NATIONAL NEWS

भारत में पिछड़ा मुस्लिम समाज, जो था पहले नजरअंदाज ,अब समृद्धि की राह पर अग्रसर: डॉ मुदिता पोपली की रिपोर्ट

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

लगभग दो शताब्दी तक गुलामी की कठिनाइयों को सहने के बाद हमारा देश भारत 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सरकार के चंगुल से मुक्त हो गया। लम्बी गुलामी के जीवन ने यहां की स्थितियों को बहुत बदल दिया था, देश के निवासियों की एक बड़ी संख्या में निराशा और मायूसी के लक्षण विकसित हो गए थे, और यह सभी बुराइयां लगभग पूरे समाज में फैल गयी थीं। भारत को आजाद हुए काफी समय हो गया है, लेकिन आज भी ये गुलामों वाली खामियां पाई जाती हैं। आजादी के बाद देश के उन लोगों ने जिन के अन्दर समझ, दूर अंदेशी थीं, उन्होंने हर अवसर को गनीमत समझा और उस से फायदा उठाने के लिए संघर्ष भी किया, चाहे वह अर्थशास्त्र हो वाणिज्य या कृषि क्षेत्र, या विज्ञान और कला का अधिग्रहण। लेकिन इस दौड़ में पीछे रहने वालों में मुस्लिम समुदाय का नाम भी सबसे ऊपर है और खासकर मुसलमानों में भी पिछड़े मुसलमान।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय मुसलमानों के पतन के लिए सरकार भी जिम्मेदार है, लेकिन यह एक कड़वा सच है कि उनकी स्थिति के लिए खुद मुसलमान भी जिम्मेदार है। पिछड़े मुसलमानों के विषय पर चर्चा बहुत दिनों से हो रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम नहीं के बराबर है। हर कोई अपने विकास और समृद्धि के लिए काम करता है, और एक बात तो तय है कि भारतीय मुसलमानों का पिछड़ापन तभी दूर हो सकता है जब वे खुद को बदलने के लिए तैयार हों, शिक्षा प्राप्त करें, सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं, सरकारी और प्राथमिक नौकरियों के लिए प्रयास करें और व्यापार में हाथ आजमाएं, कौशल सीखें और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी धार्मिक समूहों के नेताओं, इस्लामी संस्थाओं के नेताओं, समाज के दूरदर्शी पुरुषों और मुस्लिम शिक्षित युवाओं को मिलकर काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए और तब तक इस प्रयास को जारी रखना चाहिए, जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
युवाओं में बढ़ती नैतिक बुराईयों को दूर करने के लिए सामूहिक उपाय करना, नशा के खिलाफ एक आंदोलन, शिक्षा के साथ-साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम और ऐसे अन्य आवश्यक मद्दों को अपनाना आवश्यक है। हालांकि मुस्लिम समाज की वर्तमान स्थिति यह है कि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो बदलाव और सुधार के लिए प्रयास कर रहे हैं, जो दिन-रात व्यक्तिगत रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन उनके बीच कोई आपसी संबंध नहीं है। हर कोई एक-दूसरे की मेहनत और कोशिशों को शक की नजर से देखने का आदी है, हर कोई फैसला लेने और व्यावहारिक कदम उठाने का पहला हक खुद को समझता है, ये मुस्लिम जमीनी स्तर पर काम करने वाले, अगर एक-दूसरे का समर्थन लेना और देना शुरू करें और सामूहिक रूप से काम को आगे बढ़ाएं, तो आधी समस्या वहीं हल हो जाएगी और सकारात्मक परिणाम तुरंत दिखाई देगा। लोगों में पाई जाने वाली कमियां ऐसी हैं कि थोड़ी सी कोशिश के बाद इसे दूर किया जा सकता है। लेकिन असली मुश्किल काम समुदाय के भीतर सुधारकों की विचारधाराओं और प्राथमिकताओं को सुलझाना और फिर उन्हें तरतीब देना है। लोगों की भावना और उनका साहस कम नहीं केवल प्रबंधन और प्रणाली में कमी है। आज, भारतीय मुसलमान सामूहिक रूप से जीवन के हर क्षेत्र में अन्य समुदायों से पीछे हैं।
