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राजनैतिक द्वंद और ढुलमुल सरकारी रवैया लील गया सरकारी नौकरी के लिए योग्य अनेक युवाओं के सपनों को

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बीकानेर।जिला परिषद् बीकानेर द्वारा वर्ष 1999 मे 250 पदों पर भर्ती निकाली गई एवं इसके लिए सम्पूर्ण भर्ती प्रक्रिया भी पूर्ण कर ली गई ।परंतु संपूर्ण प्रक्रिया के पश्चात एक सरकारी आदेश के माध्यम से इस भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई।जिसके चलते यह भर्ती प्रक्रिया के आज तक लम्बित है।
इस नियुक्ति के लिए वित्तीय स्वीकृति भी जारी हो चुकी है, इसके बावजूद यह भर्ती प्रक्रिया आज तक अटकी पड़ी है।दुखद सत्य यह है कि इसमें चयनित कई आशार्थी अब रिटायरमेंट की आयु में पहुंच चुके हैं तो कई लंबे समय से संघर्षरत हैं परंतु सत्ता पक्ष तब से अब तक इस मुद्दे पर केवल आश्वासन देते जा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में डॉ. बीडी कल्ला ने इन आवेदकों को भरोसा दिलाया था कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार आने पर वे इस मामले का निस्‍तारण करवा देंगे परंतु सरकार बने एक लंबा अरसा बीतने के बावजूद अब तक इस मामले का कोई निस्तारण नहीं किया गया है।
जबकि इस भर्ती को लेकर आवेदकों द्वारा लंबे समय तक आंदोलन चलाया गया।यहां तक कि अर्द्धनग्न प्रदर्शन से लेकर आमरण-अनशन तक किए गए।जिस कारण कई आंदोलनकारियों को अनशन के चलते कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इन आंदोलनों के कारण विभाग ने कई बार पत्र लिख कर सरकार से इस संदर्भ में मार्गदर्शन भी माँगा। जिसमें ये स्पष्ट अंकित किया गया कि यदि सरकार निर्देश दे तो इस भर्ती को पूर्ण किया जा सकता है।परंतु स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली रही।
वर्ष 2003 में गहलोत सरकार ने भी जुलाई में शिक्षा सचिव के माध्यम से आदेश भी जारी किये , लेकिन सरकार के वे आदेश केवल आदेश बनकर रह गए जिनकी कभी क्रियान्विति नहीं हुई। आंदोलनकारियों की मानें तो भाजपा सरकार के समय राजेन्द्र सिंह राठौड की अध्यक्षता में गठित मंत्रीमण्डलीय उपसमिति में चयनितों के पक्ष को सुना गया। इस सुनवाई के बाद ये माना भी गया कि ये एक बहुत बड़ी प्रशासनिक गलती है। इस प्रकरण में नियुक्ति के‍ लिए सैद्धान्तिक सहमति देते हुए जिला परिषद से तथ्यात्मक रिपोर्ट मंगवाई थी।
आंदोलनकारी पंकज आचार्य के अनुसार राज्य सरकार के पत्रांक एफ /13(244) प्रा.शि. वि./99 दिनांक 1/7/2003 को 250 पद के लिए वित्‍तीय स्वीकृति भी शासन सचिव विधि प्रकोष्ठ द्वारा दी जा चुकी है। इसके बावजूद कोई कार्यवाही नही की गई।
वर्ष 2013 में आमरण अनशन के दबाव से तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक वी. श्रवण कुमार ने भी सरकार से भर्ती के लिए मार्गदर्शन एवं अनुमति माँगी थी, मगर उस पर भी कोई कार्यवाही नही हो पाई।
इतनी लंबी प्रक्रिया के पश्चात भी अब तक आंदोलनकारी आश्वासनों के अतिरिक्त कुछ नहीं पा सके जबकि इनमें से कुछ सेवानिवृत्ति की उम्र तक पहुंचने लगे हैं,कुछ निजी संस्थानों में कार्य कर रहे हैं तो कुछ अब हैं ही नहीं। ऐसी परिस्थिति में शीघ्र अति शीघ्र न्याय कर इन चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने की आवश्यकता है।

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