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रिश्तो में पारदर्शिता एवं ईमानदारी अत्यंत आवश्यक!स्वस्थ मन मस्तिक से स्वस्थ समाज का निर्माण!

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रिश्तो में पारदर्शिता एवं ईमानदारी अत्यंत आवश्यक!
स्वस्थ मन मस्तिक से स्वस्थ समाज का निर्माण!

डॉ. प्रतिभा जवड़ा साइकोलॉजिस्ट एंड सोशल एक्टिविस्ट, हिंदी लेखिका, कवयित्री

भारतीय समाजों की सबसे बड़ी विडंबना यह है की रिश्तो में पारदर्शिता और ईमानदारी की बहुत कमी है। यहां अधिकतम रिश्ते महज मजबूरी बन कर रह गए हैं। और यह विडंबना लोगों की रूढ़िवादी परंपरा और मानसिक जड़ता के कारण है। यहां रिश्ते केवल बोझ और घुटन तले दबे मृतप्राय हैं। जिन्हें व्यक्ति ताउम्र ढोता रहता है। इसका मुख्य कारण है लोगों द्वारा रूढ़िवादी एवं नकारात्मक विचारधाराओं का निर्वहन करना। हमें समाज की कई पारंपरिक संकीर्तनताओं ने जकड़ रखा है। और इन्हीं संकीर्णताओं में जकड़े रहने के कारण हम अपने लिए स्वतंत्र फैसले लेने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। रिश्ते, रिश्ते ना रहकर केवल औपचारिकता बनकर रह गए हैं‌। इसी बोझ तले दबे रहने की वजह से घर-घर में कलह और विवाद की स्थिति बनी हुई है। इन्हीं कारणों से घर-घर में मानसिक बीमारियों का समावेश हो रहा है। रिश्तो में अत्यधिक स्वार्थ की भावनाएं पनपती जा रही है। स्वार्थ एवं नकारात्मक प्रतिस्पर्धावश लोग डिप्रेशन, मानसिक तनाव, ईर्ष्या ,जलन, अनिद्रा जैसी मानसिक बीमारियों से ग्रसित है।

हम सभी की विडंबना यह है कि हम उन रूढ़िवादि एवं नकारात्मक संकीर्ण विचारधारा को तोड़ नहीं पा रहे हैं और यही हमारी मानसिक जड़ता का मुख्य कारण बनता चला जा रहा है।

अक्सर हम पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति को अच्छा नहीं कहते हैं फिर भी आज कई विदेशी राष्ट्र प्रगतिशील है। इसका मुख्य कारण है वहां के लोग मानसिक रूप से स्वस्थ है। वहां के लोग मानसिक रूप से स्वतंत्र हैं अपने विचारों को प्रस्तुत करने, अपने फैसले लेने एवं उन्हें पूरा करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है और विशेष तौर पर हमने देखा और पाया है कि वहां के रिश्तो में पारदर्शिता और ईमानदारी अत्यंत होती है। यदि आपसी वैचारिक मतभेद है और कलह की स्थिति बन रही है और परिवार में नकारात्मक वातावरण बन रहा है तो वे लोग बहुत ही शालीनता और इमानदारी से रिश्तो में बढ़ते वैमनस्य को समाप्त करने में विश्वास रखते हैं। किंतु भारत में यह सबसे बड़ी समस्या है कि यहां रिश्तो में पारदर्शिता और ईमानदारी की अत्यंत कमी है और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर इसका ज्वलंत उदाहरण है। यहां रिश्ते केवल झूठी और खोखली दकियानूसी विचारधाराओं पर टिके हैं। और इस समस्या के कारण परिवार और रिश्ते बिखरते चले जा रहे हैं। यहां के लोग अपनी ऊर्जा का सदुपयोग नहीं कर पाते हैं। अपना पूरा ध्यान पारिवारिक क्लेश से निकलने, एक दूसरे को नीचा दिखाने, अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने में लगाते हैं। इससे पारिवारिक रिश्ते दिन-ब-दिन कमजोर होते जा रहे हैं और प्रगति के मार्ग अवरुद्ध हो रहे हैं। लोग अपनी उर्जा कोअपनी प्रगति में नहीं लगा पाते हैं। क्योंकि यहां हर एक व्यक्ति एक दूसरे से इर्ष्या एवं द्वेषता की भावनाओं से ग्रसित है।एक दूसरे की नकारात्मकता एक दूसरे पर हावी होती जा रही है, और वही उनकी प्रगति में बाधक बनती चली जाती है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि यदि भारतीय समाज में भी मानसिक स्वतंत्रता हो फैसले लेने का पूर्ण अधिकार हो तो हर एक इंसान मन मस्तिक से सुखी और स्वतंत्र रहेगा और अपनी पूरी ऊर्जा का उपयोग अपनी प्रगति में करेगा।
किंतु हमने देखा और पाया है कि यहां के लोगों की अधिकतम ऊर्जा रिश्तों को बचाने और रूढ़िवादीयों को निभाने में लग रही है। यहां हर कोई एक दूसरे की उन्नति से जल रहा है, द्वेष ‌एवं नकारात्मक प्रतिस्पर्धा से ग्रसित है। और इसी कारण चारों और नकारात्मकता का वातावरण बढ़ता चला जा रहा है विकास के मार्ग अवरुद्ध हो रहे हैं।

