैंडिडेट मजबूत दिख रहे हैं। तीसरी पार्टी बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी PPP है, जिसका पंजाब में बहुत असर नहीं है। 2018 के चुनाव में PPP को यहां सिर्फ 6 सीटें मिली थीं।
PML (N) वैसे भी पंजाब में हमेशा मजबूत रही है, इसलिए दूसरी पार्टियों के मुकाबले उसके जीतने के चांस ज्यादा हैं।
नवाज शरीफ के खिलाफ जेल से चुनाव लड़ रहीं यास्मीन राशिद
प्रधानमंत्री की रेस में सबसे आगे चल रहे PML (N) लीडर नवाज शरीफ लाहौर की नेशनल असेंबली-130 सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। नवाज का मुकाबला PTI की यास्मीन राशिद से है। 2013 और 2018 में ये सीट PML (N) ने ही जीती थी। यास्मीन राशिद फिलहाल जेल में हैं, इसलिए नवाज शरीफ की स्थिति मजबूत मानी जा रही है।
PPP चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी तीन सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें दो उनके गृह राज्य सिंध की हैं और तीसरी पंजाब की NA-127 लाहौर सीट है। उनका मुकाबला PML (N) के अट्टा तरार और PTI के जहीर अब्बास खोखर से है। PML (N) ने 2013 और 2018 में इस सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन बिलावल के आने से यहां कड़े मुकाबले की उम्मीद है।
पूर्व प्रधानमंत्री और PPP नेता यूसुफ रजा गिलानी मुल्तान में NA-148 सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। 2013 के चुनाव में PTI के अहमद हुसैन ने ये सीट जीती थी। अहमद हुसैन इस बार भी मैदान में हैं। इसलिए मुकाबला कड़ा हो सकता है।
पंजाब के सबसे बड़े मुद्दे महंगाई और बेरोजगारी
पंजाब की सबसे बड़ी समस्याओं में महंगाई, बेरोजगारी और गैस की सप्लाई में कमी शामिल है। द इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन एंड रिसर्च के सर्वे के मुताबिक, पंजाब के 29% लोग महंगाई को सबसे बड़ा मसला मानते हैं।
20% ने बेरोजगारी और 20% ने ही गैस की कमी को सबसे बड़ी समस्या बताया। सिर्फ 4% लोगों की नजर में बिजली कटौती बड़ी समस्या है। 2% लोगों ने माना कि पढ़ाई और साफ पानी की सप्लाई न होना पंजाब की बड़ी समस्या है।
सिंध दूसरा बड़ा राज्य, यहां नेशनल असेंबली की 61 सीटें
सिंध प्रांत बिलावल भुट्टो की पार्टी PPP का गढ़ माना जाता है। अभी यहां PPP की ही सरकार थी। मुराद अली शाह मुख्यमंत्री थे। बिलावल सिंध की दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। अनुमान है कि PPP यहां से 35 सीटें जीत सकती है।
पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी अपने पुश्तैनी इलाके बेनजीराबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। बिलावल भुट्टो NA-194 लरकाना और NA 196 कंबर शाहदाद कोट से चुनाव लड़ रहे हैं। बिलावल की बहन आसिफा भुट्टो जरदारी को पार्टी ने उम्मीदवार नहीं बनाया है।
सिंध प्रांत में PPP 15 साल से सरकार चला रही है। हालांकि, अब PML (N) यहां पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ 29 दिसंबर को कराची आए थे। उन्होंने मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान और ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस (GDA) के नेताओं पीर पगारा, पीर सदरुद्दीन रशीदी, मुर्तजा जटोई और जुल्फिकार से मुलाकात की थी। PPP के खिलाफ यही गठबंधन चुनाव मैदान में है।
मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के प्रमुख डॉ. खालिद मकबूल सिद्दीकी कहते हैं, ‘सिंध में PPP 10 साल से ज्यादा वक्त से शासन कर रही है। उसने निर्वाचन क्षेत्रों को ऐसे बांट दिया है कि उसे फायदा होगा। हमारे मजबूत वोट बैंक वाले एरिया को भी बांट दिया है, ताकि नतीजों को प्रभावित किया जा सके। हालांकि, हम ये चुनाव जीतेंगे और कराची शहर के लिए काम करेंगे, जो पाकिस्तान की इकोनॉमी की रीढ़ है।’
सिंध से दो हिंदू महिलाएं चुनाव लड़ रहीं
सिंध में इस बार दो हिंदू महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं। दलित समुदाय से आने वालीं राधा सिंध के थारपारकर में रहती हैं और जनरल सीट से इंडिपेंटेंड कैंडिडेट के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। राधा हिंदू लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं। वहीं, सोना सिंधु उमरकोट से इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ रही हैं।
