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बीकानेर में एक करोड़ में पेपर बेचा, फिर कैसे पाया प्रमोशन?:IAS से लेकर प्रिंसिपल तक किसी ने चैक नहीं किया, वो 5 स्टेप, जहां हुई बड़ी चूक

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एक करोड़ में पेपर बेचा, फिर कैसे पाया प्रमोशन?:IAS से लेकर प्रिंसिपल तक किसी ने चैक नहीं किया, वो 5 स्टेप, जहां हुई बड़ी चूक

एक करोड़ रुपए लेकर सीनियर टीचर भर्ती का पेपर बेचने वाले शेर सिंह मीणा उर्फ अनिल कुमार मीणा को वाइस प्रिंसिपल से प्रिंसिपल कैसे बना दिया गया? जिसे खुद शिक्षा विभाग ने दोषी मानते हुए सस्पेंड किया था, आखिर किसकी सिफारिश से उसका प्रमोशन कर दिया गया।

शेर सिंह मीणा के प्रमोशन के रिकॉर्ड खंगाले तो पड़ताल में चौंकाने वाले सच सामने आए। अनिल कुमार मीणा को प्रमोशन देने में एक या दो लेवल पर नहीं हर स्टेज पर लापरवाही दोहराई गई। जेल की सलाखों में कैद पेपर लीक का मास्टरमाइंड व बर्खास्त शिक्षक शेर सिंह मीणा का कर्मचारी से लेकर आला अधिकारियों तक ने किसी भी लेवल पर रिकॉर्ड चेक ही नहीं किया।

जो कर्मचारी प्रमोशन की काउंसलिंग में ही नहीं पहुंचा, अफसर आंखें मूंदकर उसके रिकॉर्ड पर साइन करते गए और उसके प्रमोशन की फाइल आगे बढ़ती गई। यहां तक कि राजस्थान लोक सेवा आयोग यानी RPSC ने भी बिना कुछ देखे ही प्रमोशन की सिफारिश कर दी।

स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए- 5 स्टेप पर कौन-कौन-से अफसरों-कर्मचारियों ने कैसे चूक की और कैसे पेपर लीक मास्टरमाइंड के प्रमोशन की फाइल बिना किसी रुकावट आगे बढ़ती चली गई…

सबसे पहले समझिए कैसे होता शिक्षा विभाग में प्रमोशन

शिक्षा विभाग में काम करने वाले सहायक कर्मचारी से संयुक्त निदेशक स्तर तक के अधिकारी की पदोन्नति के लिए एक तय प्रक्रिया है। इसमें अधिकारी स्तर के शिक्षकों की पदोन्नति में राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) की भूमिका होती है। क्योंकि आयोग ही इन पदों पर नियुक्ति करता रहा है। ऐसे में विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) में आरपीएससी के अधिकारी भी होते हैं।

समूचा रिकॉर्ड शिक्षा विभाग की ओर से आरपीएससी के समक्ष रखा जाता है। कमेटी के सदस्य इन रिकॉड्‌र्स को देखने के बाद ही प्रमोशन की सिफारिश करते हैं। इसी सिफारिश के आधार पर शिक्षा विभाग पदोन्नति के आदेश जारी करता है। इस पूरी प्रक्रिया में शिक्षा विभाग ने एक बार नहीं बल्कि अनेक बार गलतियां कीं।

पांच स्टेप में जानें कहां-कहां हुई गलती

1. पहली चूक : पुलिस रिकॉर्ड में आरोपी, लेकिन शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर बेदाग शेर सिंह उर्फ अनिल कुमार मीणा

सबसे पहले गलती स्कूल प्रिंसिपल स्तर पर हुई। शिक्षा विभाग में प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी का नाम शाला दर्पण पोर्टल पर होता है। जैसे ही किसी टीचर का ट्रांसफर, पोस्टिंग, निलंबन या टर्मिनेशन होता है, वैसे ही उसका नाम शाला दर्पण पर लिस्ट कर दिया जाता है। जैसे अनिल कुमार मीणा जिस स्कूल में पदस्थापित था, वहां के प्रिंसिपल को जैसे ही उसके निलंबन का आदेश मिला, उस स्कूल के प्रिंसिपल को अपने अकाउंट से शाला दर्पण की वेबसाइट पर लॉगिन करके अनिल कुमार मीणा का नाम हटाना था। प्रिंसिपल हरिश परमार ने ये काम नहीं किया।

विभागीय जांच अनुभाग की असिस्टेंट डायरेक्टर प्रीति जालोपिया।

विभागीय जांच अनुभाग की असिस्टेंट डायरेक्टर प्रीति जालोपिया।

2. दूसरी बड़ी चूक : बिना जांच के विभागीय रिपोर्ट में भी शेरसिंह मीणा बेदाग निकला!

