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व्याकरण रचना रौ नीं, संरचना रौ काम है : प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण

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मातृभाषा में सृजन ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को विराट बनाता है : मधु आचार्य आशावादी

व्याकरण की कसौटी पर खरी उतरने वाली रचनाएं लेखक को बड़ा बनाती है : डाॅ. राजपुरोहित

बीकानेर । व्याकरण वेद का ही अंग है। षटवेदांग में जिन छ अंगो का उल्लेख मिलता है उनमें व्याकरण एक प्रमुख अंग है। महर्षि पतंजलि से आरम्भ व्याकरण की यह परम्परा आज राजस्थानी साहित्य के उत्तर आधुनिक तक विद्यमान है । यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.)अर्जुनदेव चारण ने नट साहित्य-सस्कृति संस्थान के बैनर तले शनिवार को रमेश इंग्लिश मीडियम स्कूल में आयोजन पुस्तक लोकार्पण समारोह में बतौर अपने अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किये। इस अवसर पर उन्होंने ‘ मधु आचार्य आशावादी के सृजन का व्याकरणिक अनुशीलन ‘ पुस्तक का महत्व उजागर करते हुए कहा कि ‘ व्याकरण रचना रौ नीं, बल्कि रचना री संरचना रौ काम है। ‘ जिसका मूल ध्येय सत्य की शोध करना है।

संस्थान के सचिव मोहित पार्थ ने बताया कि समारोह के मुख्य अतिथि ख्यातनाम रचनाकार मधु आचार्य आशावादी ने अपनी मातृभाषा में रचा गया साहित्य ही सम्पूर्ण विश्व में व्यक्ति के व्यक्तित्व को विराट स्वरूप प्रदान करता है। इस अवसर पर उन्होंने नगेन्द्र नारायण किराड़ू के साहित्य कर्म पर प्रकाश डालते हुए उन्हें एक उच्च श्रेणी का सृजनधर्मी रचनाकार होने के साथ ही सत्य शोधक-शोधार्थी एवं नवीन दृष्टि वाला आलोचक बताया। उन्होंने इस अवसर पर पुस्तक लोकार्पित होने वाले रचनाकार नगेन्द्र नारायण किराडू एवं सीमा पारीक को बधाई देते हुए मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण रचनाकार बताया।

लोकार्पण समारोह में विशिष्ट अतिथि जेएनवीयू में राजस्थानी विभाग के अध्यक्ष एवं प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा कि व्याकरण भाषा का शुद्ध रूप है इसलिए व्याकरण की कसोटी पर खरी उतरने वाली रचनाएं ही रचनाकार को बड़ा बनाती है। डाॅ.राजपुरोहित ने लोकार्पित पुस्तकों की आलोचनात्मक विवेचना करते हुए दोनों रचनाकारों की मानवीय संवेदना एवं नवीन साहित्यिक दृष्टि की सराहना करते हुए उन्हें समकालीन साहित्य के महत्वपूर्ण रचनाकार सिद्ध किया।

समारोह के आरम्भ में अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया। तत्पश्चात सूर्य प्रकाशन मंदिर के प्रकाशक डॉ. प्रशान्त बिस्सा जी ने आप ने दोनों लेखकों के साहित्य के विषय में जानकारी देते हुए स्वागत उदबोधन दिया। अतिथियों द्वारा पहले चरण में साहित्यकार नगेंद्र नारायण किराड़ू की हिंदी में लिखी पुस्तक ” मधु आचार्य आशावादी के सृजन का व्याकरणिक अनुशीलन ” का और फिर साहित्यकार श्रीमती सीमा पारीक की दो पुस्तकें कविता संग्रै ” साची कैऊ थांनै ” एवं बाल उपन्यास “काळजे री कोर ” राजस्थानी बाल साहित्य का लोकार्पण किया गया।

साहित्यकार नगेन्द्र किराडू जी ने अपनी पुस्तक के विषय में कहा की मैंने जब मधु आचार्य जी के साहित्य को पढ़ा और पाया की आप के साहित्य में व्याकरण का समीक्षात्मक मूल्याङ्कन करूँ एक शोधार्थी की भांति और फिर मैंने उनके लेखन के व्याकरण पर केंद्रित होते हुए यह अनुशीलन किया है। साहित्यकार श्रीमती सीमा पारीक ने बताया की मेरा साहित्य सृजन कोरोना काल में आरम्भ हुआ और मैंने बच्चों से प्रभावित होकर बाल साहित्य वो भी राजस्थानी में लिखना आरम्भ किया और उसका प्रमाण मेरी ये दो कृतियां आप के समक्ष है !
मंच से दोनों लेखकों का भी सम्मान सोल साफा और प्रतिक चिन्ह भेंट करते हुए किया गया !

पुस्तकों पर दो पत्र वाचन भी हुए जिसमे अशोक कुमार व्यास ने साहित्यकार नगेंद्र किराड़ू की पुस्तक पर अपना परचा पढ़ा । इन्होंने ने मधुजी की साहित्य साधना के विषय पर किये गए साहित्यकार नगेंद्र किराडू के साहित्य शोध कार्य पर एक शानदार पर जटिल शब्दों की हिंदी से पत्र रचा और पढ़ा । श्रीमती सीमा पारीक की पुस्तकों पर पत्र वाचन किया श्रीमती सविता जोशी जी ने आप ने पुरे पत्रवाचन को सार गर्भित विषय वस्तु जो की बाल साहित्य और राजस्थानी बाल साहित्य के लिए उपयोगी है और उसका समावेश साहित्यकार सीमा पारीक जी की पुस्तकों में उल्लेखित होने की बात को अपने पत्र से कही । मंच संचालन संजय पुरोहित एवं रमेश इंग्लिश स्कूल के प्रबंधक डॉ. सेनुका हर्ष ने आभार ज्ञापित किया। इस ऐतिहासिक साहित्यिक आयोजन में अनुराग हर्ष, धीरेंद्र आचार्य, अभिषेक आचार्य, अजय जोशी, पंकज पारीक, उत्कर्ष किराडू, उमेश व्यास, चन्द्र प्रकाश भादाणी, बजरंग जोशी, इन्द्र नारायण, राजेंद्र जोशी, कमल रंगा, सवाईसिंह महिया, नवनीत पांडे, रितेश व्यास, राजेंद्र स्वर्णकार सहित बीकानेर शहर के अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, शोध-छात्र एवं साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

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