शिवराज और वसुंधरा का क्या होगा:नए चेहरे चुनने पर BJP दिग्गजों का क्या करती है; 4 राज्यों के एग्जाम्पल से समझिए
चाइनीज लेखक सून त्जू की एक किताब है- आर्ट ऑफ वॉर। इसमें ‘सरप्राइज’ को लड़ाई जीतने की महत्वपूर्ण शैली बताया गया है। भारतीय जनता पार्टी इस शैली का इस्तेमाल अपने CM चुनने में कर रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में BJP ने नए चेहरों को CM बनाकर सभी को सरप्राइज किया है।
अब अगला सवाल है कि नए CM बनने से खाली हुए पुराने कद्दावर नेताओं का क्या होगा, जो CM की रेस में सबसे आगे थे। जैसे- राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को स्पीकर बनाकर एडजस्ट कर दिया गया है।
जानेंगे कि वसुंधरा और शिवराज का आगे क्या होगा? BJP ने इस तरह के मामलों में पहले क्या किया था और एक्सपर्ट्स बताएंगे कि इस बार क्या हो सकता है…
सबसे पहले उन 4 प्रमुख राज्यों की कहानी, जहां BJP ने नए चेहरों को CM बनाकर सरप्राइज किया…
1. महाराष्ट्र: खडसे ने दो साल बाद BJP छोड़ी, गडकरी केंद्र में मंत्री हैं
BJP ने ‘सरप्राइज’ देने की शुरुआत 2014 के महाराष्ट्र इलेक्शन से की थी। ये वो दौर था जब BJP और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था। उद्धव ठाकरे ने चुनाव नहीं लड़ा था। वादे के अनुसार CM ज्यादा सीट लाने वाली BJP का होना था। मुख्यमंत्री पद की रेस में पार्टी के पुराने नेता एकनाथ खडसे और नितिन गडकरी थे। खडसे बहुत आक्रामक तरीके से खुद को CM पद का दावेदार बता रहे थे। BJP लीडरशिप ने कम उम्र के देवेंद्र फडणवीस को CM चुनकर सबको चौंका दिया था।
उनका क्या हुआ जो CM पद की दौड़ में थे
एकनाथ खडसे: तब संतुष्ट करने के लिए उन्हें ढेर सारे मंत्रालय दिए गए थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें तरजीह देना बंद कर दिया था। नतीजा, दो साल बाद उन्होंने खुद BJP छोड़कर NCP जॉइन कर ली थी।
नितिन गडकरी: पहले से ही केंद्र में थे। चुपचाप BJP लीडरशिप का आदेश माना। वर्तमान में सड़क परिवहन और राजमार्ग, जहाजरानी, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री हैं।
ये फोटो तब की है जब एकनाथ खडसे भाजपा में हुआ करते थे। 2014 में CM के नाम की घोषणा करनी थी, तो प्रस्ताव खडसे ने ही रखा था। सरकार में मंत्री बनाने के बाद खडसे को भाजपा नेतृत्व ने इतना इग्नोर किया कि उन्होंने दो साल बाद भाजपा छोड़कर NCP का दामन थाम लिया था।
2. हरियाणा: उसे CM बनाया जो विधायक तक नहीं थे
BJP ने 2014 में प्रदेश अध्यक्ष प्रो. रामबिलास शर्मा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। ये चुनाव महाराष्ट्र के साथ ही हुए थे। CM पद के लिए प्रो. रामबिलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यु और अनिल विज का नाम चल रहा था। सब ये मानकर चल रहे थे कि जाट बहुल हरियाणा में इसी कम्युनिटी से कोई CM होगा, लेकिन BJP लीडरशिप ने पंजाबी कम्युनिटी से मनोहर लाल खट्टर काे CM बनाकर सबको चौंका दिया। उस समय मनोहर लाल विधायक भी नहीं थे, लेकिन संघ का खास होने के कारण ये पद उन्हें मिला था।
उनका क्या हुआ जो CM पद की दौड़ में थे
प्रो. रामबिलास शर्मा: शिक्षा एवं भाषा, तकनीकी शिक्षा, टूरिज्म, सिविल एविएशन, संसदीय मामले, पुरातत्व एवं म्यूजियम, हॉस्पिटैलिटी मंत्री बनाया गया था।
अनिल विज: स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, आयुष, चुनाव, खेल एवं युवा मामले, पुरालेखागार मंत्री बनाया गया था।
कैप्टन अभिमन्यु: वित्त, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन, आबकारी एवं कराधान, योजना, पर्यावरण, उद्योग एवं वाणिज्य, श्रम एवं रोजगार, विधि एवं विधायी, इंस्टीट्यूशनल फाइनेंस एवं क्रेडिट कंट्रोल, चकबंदी, रिहैब्लिटेशन, ESI मंत्री बनाया गया था।