जहां तक पिछड़े मुसलमानों की बात है तो उनकी हालत और भी खराब है। लेकिन यह संतोष की बात है कि अब पिछड़े मुसलमान आगे बढ़ने और विकसित होने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी हो रहे हैं। आर्थिक क्षेत्र हो या राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र, पिछड़े मुसलमान हर जगह अपना प्रतिनिधित्व दर्ज करा रहे हैं। सरकारी स्तर पर अब तक पिछड़े मुसलमानों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहे है। पिछड़े मुसलमानों के विकास और समृद्धि के लिए प्रयासरत नेताओं का कहना है कि उनके विकास में सबसे बड़ी बाधा अनुच्छेद 241 का पैरा 3 है जिसके कारण पिछड़े मुस्लिम वर्ग कई सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं। इस संबंध में पिछड़े मुस्लिम समुदायों को मौजूदा भाजपा सरकार से काफी उम्मीदें हैं। पिछड़े मुसलमानों का भाजपा द्वारा खूब स्वागत किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली दूसरी बार की भाजपा सरकार में पिछड़े समुदाय के एक युवा नेता को मंत्री बनाया गया है। पिछली सरकार में एक उच्च समुदाय के एक मुस्लिम नेता को मंत्री बनाया गया था इस बार एक पिछड़े समुदाय के एक व्यक्ति को मंत्री बनाया गया और पिछड़े मुस्लिम वर्गों के कार्यक्रमों में भाजपा नेताओं की भागीदारी ने पिछड़े वर्ग को आशा की जोत जगाई है कि पिछली सरकारों में उनके साथ जो अन्याय हुआ है उसकी भरपाई हो जाएगी।
यह हालत तो पिछड़े समाज की है, वरना देखा जाए तो पूरे मुस्लिम समाज की हालत शिक्षा, अर्थव्यवस्था और समाज की दृष्टि से पिछड़ी हुई है। लेकिन इन सबके बावजूद अगर आजादी के बाद की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए, तो पिछड़े मुसलमानों और आम मुसलमानों ने बहुत प्रगति की है और लगातार प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार देश की साक्षरता दर 2001 में 64.8 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 74 प्रतिशत हो गई और मुस्लिम आबादी में साक्षरता दर 2001 में 59.1 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 68.5 प्रतिशत हो गई। उच्च शिक्षा में अल्पसंख्यक नामांकन 2015-16 में 22,96,671 से बढ़कर 2019-20 में 29,86,610 हो गया और उच्च शिक्षा में मुस्लिम नामांकन 2015-16 में 16,13,710 से बढ़कर 2019-20 में 21,00,860 हो गया। एआईएसएचई की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। इसके अलावा, स्कूली शिक्षा में अल्पसंख्यक छात्रों का नामांकन 2015-16 में 4.11,19,333 से बढ़कर 2020-21 में 4,55,05,633 हो गया है और मुस्लिम छात्रों की वृद्धि 2015 में 3,31,48,085 से बढ़ कर 2020-21 में 3,82,02,678 हो गई है।
सरकार ने अल्पसंख्यक वर्गों सहित समाज के हर वर्ग के कल्याण और विकास के लिए विभिन्न योजनाएं लागू की हैं, जिनमें प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई), प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) शामिल हैं। प्रधान मंत्री युवा योजना (पीएमवाईयू), प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई). बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, छात्रों के शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाएं, योग्यता और साधन आधारित छात्रवृत्ति योजनाएं ‘मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप योजना, नया सवेरा योजना के तहत मुफ्त कोचिंग विदेश में उच्च शिक्षा के लिए अल्पसंख्यक छात्रों को शैक्षिक ऋण पर ब्याज में सब्सिडी देने की योजना संघ लोक सेवा आयोग, (यूपीएससी द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षाओं को पास करने वाले छात्रों को सहायता), राज्य लोक सेवा आयोग (पीएससी), कर्मचारी चयन आयोग (सीएससी) आदि, नई मंजिल यह योजना है स्कूल छोड़ने वालों – को औपचारिक स्कूली शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, ‘नई रोशनी – अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित महिलाओं के बीच नेतृत्व कौशल का विकास आदि।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने सभी घोषित अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन) के आर्थिक रूप से कमजोर और पिछड़े वर्गों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के उद्देश्य से विभिन्न योजनाओं को लागू करके एक बहुआयामी रणनीति अपनाई है। रोजगारोन्मुखी कौशल विकास, बुनियादी ढांचागत समर्थन, आदि, उनके आगे के वर्गीकरणों की परवाह किए बिना, उत्थान किया जाना है। इन योजनाओं और सरकार के अन्य प्रयासों से आम मुसलमानों के साथ-साथ पिछड़े मुसलमान भी विकास की राह पर हैं। वे शैक्षिक, सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं जिससे आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो रहा है। यह एक बेहतर संकेत है।

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!