फलोदी सट्टा बाजार कितना सच कितना फसाना? जानें फलोदी सट्टा मार्केट के बारे में सबकुछ
जोधपुर से अलग होकर हाल ही में फलोदी को अलग जिला बनाया गया. पश्चिम राजस्थान का यह शहर चुनावों के दौरान पत्रकारों और नेताओं के साथ ही आम आदमी के बीच होने वाली चर्चाओं में शामिल रहता है. जिसका कारण हैं (Phalodi Satta Market) फलोदी सट्टा बाजार.
फलोदी शहर के बीचो बीच 600 साल पुराने प्राचीन किले के पास स्थित करीब 300 साल पुरानी दुकानें है. जो चुनावों के दौरान रूझानों को जन्म देती है और इन्हीं कुछ दुकानों के मिलने से बनता है फलोदी का सट्टा बाजार. सट्टा इस शहर के कुछ लोगों के रोजगार का साधन है. फलोदी के रहने वाले 62 साल के रामगोपाल (बदला हुआ नाम ) बताते है कि यहां बारिश, चुनाव, क्रिकेट, मटका, झटपट, जुआ, लॉटरी जैसे सट्टे खेले जाते है.
फलोदी सट्टा मार्केट की शुरुआत
बारिश की अनिश्चितता वाले शुष्क थार के इस शहर में सबसे पहले बरसात पर सट्टा लगना शुरू हुआ. सट्टा लगाने वाले मौसम का पूर्वानुमान करते और उस पर दांव लगाते. ‘घटो’, ‘छंट’, ‘पतरा’, ‘परनाळ’, ‘ब्भाळा’, ‘नदी’ ,’नेष्टो’ आदि बरसात के सट्टे की स्थानीय शब्दावली है. ‘घटो’ का अर्थ- अगर कोई बादल सूर्य को ढक दे. अगर बारिश की एक बूँद की भी पुष्टि हो जाए तो वह ‘छंट’. बूँदों के गिरने से छपरे में आवाज़ हो तब ‘पतरा’. छत से बाहर की तरफ़ निकली नाली से अगर बारिश का पानी बहता है उसे’ परनाळ’ कहते हैं. क़िले का पानी अगर मुख्य द्वार से बहता हुआ बाहर निकले उसके लिए ‘ब्भाळा’ शब्द है. बरसाती नदी अगर बारिश के बाद तालाब तक पहुँचती है तो उसके लिए ‘नदी’ और अगर तालाब पूरा भर कर पानी ओवरफ़्लो हो जाए उसको ‘नेष्टा’ कहा जाता है.
सट्टा बाजार में पारदर्शिता कैसे?
फलोदी सट्टा परिसर (Phalodi Satta Market) इन सभी सम्भावनाओं का आंकलन करके उस पर सट्टा लगाता है. इस अनिश्चितकालीन पेशे से जुड़े आनंद कुमार (बदला हुआ नाम ) बताते हैं कि बरसात के अधिकतर सट्टे सिर्फ बारिश की ऋतु में होते हैं या अब उनका लोप हो चुका है, अब तो केवल परनाळ ही मुख्य तौर पर बचा है. सट्टा बाज़ार की मुख्य इमारत के सामने लाल पत्थर की एक पुरानी इमारत है, जिसकी छत की तरफ़ से एक नाली निकलती है. नाली को ऊपर से ढक कर रखा गया है, ताकी ऊपर से कोई पानी ना आए, सामने वाली इमारत के दो सीसीटीवी कैमरों से नाली व छत पर चौकसी रखी जाती है, ताकी पारदर्शिता बनी रहे.
भाव तय किया जाता है भाव
इस नाली से बरसात का पानी बाहर निकले, इस महत्वपूर्ण बात पर सट्टे के सौदे होते हैं. सौदे के साथ दिन या महीना बताना होता है, दलाल भाव बताता है और सौदा तय कर लिया जाता है. अभी फलोदी बाज़ार में जुलाई 2024 तक के परनाळ के सौदे हो रहे हैं. सौदे की प्रक्रिया को दलाल समझाते हुए कहते है “अगर आप सौदा करने मेरे पास आए हो, तो सबसे पहले आपसे महीना पूछा जाएगा, आप तय करते हो कि आपको मार्च महीने में परनाळ का सट्टा करना है. चूँकि मार्च में बारिश की सम्भावना कम है, तो भाव अधिक होंगे.
जैसे अभी मार्च के भाव 2 रुपए के चल रहे हैं, यानी अगर आप मार्च में परनाळ होगी, इस बात पर 100 रुपए का दांव लगाते हो और पूरे महीने में किसी भी दिन बारिश होने के बाद परनाळ हो जाती है, तो उसके अगले दिन आप मुझसे 200 रुपए लेकर जा सकते हो, और अगर बारिश नहीं होती है तो आप मुझे 100 रुपए चुका कर जाओगे.
मान लीजिए आपको जुलाई महीने का सौदा करना है, जुलाई में बारिश की सम्भावना अधिक है. जुलाई का अभी भाव 20 पैसे का चल रहा है, अगर आप कहते हो कि जुलाई में परनाळ होगी और उस पर आप 100 रुपए लगाते हो, उसी जुलाई के किसी दिन परनाळ से पानी आता है, तो आप अगले दिन मुझसे 20 रुपए लेकर जा सकते हो. पूरे महीने में किसी दिन परनाळ नहीं बहती है, तो आपको 100 रुपए देने होंगे.” सौ बात की एक बात, सम्भावना से ही भाव तय होते हैं. अगर कम भाव है, इसका मतलब; सम्भावना अधिक है. दांव लगाने वाले को कम रुपए बदले में मिलेंगे. अगर सम्भावना कम है, तो भाव अधिक होंगे और दांव लगाने पर ज़्यादा रुपए बदले में मिलेंगे। हर प्रकार के सट्टे का मूल सूत्र यही है. अभी शहर में बरसात का सट्टा करने वाले 10-12 दलाल है. अलग-अलग समय में इनकी संख्या घटती बढ़ती रहती है.
