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पुरुषोत्तम मास का महत्त्व : ऋतु गर्ग

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पुरुषोत्तम मास का महत्त्व

अधिकमास में पूजा पाठ व धर्म कर्म करना चमत्कारी फल देने वाला होता है। इस मास कई व्रत व पर्व तो आते ही हैं, किंतु अधिकमास में हर दिन भगवान विष्णु व शिव जी उपासना करने से सभी पाप नष्ट होते हैं, और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अधिकमास में नियमपूर्वक पूजा करने का विधान है।

अधिकमास से जुड़ी पौराणिक
मान्यता

अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में बारह मास होते हैं, लेकिन हर तीन वर्ष में एक बार एक अतिरिक्त महीना होता है, जिसे अधिकमास या पुरुषोत्तम मास के तौर पर जाना जाता है। अधिक मास काल में पूजा-पाठ, व्रत व अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व होता है। अधिकमास में जहां मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं, तो वहीं इस महीने धर्म-कर्म करने से कई गुना अधिक फल मिलता है।

अधिकमास का नाम पुरुषोत्तम मास कैसे पड़ा।


  • वर्षभर में आने वाले हर मास, राशि व नक्षत्र का कोई न कोई स्वामी होता हैं, किंतु अधिक मास का कोई स्वामी नहीं था। इस कारण अन्य बारह मास इसे मलमास कह कर निंदा करने लगे । अधिकमास ये देखकर बहुत निराश हुए, और अपना ये दुःख लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु अधिकमास की व्यथा सुनकर कहने लगे कि हे अधिकमास ! तुम निराश हो! मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम वर्ष के बारह मासों से भी अधिक पवित्र माने जाओगे, मेरे सारे सद्गुण तुम्हारे अंदर निहित हो जायेंगे, और अब से तुम मेरे नाम से जाने जाओगे। इस प्रकार अधिक मास को पुरषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है।

भक्तों, इस साल अधिकमास के पवित्र समय में आप भी अधिक से अधिक धर्म कर्म करें, कोई भी पापकर्म करने से बचें, और अपना समय भगवान की भक्ति में बिताएं।

अधिकमास में क्या करें

भगवान विष्णु को अधिकमास का अधिपति माना जाता है, इसलिए इस मास में श्री विष्णु जी की आराधना व धर्म- कर्म करना बहुत फलदाई माना जाता है।

अधिकमास की अवधि के दौरान श्रीमद्भागवत गीता में पुरुषोत्तम मास का महात्म्य, श्रीराम कथा वाचन, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें। ये सब न कर सकें, तो भगवान विष्णु के द्वादश मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का प्रतिदिन 108 बार जप अवश्य करें ।

इस मास में एक समय ही भोजन करने से कि आध्यात्मिक लाभ व स्वास्थ्य लाभ दोनों मिलता है। भोजन में गेहूं, चावल, जौ, मूंग, तिल, बथुआ, मटर, चौलाई, ककड़ी, केला, आंवला, दूध, दही, घी, आम, जीरा, सोंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल, शहतूत, मेथी आदि का प्रयोग करें ।

अधिकमास में स्नान, अनुष्ठान व दान करने से जीवन में आ रही बाधाएं नष्ट होती हैं, और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस मास में दीपदान करने का भी विशेष महत्व है। अधिकमास की अवधि के दौरान यात्रा करना, साझेदारी के कार्य करना,बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान देना, सार्वजनिक हित के कार्य, सेवा कार्य करने में किसी प्रकार का नुकसान नहीं है।

अधिकमास में क्या न करें

अधिकमास काल में भगवान विष्णु शयन अवस्था में होते हैं, इसलिए इस मास में शादी सगाई जैसे मांगलिक कार्य करना अशुभ और वर्जित माना जाता है।

इस मास में मांस-मदिरा का भूलकर भी सेवन न करें। कहते हैं कि जीव हत्या करने वाले व्यक्ति को नरक में हज़ारों यातनाएं दी जाती हैं।

मान्यता है कि अधिकमास की अवधि शुरू किए गए नए व्यवसाय या कारोबार में सफलता नहीं मिलती है, इसलिए इस मास में कोई नया व्यवसाय न शुरू करें।

अधिक मास में अपने गुरु, माता- पिता, पितृ देव, इष्ट देव, स्वामी ग्रह व संतों का अपमान ना करें। ऐसा करने से महापाप होता है।