2019 में जब दोबारा BJP सरकार बनी तो प्रो. रामबिलास शर्मा और कैप्टन अभिमन्यु चुनाव हार गए थे। अनिल विज जीते और अभी भी ताकतवर मंत्री हैं।
2014 में मनोहर लाल को CM पद की शपथ दिलाते राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी। जब मनोहर लाल ने शपथ ली थी, उस समय वे विधायक भी नहीं थे।
3. गुजरात: 3 CM बदले, हर बार चौंकाया
2014 में हुए लोकसभा चुनाव में BJP की सरकार बनी। नरेंद्र मोदी केंद्र में प्रधानमंत्री बने और गुजरात के CM का पद खाली हो गया। वो जगह मंत्रिमंडल की सबसे सीनियर मिनिस्टर आनंदी बेन पटेल ने ली।
आनंदी बेन 22 मई 2014 से 7 अगस्त 2016 तक करीब सवा दो साल CM रहीं। उन्होंने 75 साल की होने के कारण इस्तीफा दे दिया था। नए CM के नामों में नितिन पटेल का नाम तेजी से चल रहा था।
नितिन पटेल के घर पर पूजा हाे चुकी थी। उनके समर्थकों ने मिठाइयां भी बांट दी थीं। नितिन अपने CM एजेंडे पर मीडिया में इंटरव्यू भी दे रहे थे, लेकिन उस दिन 7 अगस्त को शाम चार बजे के बाद एकाएक हालात बदले और BJP के प्रदेश अध्यक्ष विजय रूपाणी का नाम CM के रूप में घोषित करा दिया गया। नितिन पटेल को डिप्टी CM पद से संतोष करना पड़ा था।
जब पांच साल बाद विजय रूपाणी को लेकर असंतोष हुआ तो फिर CM बदलना पड़ा। इस बार भी नितिन पटेल सशक्त दावेदार थे, लेकिन BJP ने चौंकाते हुए भूपेंद्र पटेल को 13 सितंबर 2021 को CM बना दिया। भूपेंद्र पांच साल पहले ही विधायक बने थे।
इस बार भी नितिन पटेल ने पहले ही बयान दे दिया था कि CM ऐसा होना चाहिए जो लोकप्रिय, अनुभवी और सबको साथ लेकर चलने वाला हो। ऐसी अफवाह है कि मुझे मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन सच ये है कि फैसला हाईकमान करेगा। हुआ भी ऐसा ही हाईकमान ने CM का पद भूपेंद्र पटेल की झोली में डाल दिया था।
उनका क्या हुआ जो CM पद की दौड़ में थे
आनंदी बेन पटेल: राज्यपाल बनाई गईं।
नितिन पटेल: दो बार नाम चला, लेकिन दोनों बार डिप्टी CM बनाए गए। पिछला चुनाव लड़ने से मना किया। जुलाई 2023 में राजस्थान का प्रभारी बनाया गया।
विजय रूपाणी: सालभर बाद पंजाब प्रदेश का प्रभारी बनाया गया। कुछ दिन पहले ही उन्हें लोकसभा का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है।
आनंदी पटेल के शपथ ग्रहण समारोह में PM नरेंद्र मोदी। पास में नितिन पटेल हैं। पटेल को उम्मीद थी कि उन्हें ही CM बनाया जाएगा, लेकिन भाजपा ने यहां आनंदी को CM बनाकर सबको चौंका दिया था।
4. कर्नाटकः येदियुरप्पा को हटाया, लेकिन जरूरत पड़ी तो वापस भी लाए
23 जुलाई 2021 को येदियुरप्पा की उम्र 78 साल थी। आलाकमान ने उनसे कहा कि आपकी उम्र ज्यादा हो गई। अब आपको इस्तीफा दे देना चाहिए। BJP आलाकमान 17% वोट बैंक वाले लिंगायत के सबसे बड़े नेता से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था। इस कारण येदियुरप्पा से कहा कि आप जिसे कहेंगे उसे आपकी जगह CM बना दिया जाएगा। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं और BJP आलाकमान ने लिंगायत समुदाय के बसवराज बोम्मई को CM बनाया।
BJP ने सर्वे से भांप लिया कि उम्रदराज होने के कारण दो साल पहले हटाए जा चुके येदियुरप्पा के बिना 2023 मई में होने वाला कर्नाटक विधानसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता। साल की शुरुआत में ही BJP आलाकमान ने फिर से येदियुरप्पा को तरजीह देना शुरू किया।
