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लड़कियों में सिगरेट की शुरुआत लड़कों से पहले:गर्भनिरोधक गोली और धूम्रपान से ब्लड क्लॉटिंग का खतरा, फिल्मों से स्मोकिंग सीख रहे युवा

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लड़कियों में सिगरेट की शुरुआत लड़कों से पहले:गर्भनिरोधक गोली और धूम्रपान से ब्लड क्लॉटिंग का खतरा, फिल्मों से स्मोकिंग सीख रहे युवा

जोया (बदला हुआ नाम) को पंजाब यूनिवर्सिटी के फार्मास्युटिकल साइंसेज में पढ़ाई के दौरान सिगरेट पीने की लत लगी। नतीजतन भूख कम लगती, वजन कम होने लगा। उन्हें ब्रॉन्कियल अस्थमा हो गया, लगातार खांसी आती। खैरियत ये रही कि वे डी एडिक्शन सेंटर पहुंचीं और थेरेपी के बाद नॉर्मल हो सकीं।

जोया की सिगरेट की लत छुड़ाने वाले ‘स्ट्रैटजिक इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ एजुकेशन एंड रिसर्च’ के फाउंडर डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि अमेरिका के बाद भारत दूसरे नंबर पर है जहां सबसे अधिक महिलाएं तंबाकू का सेवन कर रही हैं। यही कारण है कि महिलाओं में ब्रेस्ट, लंग्स, सर्वाइवल और गले के कैंसर के मामले अधिक मिल रहे। कई महिलाएं स्मोकिंग के साथ गर्भनिरोधक दवाएं भी ले रही हैं। ऐसा करना उनके लिए जानलेवा साबित हो रहा है।

दरअसल, स्मोकिंग को कई प्लेटफॉर्म पर ग्लैमराइज किया जा रहा। फिल्में देखकर युवा स्मोकिंग सीख रहे। कई ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर धड़ल्ले से स्मोकिंग से जुड़े सीन दिखाए जाते हैं जबकि किसी तरह का डिस्क्लेमर भी नहीं दिया जाता। इसे देखते हुए ही केंद्र सरकार ने ‘वर्ल्ड नो टोबैको डे’ पर ओटीटी पर भी 30 सेकेंड का ऑडियो-विजुअल डिस्क्लेमर दिखाना अनिवार्य कर दिया है। साथ ही ‘तंबाकू से कैंसर होता है’ ऐसी वैधानिक चेतावनी भी वेब सीरीज के बीच में दिखानी होगी

लड़कों के मुकाबले लड़कियां कम उम्र में स्मोकिंग शुरू करती हैं
ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे के अनुसार, भारत में साढ़े नौ साल की उम्र में लड़कियां स्मोकिंग शुरू कर देती हैं। जबकि लड़कों में साढ़े दस साल की उम्र से स्मोकिंग की शुरुआत होती देखी गई है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट कहती है कि 15 साल से ऊपर की 8.9% लड़कियां तंबाकू का इस्तेमाल कर रही हैं। शहरों से दोगुनी लड़कियां गांवों में तंबाकू किसी न किसी रूप में ले रही हैं। उदाहरण के लिए ओडिशा के शहरी इलाकों में जहां 16% महिलाएं तंबाकू का सेवन कर रही हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 28% है।

हालांकि शहरों में काम करने वाली महिलाओं के बीच स्मोकिंग तेजी से बढ़ी है।

इस सर्वे में यह भी सामने आया कि सिगरेट पीते समय लड़कियों के दिमाग में क्या चलता है?

महिलाएं क्यों पीती हैं सिगरेट

  • अधिकतर ने पीयर प्रेशर और काम से जुड़े तनाव की बात कही
  • स्ट्रेस से रिलीफ न मिलने पर सिगरेट की संख्या भी बढ़ाई
  • कुछ ने कहा कि स्मोकिंग से वेट लॉस होता है। इसलिए स्मोकिंग शुरू की
  • कुछ ने कूल और इंडिपेंडेंट दिखने के लिए स्मोकिंग को चुना

लड़के स्मोक कर सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं
‘द हेल्थ इकोनॉमिक्स जर्नल’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लड़कियों को लगता है कि लड़के सिगरेट पी सकते हैं तो हम क्यों नहीं।

डॉ. राकेश बताते हैं कि सिगरेट पीने वाली पढ़ी-लिखी लड़कियां इसे वुमन लिबरेशन से जोड़कर भी देखती हैं। ‘सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री’ के प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार मुंडा बताते हैं कि लड़कियां निगेटिव मूड और स्ट्रेस से बाहर आने के लिए स्मोकिंग शुरू करती हैं। मर्दों में कई बार यह शुरुआत शौकिया होती है।

