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पिता ऐसे होते हैं : रजनी छाबड़ा

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पिता ऐसे होते हैं


स्वछन्द विचरते हो

जब तुम पतंग सरीखे

सपनों के खुले आकाश में

पिता थामे रखते हैं डोर

तुम्हारी हर सफलता पर

उनकी खुशी का

नहीं रहता कोई छोर

हो जाते हैं पुलकित, विभोर

भूल हो जाये तुम से अगर

सुधारने को रहते तत्पर

तराशी गई ईमारत तुम

पिता नींव का पत्थर

रजनी छाबड़ा

बहु-भाषीय कवयित्री व् अनुवादिका

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