पाकिस्तान में सीनेटर बनने वाली पहली दलित हिंदू महिला कृष्णा कुमारी कोहली भी सिंध से ही थीं। 2018 में कृष्णा रिजर्व सीट से जीती थीं। वे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की मेंबर हैं।
सिंध का सबसे बड़ा मुद्दा, हिंदुओं का धर्मांतरण
सिंध पाकिस्तान का सबसे ज्यादा हिंदू आबादी वाला प्रांत है। पाकिस्तान में कुल 40 लाख हिंदू हैं, इनमें से लगभग 14 लाख सिंध में रहते हैं। थार और उमरकोट जिले की 40% आबादी हिंदू है।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय को धर्म के नाम पर हिंसा का शिकार होना पड़ता है। सिंध में ये समस्या सबसे ज्यादा है। इसके विरोध में हिंदू समुदाय विरोध-प्रदर्शन करता रहा है। हिंदू लड़कियों के जबरन अपहरण कर उनका धर्म परिवर्तन कराने के मामले भी अक्सर सामने आते हैं।
अमेरिका के सिंधी फाउंडेशन के मुताबिक, सिंध प्रांत में हर साल 12 से 28 साल उम्र की करीब 1000 हिंदू लड़कियों का अपहरण किया जाता है। उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है और मुस्लिमों से शादी करवा दी जाती है।
धर्म परिवर्तन रोकने के लिए 2016 में सिंध विधानसभा में अल्पसंख्यक संरक्षण विधेयक पेश किया गया था। इसके मुताबिक, 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों के धर्म परिवर्तन को अवैध घोषित किया गया था। बिल में हिंदू लड़कियों से जबरन शादी करने वालों के लिए सजा का प्रावधान है। 2016 में विधानसभा में बिल तो पास हुआ, लेकिन अब तक कानून नहीं बन पाया है।
बलूचिस्तान एरिया के हिसाब से सबसे बड़ा प्रांत, आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या
बलूचिस्तान एरिया के लिहाज से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। इसकी सीमा ईरान और अफगानिस्तान से मिलती है। नेशनल असेंबली की 16 सामान्य सीटों के लिए यहां से 631 उम्मीदवार मैदान में हैं।
जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के अमीर मौलाना फजल-उर-रहमान पहली बार बलूचिस्तान से NA-265 पिशिन सीट से चुनाव लड़ेंगे। उनका मुकाबला PTI नेता और बलूचिस्तान के पूर्व गवर्नर सैयद जहूर आगा से है।
नेशनल पार्टी के प्रमुख और बलूचिस्तान के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. अब्दुल मलिक बलूच ग्वादर और तुरबत शहर से चुनाव लड़ रहे हैं। बलूचिस्तान नेशनल पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री सरदार अख्तर मेंगल भी नेशनल और प्रॉविंस असेंबली के लिए तीन सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं।
बलूचिस्तान के बड़े मुद्दे, आतंकवाद, रोजगार की कमी
बलूचिस्तान में सिक्योरिटी सिचुएशन सबसे बड़ी चुनौती है। यहां दशकों से अलगाववादी मूवमेंट चल रहा है। बलूच लिबरेशन आर्मी और बलूच रिपब्लिकन आर्मी जैसे संगठन पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहे हैं। यही वजह है कि यहां पाकिस्तानी आर्मी की काफी ज्यादा मौजूदगी है।
आर्मी पर बलूचों को अगवा करने, टॉर्चर करने और उनकी हत्या करने के आरोप लगते रहे हैं। बलूचों और आर्मी में टकराव का असर डेवलपमेंट पर पड़ता है।
बलूचिस्तान में पर्यावरण से जुड़ी परेशानियां भी दिखती हैं। ये प्रांत भूकंप और बाढ़ से प्रभावित रहता है। इसके अलावा बेरोजगारी, खराब सड़कें, साफ पानी की कमी, हेल्थ फैसिलिटी खासकर महिला डॉक्टरों की कमी, करप्शन और नशे की तस्करी भी बड़े मुद्दे हैं।
यूनाइडेट नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम, यानी UNDP के मुताबिक पाकिस्तान में सबसे कम लिटरेसी रेट बलूचिस्तान में ही है। यहां के सिर्फ 43% लोग की पढ़-लिख सकते हैं। जन्म लेते ही बच्चों की मौत के मामले में भी बलूचिस्तान सबसे आगे हैं। यहां एक हजार बच्चों में से 66 की मौत जन्म लेने के कुछ समय बाद हो जाती है।
एक और बड़ी समस्या काम की कमी है। बलूचिस्तान में ऑयल, गैस और मिनरल्स के भंडार हैं, इसके बावजूद ये देश का सबसे गरीब इलाका है। इन्फ्रास्ट्रक्चर और इनवेस्टमेंट की कमी से यहां नौकरी के सीमित मौके हैं। यही वजह है कि काम की तलाश में बलूच नौजवानों को मजबूरन दूसरे शहरों में जाना पड़ता है।
ब्रेन ड्रेन की वजह से भी ये इलाका पिछड़ा हुआ है। काम के लिए लोग दूसरे इलाकों में चले जाते हैं, इससे यहां स्किल्ड लेबर की कमी हो जाती है।
खैबर पख्तूनख्वा, इमरान की पार्टी PTI का गढ़