मेरा मानना है कि स्वस्थ मन ही स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकता है। समस्या जीवन का एक हिस्सा है किंतु मानसिक स्वस्थ व्यक्ति ही उस समस्या का पूर्णतया समाधान कर सकते हैं यदि मानसिक विचलन है तो व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएगा। समस्याओं के समाधान एवं समाज की प्रगति के लिए प्रत्येक व्यक्ति का मानसिक स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है। और व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ तभी रह सकता है जब वह मानसिक रूप से स्वतंत्र हो उसे अपने फैसले लेने का पूर्ण अधिकार हो, उसके मन मस्तिष्क पर किसी प्रकार का कोई दबाव ना हो। खुले मन से रिश्तो को निभाए ताकि रिश्तो में प्रेम बना रहे।
मेरा मानना है कि हमारा समाज इन संकीर्ण रूढ़िवादी परंपराओं को थोड़ा कम कर दे तो लोगों में प्रगति की चेतना का संचार होगा। इंसान प्रगति के नए-नए मार्ग खोजेगा। व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपने विकास के नए नए आयाम ढूंढेगा।हर एक व्यक्ति अपने और अपने परिवार के विकास के बारे में सोचेगा। चारों और सकारात्मक वातावरण बनेगा।सकारात्मक वातावरण से प्रगति के नए नए मार्ग प्रशस्त होंगे। जो ऊर्जा लोग एक दूसरे को सुधारने या उनकी तरक्की में बाधक बनने में लगा रहे है वही उर्जा अपने विकास में लगाएंगे तो संपूर्ण राष्ट्र तरक्की की ओर अग्रसर होता चला जाएगा और चारों तरफ एक सकारात्मक वातावरण बनता चला जाएगा। क्योंकि सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का वातावरण पर बहुत अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। राष्ट्र की उन्नति और अवनति में सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव का बड़ा योगदान होता है।
मेरा मानना है यदि हम अपनी मानसिकता में थोड़ा लचीलापन ले आए तो रिश्तो में प्यार बना रहेगा विश्वास बना रहेगा और रिश्ते और अधिक प्रघाढ एवम सुदृढ़ बनेंगे। भारतीय समाज में अधिकतर रिश्ते केवल लोक-लाज एवं औपचारिकतावश निभाए जा रहे हैं। रिश्तो में प्रेम और प्रगाढ़ता का अभाव है। रिश्तो में स्वार्थी भावनाएं पनपती जा रही है और इसका सीधा प्रभाव व्यक्ति की मानसिकता पर पड़ रहा है। परिवार के बच्चों की परवरिश पड़ रहा है इनकी मानसिकता पर कुप्रभाव पड़ रहा है। जोकि कतई न्यायोचित नहीं है। यदि रिश्तो में वैचारिक मतभेद है तो उन्हें बैठकर सुलझाया जाए और एक दूसरे के स्वभाव के अनुरूप एक दूसरे में ढलने का प्रयत्न करें।फिर भी ना सुलझे तो पारिवारिक क्लेश और विवाद से बचने के लिए गलत और अनुचित मार्ग का उपयोग करने से बेहतर है एक साथ मिल बैठकर ईमानदारी और पारदर्शितापूर्ण निर्णय लिए जाए ताकि पारिवारिक समस्याओं का समाधान बहुत आसानी से किया जा सके,ना कि जबरदस्ती एक दूसरे को एक दूसरे पर थोपा जाए। पति पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कर्तव्य एवं अधिकार दोनों को सभी में समान रूप से बांटा जाए,ना की किसी एक ही पर दबाव बनाया जाए।ऐसा करने से प्रताड़ित व्यक्ति का मानसिक स्तर गिरने की पूर्ण संभावना रहती है। और प्रताड़ित व्यक्ति कुंठा और तनाव में जीता है। अर्थात मानसिक विकारों से ग्रसित रहता है।

इसीलिए हम सभी को मिलकर एक निर्णय पर पहुंचना अत्यंत आवश्यक है कि यदि हम रिश्तो में पारदर्शिता एवं ईमानदारी रखेंगे तो हम किसी भी प्रकार की समस्याओं का निराकरण बहुत सरलता से कर पाएंगे। कर्तव्य एवं अधिकारों का परिवार के सभी सदस्य समान रूप से निर्वहन करेंगे तो रिश्तो में प्रगाढ़ता आएगी‌।प्रेम और विश्वास और बढ़ेगा ना कि समाप्त होगा जो कि आज क्षीण होता जा रहा है। हमारी आने वाली पीढ़ी में भी पारिवारिक मूल्यों बढ़ेंगे।

हम सभी बुद्धिजीवी लोग हैं हमें ऐसी छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान करने की अत्यंत आवश्यकता है यही समस्याएं समाज की बड़ी-बड़ी समस्याओं में तब्दील हो जाती है। ऐसी छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान करने से ही प्रगति के बड़े-बड़े मार्ग प्रशस्त होंगे। हमें अपनी स्वार्थी और संकीर्ण विचारधारा से ऊपर उठकर सभी के कल्याण का मार्ग अपनाना होगा। तभी हम एक स्वस्थ मन का निर्माण कर सकेंगे ‌‌और ऐसा करने से हम स्वयं, हमारा परिवार, हमारा समाज और हमारा राष्ट्र तरक्की करेगा। चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बनेगा और प्रगति मार्ग में आने वाली समस्त बाधाओं का निराकरण हम स्वस्थ मन मस्तिष्क से कर पाएंगे। आने वाली पीढ़ी में स्वस्थ मानसिकता का संचार कर पाएंगे। हम स्वस्थ मन से स्वस्थ मानसिकता का निर्माण करेंगे जो कि एक विकासशील समाज का महत्वपूर्ण स्तंभ है।

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