पिंक सिटी को भा गई बैंबू की ज्वैलरी
नक्सल प्राभावित क्षेत्र के आदिवासी कारीगरों ने रिझाया
दिल्ली/जयपुर
गुलाबी शहर के नाम से मशहूर जयपुर में नक्सल प्रभावित इलाकों के आदीवासी कारीगरों ने अपनी छाप जमा ली. जयपुरवासी बांस की ज्वैलरी, बंदनवार, मोबाइल एंपलीफायर, टेबल ऑर्गनाइजर, लालटेन, टेबल और कार तिंरगा जैसे कई बेमिसाल हस्तशिल्प के दीवाने हो गए.
अवसर था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राष्ट्रीय सेवा संगम कार्यक्रम! 6 से 9 अप्रैल दौरान हुए इस सेवा संगम में महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित और आदीवासी बहुल चंद्रपुर-गढ़चिरौली के बैंबू डिजाइनर एवम् कारीगरों के आकर्षक हस्तशिल्प सुर्खियों में रहे. प्रदीप देशमुख के नेतृत्व में दि रिसर्च ऑर्गनायझेशन फॉर लिव्हिंग इन्हांस्मेंट के कारीगरों पर सबकी निगाहें थी.
सेवा संगम दौरान जयपुर में समाजसेवी और उद्योगपति नरसी कूलरिया के अनुरोध पर संघ प्रमुख मोहन भागवत और उद्योगपति अजय पिरामल की विषेश उपस्थिति ने जयपुर का गुलाबी रंग निखार दिया था. जिसमें ग्रीन गोल्ड बैंबू की कलाकृतियों ने सुनहरी छटाएं लगा दी.
पिंक सिटी के स्नेह से अभिभूत हुए कारीगर
इंग्लैंड की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स में सम्मानित हुईं हिंदुस्थान की पहली महिला बैंबू शिल्पी मीनाक्षी मुकेश वालके ने बताया कि जयपुर वासियों ने कारीगरों का सम्मान किया है. समय के साथ लुप्त होती बांस की बुनाई कला की कद्र की है. हाथ से बुने हुए बैंबू के आभूषण, तिंरगा, मोबाइल एंप्लीफायर और अन्य हस्तशिल्प बेहद पसंद किए गए. “बांस की राखी” को यूरोप में एक्सपोर्ट कर चुकी मिनाक्षी वालके ने उत्साह से बताया कि पिंक सिटी कला और कलाकार का भी सम्मान करती है.
तीन राज्यों की 1100 महिलाएं हुईं है आत्मनिर्भर
“द बैंबू लेडी ऑफ महाराष्ट्र” के नाम से विख्यात मिनाक्षी मुकेश वालके ने बैंबू से नारी सशक्तिकरण की दिशा में कारगर कदम उठाए है. प्लास्टिक का प्रयोग कम हो, बांस की खेती को बढ़ावा मिले, पर्यावरण संरक्षण हो, महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और आधूनिक तकनिक के युग में दम तोड़ती बैंबू की बुनाई कला को संजोया जाए इन उद्देशों को लेकर मिनाक्षी सन 2017 से प्रयासरत है. मिनाक्षी ने इतने कम समय में तीन राज्यों की 1100 से ज्यादा महिलाओं को बांस की बुनाई कला से आत्मनिर्भर बनाया है. बैंबू डिज़ाइन में कई अभिनव प्रयोग और इजात करनेवाली मीनाक्षी को इजराइल के जेरूसलम में एक आर्ट स्कूल में पढ़ाने का अवसर मिला था परन्तु आर्थिक कमजोरी से वह चूक गईं. कनाडा देश से वुमन हीरो अवार्ड पानेवाली मिनाक्षी को न रहने को खुद का घर है, न काम करने को पर्याप्त जगह, ना ही कोई यंत्र सामग्री इस स्थिति में अपने 7 साल के बेटे को संभालकर नारी सशक्तिकरण हेतु मिनाक्षी देश भ्रमण कर रही है.
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