PGI चंडीगढ़ के कम्युनिटी हेल्थ के प्रोफेसर डॉ. सोनू गोयल ने बताया कि हमारी सोसाइटी में स्मोकिंग महिलाओं के लिए टैबू रहा है। इसलिए समान अधिकार और महिलाओं की आजादी को भी इससे जोड़ा जाता है। लोगों का यह मानना है कि सिगरेट पीने वाली महिलाएं मजबूत दिल और दिमाग की होती हैं।

कुछ महिलाएं फिगर मेंटेन रखने के लिए सिगरेट पीती हैं। यह एक तरह का मिथ है कि निकोटिन लेने से फिगर मेंटेन रहेगा और निकोटिन से भूख कम लगती है। इसलिए वे स्मोकिंग नहीं छोड़ती कि कहीं मोटी न हो जाएं।

बड़ा दिखने के लिए या दूसरों को देखकर सिगरेट पीने की होती है शुरुआत
डॉ. मुंडा बताते हैं कि लड़के हों या लड़कियां, टीनएज में पहुंचने पर वे खुद को आईने में निहारते हैं। वे जल्द से जल्द वयस्क दिखने की कोशिश करते हैं क्योंकि लड़के और लड़कियां इस उम्र में अपनी बॉडी इमेज को लेकर अलर्ट हो जाते हैं।

डॉ. राकेश गुप्ता बताते हैं कि सिगरेट की लत के पीछे सामाजिक परिस्थितियां भी जिम्मेदार हैं। एक तिहाई से अधिक स्मोकर्स बताते हैं कि उन्होंने दूसरों को सिगरेट पीता देख स्मोकिंग शुरू की।

‘द जर्नल एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिकल साइकोलॉजी’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, निकोटिन लेने से सोसाइटी में घुलना-मिलना अधिक होता है। जिन स्मोकर्स पर रिसर्च की गई, उन्होंने बताया कि सिगरेट पीने से उनकी आपसी झिझक कम हुई, फ्रेंडली बिहेवियर बढ़ा और वे ज्यादा एक्स्ट्रोवर्ट बने।

ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे से पता चलता है कि भारत में 13-15 साल की उम्र में टीनजर्स टोबैको का इस्तेमाल कर रहे हैं।

25 करोड़ से अधिक बच्चों की जान पर खतरा
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि हर दिन पूरी दुनिया में 90 हजार टीनएजर्स (10 साल के बच्चे भी) टोबैको का इस्तेमाल शुरू करते हैं। इनमें से आधे वयस्क होने पर भी टोबैको नहीं छोड़ते। एडल्ट स्मोकर्स में आधे से ज्यादा लोग धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों के कारण जान गंवाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, टीनएजर्स में स्मोकिंग का जो ट्रेंड देखने को मिल रहा है, उससे 25 करोड़ से अधिक बच्चों को टोबैको निगल लेगा।

बच्चे फिल्मी हीरो की नकल करते हैं
डॉ. मुंडा बताते हैं कि स्क्रीन पर हीरो को देखकर बच्चे उनकी तरह बोलने, ड्रेसअप होने और उनके स्टाइल को अपनाने की कोशिश करते हैं। इसलिए वे उ‌नकी ही तरह सिगरेट का धुआं उड़ाना भी सीखते हैं। विज्ञापनों में मशहूर एक्टर्स या नामचीन खिलाड़ी को जब फ्लेवर्ड इलायची और पान मसाला का प्रचार करते देखते हैं तो वे भी ऐसा करना चाहते हैं और करते भी हैं।

पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. कामरान अली बताते हैं कि स्मोकिंग के साथ अगर महिलाएं गर्भनिरोधक दवाइयां खाती हैं तो यह बहुत खतरनाक होता है। पिल्स में एस्ट्रोजन हार्मोन होते हैं जो नसों में खून को गाढ़ा करते हैं। ऐसा ही स्मोकिंग के बाद भी होता है जिससे खून के थक्के जमते हैं। यानी स्मोकिंग और हाई डोज हार्मोन से रिस्क डबल हो जाता है, जिसका सीधा असर हार्ट पर पड़ता है।

परदे और दीवारों पर भी चिपक जाते हैं सिगरेट के केमिकल
डॉ. राकेश गुप्ता ने बताया कि जो सिगरेट पीता है उसे फर्स्ट हैंड स्मोकर कहते हैं। जो उनके आसपास बैठते हैं तंबाकू के धुएं को सांसों के जरिए अंदर लेते हैं वे सेकेंड हैंड स्मोकर्स हैं। थर्ड हैंड स्मोकर्स वे लोग होते हैं जो उन परदों और दीवारों के संपर्क में आते हैं जहां स्मोकिंग की गई हो। वहां सिगरेट के सैकड़ों केमिकल्स, पार्टिकुलेट मैटर चिपक जाते हैं। वहां से भी ये शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए कमरे या कार में सिगरेट पीना ज्यादा खतरनाक है।