24 मार्च को गृहमंत्री अमित शाह खुद उनके घर ब्रेकफास्ट मीटिंग करने गए थे। BJP ने उन्हें वापस बिना पद के कमान सौंप दी। यहां तक कि टिकट वितरण भी येदियुरप्पा के अनुसार किया गया, बावजूद इसके BJP चुनाव हार गई। BJP आलाकमान ये बात समझ गया है कि कर्नाटक में येदियुरप्पा के बिना जीता नहीं जा सकता है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र को 11 नवंबर को कर्नाटक BJP का अध्यक्ष बनाया गया है।
ये तस्वीर 23 मार्च 2023 की है, जब अमित शाह येदियुरप्पा के घर नाश्ता करने गए थे। येदियुरप्पा को पहले भाजपा ने CM पद से हटाया था, लेकिन बाद में लिंगायत वोटरों को साधने के लिए वापस ले आए थे। चुनाव की कमान येदियुरप्पा के पास ही थी। हालांकि इस चुनाव में भाजपा हार गई थी।
ऊपर 4 राज्यों के उदाहरण से समझा जा सकता है कि BJP आमतौर पर जिन दिग्गजों को CM नहीं बनाती, उनके साथ 3 तरह का सलूक होता है…
- उन्हें राज्य में ही बड़े-बड़े मंत्रालय देकर कॉम्पन्सेट किया जाता है।
- उन्हें संगठन का काम या राज्यपाल बनाया जा सकता है।
- उन्हें वापस मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है जैसा कर्नाटक में देखने को मिला।
शिवराज और वसुंधरा का आगे क्या होगा? इस सवाल को हमने एक्सपर्ट्स से जानने की कोशिश की…
वसुंधरा केंद्र में एडजस्ट हो सकती हैं या राजभवन जाएंगी
दैनिक भास्कर (डिजिटल) राजस्थान के स्टेट एडिटर किरण राजपुरोहित के मुताबिक मुख्यमंत्री पद की सबसे सशक्त दावेदारों में वसुंधरा राजे का नाम चल रहा था। आलाकमान ने वसुंधरा को CM तो नहीं बनाया, लेकिन अब उन्हें केंद्र में एडजस्ट कर सकता है।
उन्हें कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा इलेक्शन को लड़ने के लिए कहा जा सकता है। यदि राजे इस ऑफर को स्वीकार करती हैं तो उन्हें केंद्र में मंत्री पद दिया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि उन्हें पारंपरिक सीट झालावाड़-बारां से उतारा जा सकता है। वर्तमान में उनके बेटे दुष्यंत यहां से सांसद हैं।
ऐसे में दुष्यंत का क्या होगा? ये अभी क्लियर नहीं है। एक संभावना ये भी है कि झालरापाटन से दुष्यंत को विधानसभा में उतार दिया जाए। ये समीकरण वसुंधरा और दुष्यंत के अनुशासन पर ही काम करेगा। वो पहले से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, ऐसे में नया पद मिलने की संभावना कम है। एक कयास ये भी है कि उन्हें अब राज्यपाल बना दिया जाए।
राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार अनिल भारद्वाज कहते हैं कि BJP आलाकमान अभी जो भजनलाल मॉडल लाया है, उसे देखते हुए लगता है कि वसुंधरा का आगे का रास्ता आसान नहीं है। संभवत: उनकी विदाई केंद्र में मंत्री बनाकर हो सकती है। अगर उन्हें केंद्र में ले भी लिया जाता है, तो कोई खास पोर्टफोलियो नहीं दिया जाएगा। कुल मिलाकर आगे जो भी मिलेगा आखिरी बार होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि BJP नए नेतृत्व की तरफ देख रही है।
अपने नाम का ऐलान होने के बाद CM भजनलाल पूर्व CM वसुंधरा राजे का अभिवादन करते हुए। जब भजनलाल के नाम की पर्ची राजे को दी गई तो उनके चेहरे की हवाइयां उड़ गई थीं।
शिवराज की केंद्र जाने की संभावना, क्योंकि MP में दूसरा पावर सेंटर नहीं चाहता आलाकमान
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने 3 बयान दिए…
1. मित्रों अब विदा.. जस की तस रख दीनी चदरिया
2. मैं मध्य प्रदेश में हूं और मैं यहीं रहूंगा। मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता था कि मैं जाकर अपने लिए कुछ मांगने के बजाय मर जाना पसंद करूंगा।
3. विधायक दल की बैठक से पहले कहा- राम-राम