किसी भी कर्मचारी को सस्पेंड या टर्मिनेट करने पर शिक्षा विभाग के विभागीय जांच सेक्शन में रिपोर्ट भेजी जाती है। जहां से कर्मचारी या अधिकारी के रिकॉर्ड में वो कागज जोड़ दिया जाता है। विभागीय जांच अनुभाग की असिस्टेंट डायरेक्टर प्रीति जालोपिया को अनिल कुमार मीणा के बर्खास्त होने का कागज भेजा गया था, लेकिन वो संबंधित फाइल तक नहीं पहुंचा या फिर रिपोर्ट नहीं हुआ। यह उन्हीं के ऑफिस से गंभीर लापरवाही है।

क्योंकि जब डीपीसी यानी प्रमोशन होता है तो विभागीय जांच के अनुभाग अधिकारी यानी असिस्टेंट डायरेक्टर को भी वहां उपस्थित रहना होता है। इतनी लापरवाही रही कि इस बार जब प्रमोशन किए जा रहे थे, तब असिस्टेंट डायरेक्टर प्रीति जालोपिया खुद उपस्थित ही नहीं हुईं। इससे भी बड़ी लापरवाही ये है कि उनकी तरफ से आगे ये रिपोर्ट भेज दी गई कि किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई प्रस्तावित नहीं है। यानी कि शून्य रिपोर्ट भेजी गई। इसी लापरवाही के कारण जालोपिया को सस्पेंड भी किया गया है।

प्रभारी असिस्टेंट डायरेक्टर संदीप जैन को सस्पेंड किया गया है।

प्रभारी असिस्टेंट डायरेक्टर संदीप जैन को सस्पेंड किया गया है।

3. तीसरी चूक : जहां प्रमोशन-पोस्टिंग पर पहली मुहर लगती है, वहां भी अनदेखी

शेर सिंह मीणा के प्रमोशन ऑर्डर की एक प्रति एबी सेक्शन (एस्टेब्लिशमेंट सेक्शन : जहां से प्रिंसिपल और वाइस प्रिंसिपल के ट्रांसफर और पोस्टिंग का रिकॉर्ड रखा जाता है।) भेजी जाती है। इस सेक्शन को असिस्टेंट डायरेक्टर लेवल के अधिकारी देखते हैं। यहां वाइस प्रिंसिपल व इससे ऊपर के अधिकारियों के प्रमोशन व पोस्टिंग का काम होता है। एबी सेक्शन ने भी प्रमोशन करते हुए ये चैक ही नहीं किया कि जिसे पोस्टिंग दी जा रही है, वो न सिर्फ सस्पेंड है बल्कि बर्खास्त भी हो चुका है। इसी अनुभाग के प्रभारी असिस्टेंट डायरेक्टर संदीप जैन को सस्पेंड किया गया है।

4. चौथी चूक : जो जेल में बैठा, उसको भी काउंसलिंग में उपस्थित मानकर किया प्रमोशन

डीपीसी के बाद पोस्टिंग के लिए शिक्षा विभाग ने काउंसलिंग की। ऑनलाइन काउंसलिंग में प्रदेशभर से प्रिंसिपल बने अधिकारियों ने अपना इच्छित स्थान भरा, लेकिन अनिल कुमार मीणा तो बर्खास्त हो चुका था और जेल में था। ऐसे में उसने काउंसलिंग में हिस्सा नहीं लिया। इस पर भी किसी अधिकारी या कर्मचारी के कान खड़े नहीं हुए कि अनिल कुमार मीणा बर्खास्त हो चुका है। जिन अधिकारियों ने फाइल चलाकर उसे बर्खास्त किया था, उन अधिकारियों ने ही उसके प्रमोशन के कागज आगे बढ़ा दिए थे। जो अधिकारी काउंसलिंग में हिस्सा नहीं लेता, उसे विभाग अपनी इच्छा के मुताबिक पोस्टिंग देता है। ऐसे में अनिल कुमार मीणा को भी पोस्टिंग दे दी गई।

