शाह बोले- राहुल गांधी ने मणिपुर जाकर नाटक किया:राज्य में हिंसा शर्मनाक, उस पर राजनीति उससे भी ज्यादा शर्मनाक
अमित शाह जब अपना भाषण दे रहे थे, तब कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी बीच में बोल पड़े। इस पर शाह ने कहा- आपकी पार्टी ने आपको बोलने का समय नहीं दिया, लेकिन हम कल आपको अपने समय में से बोलने का मौका देंगे।
संसद के मानसून सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पर दूसरे दिन की बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर पर बात की। उन्होंने कहा- राहुल गांधी मणिपुर गए थे। उन्होंने कहा मुझे चुराचांदपुर जाना है। सेना ने कहा- हेलिकॉप्टर से जाइए। वे नहीं माने। तीन घंटे ऑनलाइन आकर नाटक किया, फिर लौट गए।
अगले दिन फिर हेलिकॉप्टर से ही गए। पहले दिन ही वे हेलिकॉप्टर से जा सकते थे, लेकिन उन्हें राजनीति करनी थी।
मैं वहां तीन दिन और तीन रात रहा। मेरे साथी नित्यानंद 23 दिन रहे। हमने जांच के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की कमेटी बनाई है। इसमें आईपीएस भी हैं। आज भी मैतेई और कुकी का गुस्सा शांत नहीं हुआ है, लेकिन हमने फोर्स लगा रखी है, इसलिए वहां शांति है।
मणिपुर में जो हुआ शर्मनाक है। उस पर राजनीति करना उससे भी ज्यादा शर्मनाक है। नरसिम्हा राव पीएम थे, तब भी मणिपुर में 700 लोग मारे गए, लेकिन पीएम वहां नहीं गए।
अमित शाह ने भाषण के दौरान NDA के सांसदों से भ्रष्टाचार क्विट इंडिया, परिवारवाद क्विट इंडिया, तुष्टीकरण क्विट इंडिया के नारे भी लगवाए।
हमने तो खुद चर्चा के लिए स्पीकर को लिखा
शाह ने कहा- ये कहा जा रहा है कि हम मणिपुर पर चर्चा नहीं चाहते, लेकिन सदन शुरू होने से पहले हमने इस पर चर्चा के लिए स्पीकर को लिखा था। विपक्ष चर्चा नहीं चाहता, वे सिर्फ विरोध करना चाहते हैं। मणिपुर जैसे मुद्दे पर आप गृहमंत्री को नहीं बोलने दे रहे हैं। आप हमें चुप नहीं कर सकते हो, हमें सुनना पड़ेगा।
म्यांमार बॉर्डर की फेंसिंग कर रहे
2021 में म्यांमार में सत्ता बदली। वहां मिलिट्री सरकार गिर गई। वहां कुकी डेमोक्रेटिक फ्रंट ने आंदोलन किया तो मिलिट्री सरकार ने दबाव बनाया। हजारों की संख्या में कुकी आदिवासी मणिपुर के जंगलों में बसने लगे। हमने सुरक्षा के लिहाज से फ्री बॉर्डर को बंद करने का फैसला लिया। 10 किलोमीटर फेंसिंग हो चुकी है। 7 किमी का काम जारी है।
यह फोटो 29 जून का है। राहुल गांधी सड़क मार्ग से चुराचांदपुर जाना चाह रहे थे, लेकिन सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें जाने नहीं दिया। अगले दिन वे हेलिकॉप्टर से गए थे।
अफवाह और हाईकोर्ट के फैसले ने आग में घी डाला
जनवरी से हमने शरणार्थियों को परिचय देना शुरू किया। बायोमेट्रिक परिचय लेकर उनका नाम वोटर लिस्ट और आधार लिस्ट से हटाया। इसी दौरान अफवाह फैली कि शरणार्थियों की बसाहट को गांव घोषित कर दिया गया। इसके बाद हाईकोर्ट का एक फैसला आया। इसने आग में घी डालने का काम किया। वहां एक जुलूस निकला। इस पर पथराव हुआ। इसके बाद बनी स्थितियों से क्लैश हुआ, जिसके बाद जो हुआ वो सबने देखा।
1993 में भी हिंसा हुई, PM नरसिम्हाराव मणिपुर नहीं गए
1993 में पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे। मणिपुर में कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री थे। उस समय नगा-कुकी संघर्ष हुआ। 700 लोग मारे गए। तब भी प्रधानमंत्री वहां नहीं गए थे। मैं नाम बोलना नहीं चाहता। गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड में शामिल है कि कौन इसमें शामिल है।
2004 में मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब वहां 1700 से ज्यादा लोगों के एनकाउंटर हुए। मणिपुर में जो हुआ वो नस्लीय हिंसा है। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
CM का सहयोग, फिर क्यों लगे राष्ट्रपति शासन
मोदी जी ने रात मैं मुझे फोन करके उठाया। हमने कई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की। वहां के अफसर बदले। हमने DGP बदला, चीफ सेक्रेटरी बदला, लेकिन सीएम ने हमें सहयोग किया। इसलिए वहां राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया। राष्ट्रपति शासन तब लगता है, जब राज्य सरकार सहयोग न करे।
शवों को दफनाने के लिए ITLF जगह बदलने को तैयार हुए
इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) के एक प्रतिनिधिमंडल ने गृह मंत्री से नई दिल्ली में मुलाकात की। ITLF नेताओं ने शवों को दफनाने के लतिए सरकारी सेरीकल्चर फार्म में उद्योग विभाग की जमीन देने की मांग की। सरकार ने प्रतिनिधिमंडल से अनुरोध किया कि वे उसी स्थान पर शव दफनाने पर जोर न दें। ये संघर्ष क्षेत्र में आता है और डीसी चुराचांदपुर से चर्चा करके दूसरा स्थान तय करें। इसे प्रतिनिधिमंडल ने अनुरोध को मान लिया है।
हिंसा में 131 लोग गंवा चुके हैं जान
मणिपुर में 3 मई से कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी हिंसा में अब तक 131 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 419 लोग घायल हुए हैं। 65,000 से अधिक लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। आगजनी की 5 हजार से ज्यादा घटनाएं हुई हैं। 6 हजार मामले दर्ज हुए हैं।
4 पॉइंट्स में जानिए क्या है मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इम्फाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इम्फाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
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