खैबर पख्तूनख्वा में एक पूर्व प्रधानमंत्री सहित छह मुख्यमंत्री चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ NA-15 मानेसरा से भी चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के मुफ्ती किफायतुल्ला से है।
पूर्व मुख्यमंत्रियों में आफताब अहमद खान शेरपाओ, महमूद खान, परवेज खट्टक, अमीर हैदर खान होती, अकरम खान दुर्रानी और सरदार मेहताब अहमद खान शामिल हैं।
खैबर पख्तूनख्वा में नेशनल और रीजनल पार्टियों के 5 प्रमुख भी चुनावी मैदान में हैं। इनमें नवाज शरीफ PML (N), जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के मौलाना फजल-उर-रहमान, जमात-ए-इस्लामी के सिराजुल हक, PTI के बैरिस्टर गौहर खान और कौमी वतन पार्टी के आफताब अहमद खान शेरपौ शामिल हैं।
इसी तरह तीन पूर्व विधानसभा अध्यक्ष असद कैसर, बख्त जहां और मुश्ताक गनी भी चुनाव लड़ रहे हैं।
चुनाव के ऐलान के बाद पीपुल्स पार्टी, अवामी नेशनल पार्टी और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम ने गठबंधन की कोशिशें की थीं, लेकिन कामयाब नहीं हुए। इसके बाद सभी पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। आम चुनाव में PTI की एक्टिविटी न के बराबर है। उनके ज्यादातर उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। PTI खैबर पख्तूनख्वा में सबसे बड़ी पार्टी है और बीते दो बार से सत्ता में है।
खैबर पख्तूनख्वा में PTI के नेता और पूर्व वित्त मंत्री तैमूर सलीम झागरा कहते हैं कि विपक्षी पार्टियां हम पर करप्शन के आरोप लगा रही हैं। हमारे पोस्टर फाड़े जा रहे हैं। मैं कहना चाहता हूं हमने एक रुपए का करप्शन नहीं किया। PTI करप्शन नहीं कर सकती।
जनरल सीट से पहली बार किसी हिंदू महिला को टिकट
खैबर पख्तूनख्वा प्रॉविंस में पहली बार किसी हिंदू महिला को जनरल सीट से टिकट मिला है। बिलावल भुट्टो की पार्टी PPP ने डॉ. सवीरा प्रकाश को बुनेर सीट से उम्मीदवार बनाया है। सवीरा के पिता ओमप्रकाश भी पॉलिटिक्स से जुड़े हैं और पेशे से कॉर्डियोलॉजिस्ट हैं।
खैबर पख्तूनख्वा का सबसे बड़ा मुद्दा आतंकवाद
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ पीस स्टडीज की 2023 की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक, बीते तीन साल में पाकिस्तान में आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं। 10 साल पहले तक यहां तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के अलग-अलग गुट एक्टिव थे, लेकिन अब तालिबान के साथ दाएश खुरासान और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के ऑपरेशन लगातार बढ़ रहे हैं। देश में हो रहे हमले की 82% घटनाओं के लिए यही तीनों गुट जिम्मेदार हैं।
2022 में 93% हमले सिर्फ दो प्रांतों खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में हुए थे। इसमें भी खैबर पख्तूनख्वा सबसे बुरी तरह प्रभावित था, जहां कुल हमलों में से 57% हमले हुए। इनमें 422 मौतें हुई थीं।
आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में उत्तरी और दक्षिणी वजीरिस्तान, बन्नू, टैंक लाकी मारवात, डेरा इस्माइल खान और पेशावर शामिल हैं। इस्लामिक स्टेट खुरासान ने खैबर पख्तूनख्वा में 22 हमले किए, जिनमें से बाजौर जिले में सबसे ज्यादा 10 हमले हुए। यहां 75% हमले सेना और पुलिस पर हुए हैं।
पाकिस्तान में आतंकी हमलों में 2023 में 693 लोग मारे गए
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में देश में 306 आतंकी हमलों हुए, जिनमें 693 लोगों की जान गई और 1,124 लोग घायल हुए। 2022 के मुकाबले 2023 में आतंकी घटनाएं 17% बढ़ी हैं। मरने वालों की तादाद 2022 के मुकाबले 65% ज्यादा है।
बलूचिस्तान में आतंकी घटनाएं 39% बढ़ी हैं। यहां मरने वालों में 330 लोग फोर्स और लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों के हैं। इनमें 176 पुलिसवाले, 110 सैनिक, और दो रेंजर्स शामिल थे। सबसे कम हमले पंजाब में हुए। यहां कुल 6 हमलों में 16 लोग मारे गए। इनमें से चार हमले TTP और तहरीक जिहाद पाकिस्तान ने किए थे।
2023 में भी आतंकियों के टारगेट पर सिक्योरिटी फोर्स ही रहीं। कुल हमलों में से 67% में इन्हें ही टारगेट बनाया गया। 19 आम नागरिक और 10 पोलियो कार्यकर्ता भी इन हमलों का निशाना बने हैं।
कुल हमलों में से 23 आत्मघाती हमले थे, जिनमें 160 में फायरिंग, 67 में ब्लास्ट और 38 हमलों में ग्रेनेड का इस्तेमाल किया गया।
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