5. पांचवीं चूक : दो दिन तक घूमती रही प्रमोशन लिस्ट, जिला लेवल के अधिकारी भी बने रहे अनजान

सारी प्रोसेस होने के बाद शिक्षा निदेशक के साइन होने के बाद प्रमोशन के ऑर्डर हो जाते हैं। इसकी फाइल जिला लेवल के अधिकारियों को भेजी जाती है। ताज्जुब की बात तो ये है कि प्रमोशन की लिस्ट दो दिन तक जिला अधिकारियों के पास घूमती रही, लेकिन किसी को भी ये पता नहीं चल पाया कि अनिल कुमार मीणा का प्रमोशन गलत हुआ है। किसी ने भी शिक्षा निदेशक को ये जानकारी नहीं दी कि गलत प्रमोशन हो गया है।

गौरव अग्रवाल के आदेश पर ही अनिल कुमार मीणा उर्फ शेर सिंह मीणा को टर्मिनेट किया गया था। उन्हीं ने प्रमोट कर दिया।

गौरव अग्रवाल के आदेश पर ही अनिल कुमार मीणा उर्फ शेर सिंह मीणा को टर्मिनेट किया गया था। उन्हीं ने प्रमोट कर दिया।

अग्रवाल ने ही किया था टर्मिनेट

उदयपुर पुलिस और SOG की जांच में जब अनिल कुमार मीणा का नाम पेपर लीक मामले में आया तब तत्कालीन शिक्षा निदेशक गौरव अग्रवाल के आदेश पर ही उसे टर्मिनेट किया गया था। बाद में उन्हीं के आदेश पर उसे प्रमोशन और पोस्टिंग दी गई। सवाल ये है कि एक साथ 1800 अधिकारियों के प्रमोशन और पोस्टिंग के आदेश में निदेशक एक-एक नाम को चैक नहीं कर सकते थे। लेकिन तमाम लापरवाही के लिए निदेशक को जिम्मेदार माना गया। इसीलिए सस्पेंड नहीं किया गया, बल्कि पद से हटा दिया।

ऐसे चला शेर सिंह का मामला

दरअसल, पेपर लीक मामले में नाम सामने आने के बाद अनिल कुमार मीणा को चार मार्च को सस्पेंड कर दिया गया। छह मार्च को उसे सरकारी सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद 29 मार्च को डीपीसी हुई। 26 अप्रैल को प्रमोशन लिस्ट को अंतिम रूप दिया गया। इसके एक महीने बाद यानी 26 मई को प्रमोशन देकर उसकी पोस्टिंग के ऑर्डर हो गए। ऐसे में करीब ढाई महीने के अंतराल में भी विभाग अनिल कुमार मीणा के रिकॉर्ड को सही स्थान तक नहीं पहुंचा पाया।

पोस्टिंग पर ज्यादा फोकस

दरअसल, शिक्षा विभाग में प्रमोशन के साथ ही कर्मचारी और अधिकारी का स्थान बदल दिया जाता है। ऐसे में जैसे ही डीपीसी की बैठक होती है, सभी कर्मचारी और अधिकारी अपने पसंदीदा स्थान पर पोस्टिंग के लिए जुट जाते हैं। आला अधिकारियों पर भी बार-बार दबाव बनाया जाता है कि किसे कहां पोस्टिंग देनी है। अधिकारियों का ज्यादातर समय भी इसी पर खर्च होता है कि कहां पद खाली है और किसे कहां भेजा जा सकता है। ऐसे में एक बर्खास्त अधिकारी के रिकॉर्ड को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया।

स्कूल प्रशासन रहा मौन

अनिल कुमार मीणा को सिरोही के राजकीय महात्मा गांधी सरकारी स्कूल भावरी से बाड़मेर के धारासर स्थित राजकीय गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में प्रिंसिपल बना दिया गया। इन दोनों स्कूल के प्रिंसिपल व अन्य किसी कार्मिक ने विभाग को लिखित में सूचना नहीं दी कि अनिल कुमार मीणा तो बर्खास्त हो चुका है। सिरोही और बाडमेर के संयुक्त निदेशकों व जिला शिक्षा अधिकारियों ने भी विभाग को कोई रिपोर्ट नहीं दी।

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