राजस्थानी भाषा संवैधानिक मान्यता री हकदार : डाॅ. देव कोठारी
उदयपुर । आज का युवा रचनाकार राजस्थानी ज्ञान परम्परा एवं भाषा – साहित्य का भविष्य है । युवा रचनाकार को सदैव समय के साथ आधुनिक युगबोध अथवा एक नई दृष्टि से सृजन करना चाहिए । निसंदेह युवा रचनाकार एक अनूठी शक्ति का पर्याय होता है इसलिए ही ‘ हरेक युवा में बदळाव ‘ री खिमता हुवै। यह विचार साहित्य अकादेमी में, राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल रा संयोजक एवं ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं राजस्थानी विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में बप्पा रावल सभागार में आयोजित दो दिवसीय ‘ राष्ट्रीय राजस्थानी युवा उच्छब ‘ के उदघाटन सत्र में बतौर अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कही। उन्होंने कहा कि इस सृष्टि की गतिशीलता के लिए रस का होना आवश्यक है, रस के बिना जीवन का कोई सार नहीं इसलिए युवा रचनाकारों को अपने लेखन में रस छलकाना चाहिए।
राष्ट्रीय राजस्थानी युवा उच्छब के संयोजक डाॅ. सुरेश सालवी ने बताया कि प्रतिष्ठित विद्वान डाॅ. देव कोठारी ने कहा कि राजस्थानी भाषा विश्व की समृद्ध भाषा है मगर देश की आजादी के छियोत्तर वर्ष बाद इसको संवैधानिक मान्यता नहीं मिलना प्रदेशवासियों का दुर्भाग्य है । उन्होंने कहा कि राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए आज के युवाओं को अहिंसात्मक आंदोलन करना चाहिए । समारोह के मुख्य अतिथि मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ( डाॅ.) सुनिता मिश्रा ने कहा कि वर्तमान युवा देश का भविष्य है । इसलिए यह जरूरी है कि युवाओं को सकारात्मक कार्यों की और आगे बढने के लिए प्रेरित करे । उन्होंने साहित्य अकादेमी एवं राजस्थानी विभाग के साहित्यिक कार्यो की भूरी भूरी प्रशंसा की। युवा लेखक डाॅ.संजय शर्मा ने स्वागत उदबोधन दिया। उदघाटन सत्र का संचालन राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ. सुरेश सालवी किया।
प्रथम तकनीकी सत्र – राजस्थानी के प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित की अध्यक्षता में युवा लेखक डाॅ.गौरी शंकर निमिवाल श्रीगंगानगर, महेन्द्रसिंह छायण जैसलमेर, पूनमचंद गोदारा बीकानेर एवं नंदू राजस्थानी टोंक ने राजस्थानी युवा लेखन विषय पर अपने आलोचनात्मक शोधपत्र प्रस्तुत किये।
द्वितीय तकनीकी सत्र – राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.सुरेश सालवी की अध्यक्षता में युवा लेखक सोनाली सुथार बीकानेर, सूर्यकरण सोनी बांसवाड़ा, शकुंतला पालीवाल उदयपुर ने ‘ अपां क्यूं लिखा ‘ विषय पर अपने मह्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये।
तृतीय तकनीकी सत्र प्रतिष्ठित रचनाकार एवं साहित्य अकादेमी के पूर्व राजस्थानी संयोजक मधु आचार्य आशावादी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें गौरीशंकर निमिवाल, पूनमचंद गोदारा, महेन्द्रसिंह छायण, नंदू राजस्थानी , सोनाली सुथार, सूर्यकरण सोनी एवं शकुतंला पालीवाल ने अपनी राजस्थानी रचनाएं प्रस्तुत की।
🔸 अंजसजोग है समकालीन राजस्थानी युवा लेखन : डाॅ. राजपुरोहित
राजस्थानी युवा उत्सव के दौरान राजस्थानी भाषा-साहित्य के प्रतिष्ठित कवि-आलोचक एवं साहित्य अकादेमी के सर्वोच्च पुरस्कार से पुरस्कृत डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने ‘ इक्कीसवीं सदी रौ राजस्थानी युवा लेखन ‘ विषयक विशेष व्याख्यान में कहा कि समकालीन राजस्थानी साहित्य बहुत ही समृद्ध एवं सराहनीय है । राजस्थानी भाषा-साहित्य की एक अद्भुत परम्परा है जिसे युवाओं को समझना चाहिए क्योंकि जब तक हम इस परम्परा को समझेंगे नहीं तब नया सृजन नहीं कर सकते । उन्होंने कहा कि आज के युवाओं को अपनी मातृभाषा में आधुनिक युगबोध एवं मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण साहित्य सृजन करना चाहिए। इस अवसर पर डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने अनेक समकालीन युवा रचनाकारों एवं उनकी रचनाओं पर बहुत ही महत्वपूर्ण एवं आलोचनात्मक विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समकालीन राजस्थानी साहित्य अंजसजोग है ।
साहित्यिक दृष्टि बहुत ही महत्वपूर्ण इस दो दिवसीय राष्ट्रीय राजस्थानी युवा उत्सव में अनेक भाषाओं के प्रतिष्ठित विद्वान लेखकों, विश्वविद्यालय शिक्षक, साहित्य प्रेमी, शोध-छात्रों एवं विधार्थियों ने भाग लिया ।
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