दैनिक भास्कर (डिजिटल) में मध्य प्रदेश के स्टेट एडिटर राजेश माली कहते हैं कि रिजल्ट के बाद शिवराज का रुख चौंकाने वाला रहा है। चाहे वह दिल्ली नहीं जाने का बयान रहा हो या कुछ मांगने से अच्छा मर जाने की बात। शायद पार्टी को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पार्टी उन्हें क्या ऑप्शन देती है।
फिलहाल दो ही विकल्प दिख रहे हैं। पहला- केंद्र में मंत्री, दूसरा संगठन में राष्ट्रीय स्तर का पद। पार्टी कतई नहीं चाहेगी कि MP में वे पावर सेंटर बनें, इसलिए उन्हें जल्द दिल्ली बुलाया जा सकता है। जिस तरह का अनुशासन शिवराज दिखा रहे हैं उससे लगता है कि उन्हें पार्टी का आदेश मानना ही है।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि जिस तरह से शिवराज सिंह कह रहे हैं कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए, हो सकता है आलाकमान उन्हें रेस्ट ही दे दे। शिवराज खुद चुनाव परिणाम आने के बाद छिंदवाड़ा की हारी 9 सीटों के कारण जानने पहुंचे थे। ऐसे में हो सकता है कि लोकसभा चुनाव में उन्हें BJP कमलनाथ के खिलाफ उतार दे।
शिवराज के पास कांग्रेस के दिग्गज के खिलाफ चुनाव लड़ने का अनुभव है। शिवराज सिंह चौहान ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1990 में बुधनी से लड़ा था। उसके बाद वे सांसद भी रहे। अपने 33 साल के राजनीतिक करियर में केवल एक बार 2003 विधानसभा चुनाव में शिवराज हारे हैं, जब उन्हें राघोगढ़ में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ उतारा गया था।
अपने नाम की घोषणा होने के बाद CM मोहन यादव ने पैर छूकर शिवराज का आशीर्वाद लिया। जिस तरह से मोहन यादव का नाम चौंकाने वाला है, शिवराज जब पहली बार CM बने थे तो उनके नाम ने भी दिग्गजों को चौंकाया था।
छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को स्पीकर बनाया, रेणुका को राज्य में मंत्री बना सकते हैं
दैनिक भास्कर (डिजिटल) छत्तीसगढ़ के स्टेट एडिटर यशवंत गोहिल बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में CM पद की रेस में चार नाम चल रहे थे- पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह, प्रदेश BJP अध्यक्ष अरुण साव और विष्णुदेव साय।
चारों नामों में विष्णुदेव साय की प्रोफाइल सबसे कमजोर थी। वे पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री, पूर्व BJP अध्यक्ष रहे। उन्हें पिछली बार आदिवासी दिवस के दिन ही BJP अध्यक्ष के पद से हटाया गया था, जिसे लेकर विपक्ष ने काफी हंगामा किया कि आदिवासी दिवस के दिन BJP ने OBC वर्ग से अरुण साव को अध्यक्ष बनाकर आदिवासियों का अपमान किया है।
विष्णुदेव साय अब CM बन गए। अरुण साव डिप्टी CM बन गए। डॉ. रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाकर ‘एडजस्ट’ किया गया है। पिछले साल चर्चा थी कि उन्हें राज्यपाल बनाया जा सकता है, लेकिन वे बनना नहीं चाहते। उनकी स्टेट पॉलिटिक्स में रुचि थी, जिसे पार्टी ने स्वीकार भी किया। पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका में वे अब भी हैं।
छत्तीसगढ़ के सारे BJP सांसदों में रेणुका सिंह एकमात्र केंद्रीय मंत्री थीं। सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाने की रणनीति के तहत उन्होंने विधानसभा लड़ा और जीता भी। जीतने के बाद वे सांसद पद से इस्तीफा दे चुकी हैं। इसका अर्थ ये है कि उन्हें नए मंत्रिमंडल में लिया जा सकता है, क्योंकि पार्टी केंद्र से मंत्री पद छीनकर सिर्फ विधायक बनाकर स्टेट में नहीं रखना चाहेगी। जिस सांसद के अंतर्गत 8 विधानसभा आते हैं, उन्हें केवल एक विधानसभा का विधायक बनाना डिमोशन होगा।
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