चुनाव और सट्टा बाजार
चुनाव में फलोदी के सट्टे बाजार (Phalodi Satta Market) पर पत्रकारों के साथ ही नेताओं की भी नजर बनी रहती है. हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फलोदी सट्टा मार्केट को लेकर कहा कि “फलोदी के सट्टा मार्केट पर विश्वास मत कीजिए हम चुनाव जीत रहे है .” इससे पता चलता है कि फलोदी का सट्टा बाजार चुनावों को किस तरह से प्रभावित करता है.
फलोदी सट्टा बाजार को करीब से देखते रहे अंबालाल जोशी बताते है कि शुरुआत के चुनावों में यहां सट्टा नही होता था. 70 के दशक में हुए चुनावों में सट्टा लगना शुरू हुआ, और जब 80 के दशक के दैनिक अख़बारों में खबर के तौर पर फलोदी सट्टा बाज़ार का नाम छपना शुरू हुआ तब इसको लोग जानने लगे. चुनाव में फलोदी में मुख्यतः चार प्रकार के सट्टे होते हैं. प्रमुख पार्टियों में से टिकट किसे मिलेगा, कौनसी पार्टी कितनी सीटें लाएगी, कौन विधायक/सांसद का चुनाव जीत रहा है और मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री कौन बनेगा.
फलोदी सट्टा बाज़ार (Phalodi Satta Market) से जुड़े लोगों का बड़ा दावा है कि उनकी सीटों की गणित का विश्लेषण हमेशा से सटीक बैठता आया है. इसी कारण से फलोदी सट्टा बाज़ार के नाम को एक प्रामाणिक सन्दर्भ की तरह इस्तेमाल किया जाता है. शायद इसी साख को लेकर यहाँ के सट्टा उद्यमी गर्व से भरे हुए रहते हैं. इन सट्टों में विश्लेषण कैसे किया जाता है,
इस सवाल का एक पहले से तैयार जवाब दलाल आनंद कुमार देते हैं “हमारा एक नेटवर्क पूरे भारत में फैला हुआ है, चुनाव के समय हम उन लोगों से बात करते हैं, वे आँकड़े देते है. जातीय समीकरण के टूल से वहाँ का माहौल देखा जाता है और फिर हम विश्लेषण करके अपना अनुमान सामने रखते है.” लेकिन, उसके आगे जब और विस्तृत चर्चा करते हैं, तो कोई भी दलाल अपनी मेथडलॉजी को नहीं समझा पाता. उससे स्पष्ट मालूम लगता है कि तमाम दूसरे दावों की तरह सट्टा बाज़ार भी सिर्फ सतही अनुमान से ही अपना दावा पेश करता है.
ऐसे होता है सट्टे के पैसे का हिसाब
पार्टियों के टिकट बँटवारे के बाद फलोदी के आस-पास की सीटों की टिकटों पर हुए सट्टे का हिसाब हो चुका है, पन्द्रह नवम्बर हिसाब करके रक़म चुकाने की आख़िरी तारीख थी. इस बार फलोदी विधानसभा के टिकट वितरण में कांग्रेस ने एक बड़ा उलटफेर कर दिया. पिछली बार के प्रत्याशी महेश व्यास का टिकट काट कर रेस में सबसे पीछे रहे प्रकाश छंगाणी को टिकट दे दिया है. महेश व्यास की टिकट पर 13 लाख 76 हज़ार रुपए हारे एक सौदेबाज निराश हैं, लेकिन, उनकी आशा इतनी अमर है कि बड़ी उम्मीद के साथ कहते हैं कि आगामी सौदों में वे अपनी राशि की भरपाई कर लेंगे. हाल फ़िलहाल तक फलोदी सट्टा बाज़ार राजस्थान में बीजेपी की 122 सीटों पर जीत बता रहा है. मध्यप्रदेश में कांग्रेस की 115 व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की 48 सीटें बताने वाला फलोदी सट्टा बाज़ार अपनी वेबसाइट बना चुका है, जिस पर सट्टा लगाया जा सकता है.
फलोदी में अनुमान के मुताबिक़, 1200 से अधिक लोग सट्टे के व्यापार से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए है. एक साल में 20 करोड़ से अधिक रुपए का व्यापार फलोदी में होता है. सट्टा बाज़ार का फैलाव क़िले के पास वाली दो इमारतों से बढ़कर पूरे शहर में हो चुका है। इन सबके बावजूद सट्टे पर कोई बड़ी कार्यवाही फलोदी में नहीं देखी जाती, इस बात का जवाब आनंद कुमार* फलोदी की प्रचलित कहावत से देते हैं “फलोदी में गाडी भारी, गलती गाय री”, अर्थात फलोदी में यदि कहीं कोई ब्राह्मण (स्थानीय भाषा में जिन्हें भा कहा जाता है) की गाड़ी से गाय को टक्कर मार दे तो वहाँ गलती गाय की है, भा की कत्तई नहीं.
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