अधिकमास में बच्चों का मुंडन संस्कार करवाना भी वर्जित माना जाता है।

अधिक मास में स्त्रियों को बाल नहीं कटवाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान नाराज होते हैं।

इस मास में झूठ, हिंसा, क्रोध व चोरी जैसे पाप कर्म करने से बचें।

भक्तों, आप भी अधिकमास की पवित्र अवधि में अधिक से अधिक धार्मिक अनुष्ठान करें।

अधिकमास क्यों आता है।

भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के हिसाब से चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग होता है, जो हर 32 मास, 16 दिन व 8 घंटे के अंतर से आता है। इसका आगमन सूर्य वर्ष व चंद्र वर्ष के मध्य आए हुए अंतर को भरने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति की मानें, तो हर सूर्य वर्ष 365 दिन व लगभग 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है। दोनों साल के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन साल में क़रीब 1 मास बराबर हो जाता है। इसी अंतर की भरपाई करने के लिए हर तीन साल में 12 महीनों के अलावा एक चंद्र मास आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास कहा जाता है।

अधिकमास को मलमास क्यों कहा गया

अधिकमास में हिंदू संप्रदाय द्वारा सभी मांगलिक कार्य करना
वर्जित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अतिरिक्त होने की
वजह से यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास में हिंदू धर्म
के कुछ संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह, गृहप्रवेश,
आदि कार्य शुभ नहीं माने जाते हैं। मलिन माने जाने के कारण ही
इस मास को मलमास कहा गया।

अधिकमास को मलमास क्यों कहा गया

अधिकमास में हिंदू संप्रदाय द्वारा सभी मांगलिक कार्य करना वर्जित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अतिरिक्त होने की वजह से यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास में हिंदू धर्म के कुछ संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह, गृहप्रवेश, आदि कार्य शुभ नहीं माने जाते हैं। मलिन माने जाने के कारण ही इस मास को मलमास कहा गया।

मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास क्यों पड़ा

भगवान विष्णु को अधिकमास का अधिपति माना जाता है, इससे जुड़ी भी एक पौराणिक मान्यता प्रचलित है। वर्ष भर में आने वाले हर मास, राशि व नक्षत्र का कोई न कोई स्वामी होता हैं, किंतु अधिक मास का कोई स्वामी नहीं था। इस कारण अन्य बारह मास इसे मलमास कह कर निंदा करने लगे। अधिकमास ये देखकर बहुत निराश हुए, और अपना ये दुःख लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु अधिकमास की व्यथा सुनकर कहने लगे कि हे अधिकमास ! तुम निराश न हो! मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम वर्ष के बारह मासों से भी अधिक पवित्र माने जाओगे, मेरे सारे सद्गुण तुम्हारे अंदर निहित हो जायेंगे, और अब से तुम मेरे नाम से जाने जाओगे। इस प्रकार अधिक मास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है।

पुराणों में अधिकमास की उत्त्पति से जुड़ी एक कथा का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार, एक बार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया, और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा। किंतु जीवन मरण एक निश्चित क्रिया है, इसलिए ब्रह्मा जी ने हिरण्यकश्यप से अमरत्व के बदले कोई अन्य वरदान मांगने को कहा।

तब हिरण्यकश्यप कहने लगा कि हे ब्रह्मदेव ! आप मुझे ऐसा वर दीजिए कि मैं किसी नर, नारी, पशु, देवता या असुर के हाथों न मरूं, न ही वर्ष के 12 मासों मृत्यु हो । न मैं दिन में मरूं, न रात में न अस्त्र से मरूं, ना किसी शस्त्र से। ना घर में मरूं, ना ही घर से बाहर । ये सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा- हे हिरण्यकश्यप ! ऐसा ही होगा। ये वरदान मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानने लगा। किंतु मृत्यु तो सबकी निश्चित होती है। इसी प्रकार समय आने पर श्री हरि ने अधिक मास में नरसिंह अवतार लेकर, संध्या के समय, हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

तो भक्तों, ये थी अधिकमास की उत्त्पति से जुड़ी पौराणिक मान्यता की जानकारी । अधिकमास धर्म कर्म करने के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है, इसलिए आप भी इस पवित्र मास में अपना समय भगवान की भक्ति में व्यतीत करें। हमारी कामना है कि भगवान विष्णु आप पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें।

ऋतु गर्ग, सिलिगुड़ी,पश्चिम बंगाल

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