निकोटिन कैसे कुछ ही सेकेंड में ब्रेन तक पहुंचता है
मुंह के अंदर झिल्ली जैसे असंख्य स्ट्रक्चर होते हैं जो ब्लड सप्लाई का काम करते हैं। इसे ओरल म्यूकोसा कहते हैं। जब कोई खैनी चबाता है तो निकोटिन ब्लड में मिलकर सीधा ब्रेन में जाता है।

दूसरा, स्मोकिंग करने पर धुआं सीधा फेफड़ों में पहुंचता है। वहां से निकोटिन ब्लड के जरिए ब्रेन तक जाता है।

OTT पर टोबैको को ग्लैमराइज किया जा रहा
तंबाकू बेचने वाली कंपनियां महिलाओं को लुभाने के लिए कई तरह से विज्ञापन दे रही हैं। फीमेल कैरेक्टर्स भी हाथों में सिगरेट पकड़े और कश लगाती दिखती हैं।

देश में 40 से अधिक OTT ऐप्स हैं, जिनकी 42 करोड़ से अधिक ऑडिएंस है।

ये ऐप्स ओरिजिनल कंटेंट के नाम पर युवाओं को अपनी ओर रिझाते हैं। कई ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर टोबैको से जुड़े COTPA (द सिगरेट्स एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट) नियमों का उल्लंघन होता है।

सिनेमा हॉल में स्मोकिंग से जुड़ी वैधानिक चेतावनी दिखाई जाती है, स्मोकिंग सीन में डिस्क्लेमर दिया जाता है, लेकिन कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर न डिस्क्लेमर दिखाया जाता है और न ही चेतावनी।

टोबैको फ्री फिल्म्स पर रिसर्च कर चुकीं और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की वाइस प्रेसिडेंट प्रोफेसर मोनिका अरोड़ा बताती हैं कि ओटीटी पर स्मोकिंग वाले सीन युवाओं को टोबैको का इस्तेमाल करने के लिए उकसाते हैं।

हेल्थ मिनिस्ट्री ने जारी की अधिसूचना
सुप्रीम कोर्ट में वकील रंजीत सिंह बताते हैं कि ओटीटी पर न केवल न्यूडिटी, सेक्स, वॉयलेंस परोसा जा रहा बल्कि कोटपा कानूनों की भी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इसे देखते हुए ही हेल्थ मिनिस्ट्री ने नोटिफिकेशन जारी किया है। अब ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी कोटपा कानूनों को लागू करना अनिवार्य होगा।

इस एमेंडमेंट के बाद वेब सीरीज की शुरुआत में तंबाकू से जुड़ी 30 सेकेंड की वैधानिक चेतावनी और शो के बीच में 20 सेकेंड की ऑडियो विजुअल क्लिप दिखाना अनिवार्य हो जाएगा।

ई-सिगरेट यानी फैशन स्टेटमेंट और कूल दिखने का फंडा
स्मोकिंग नहीं वेपिंग, स्मोकर्स नहीं वेपर्स। ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ’ की रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरी दुनिया में सिगरेट स्मोकिंग कम हुई है, लेकिन ई-सिगरेट में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 9 करोड़ से अधिक लोग ई-सिगरेट पी रहे हैं जिनमें 40% से अधिक कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स हैं। भारत में ई-सिगरेट बैन है।

डॉ. कामरान अली बताते हैं कि इन इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में लिक्विड निकोटिन को गर्म किया जाता है। इससे जो भाप बनती है उसे ही यूजर सांस में भरता है। वेपिंग शब्द वेपर से ही आया है। यूजर इसे फैशन स्टेटमेंट से जोड़कर देखते हैं।

कई फ्लेवर्स में मिल रहे वेप पेन्स
मेंथॉल, मिंट, मैंगो, ब्लैक बेरी, वनीला, ऐप्पल जैसे फ्लेवर्स वाले वेप पेन्स आसानी से मिल जाएंगे।

डॉ. राकेश गुप्ता बताते हैं कि अमेरिका की JUUL कंपनी दुनिया भर में वेपेराइजर डिवाइस बनाती है। भारत के युवा भी JUUL के प्रोडक्ट्स जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। JUUL मेंथॉल पॉड में मेंथॉल फ्लेवर है। यह तभी मिलेगा जब कम से कम पांच हजार रुपए की खरीदारी की जाए। इस पॉड की खासियत यह है कि आप खुद ही सेट करते हैं कि शरीर में कितना निकोटिन पहुंचना चाहिए।

‘तंबाकू से कैंसर होता है’, यह महज चेतावनी नहीं है बल्कि जीवन बचाने की सही और सच्ची अपील है। कई शोधों में यह प्रमाणित हो चुका है कि स्मोकिंग करने वालों की उम्र स्वस्थ लोगों की तुलना में 10 से 15 वर्ष कम हो जाती है। स्मोकिंग छोड़कर न केवल हम स्वस्थ रह सकते हैं बल्कि अपने आसपास के वातावरण को भी बेहतर रख सकते हैं।

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