शिवराज के 10 मंत्री मोहन कैबिनेट से आउट क्यों:भूपेंद्र को शिवराज के खास होने का नुकसान, सिंधिया के प्रभुराम परफॉर्मेंस में पिछड़े
भोपाल
मुख्यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट में शिवराज सरकार में मंत्री रहे 10 चेहरों को बाहर कर दिया गया है। इनमें शिवराज सरकार में प्रभावशाली मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह, सिंधिया समर्थक डॉ. प्रभुराम चौधरी, बृजेंद्र सिंह यादव, पूर्व सीएम वीरेंद्र सकलेचा के बेटे ओमप्रकाश सकलेचा, आदिवासी नेता बिसाहूलाल सिंह, मीना सिंह, सिख समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले हरदीप सिंह डंग और ऊषा ठाकुर जैसे नाम शामिल हैं।
शिवराज सरकार में मंत्री रहे सभी 10 चेहरों में कौन, कहां और क्यों मंत्री बनने से चूक गया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट…
2020 में जब शिवराज सिंह चौहान ने पांचवीं बार प्रदेश की कमान संभाली, तब परिस्थितियां दूसरी थी। सिंधिया समर्थक विधायकों की वजह से भाजपा सरकार को वापसी का मौका मिला था। मंत्रिमंडल में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और उपचुनाव जीते अधिकतर विधायकों को मंत्री बनाना पड़ा था। इससे क्षेत्रीय संतुलन गड़बड़ा गया। महाकौशल से सिर्फ दो मंत्री बन पाए थे। मोहन सरकार में क्षेत्रीय संतुलन के साथ-साथ जातीय समीकरण भी साधा गया है। कई बार मंत्री रह चुके चेहरों की बजाय नए विधायकों को जगह दी गई है।
गोपाल भार्गव: पहले ही कर दिया था इशारा
सागर जिले की रहली सीट से लगातार 9वीं बार जीते हैं। पिछली सरकार में PWD मंत्री थे। प्रोटेम स्पीकर बनाकर पहले ही संकेत दे दिया था कि उन्हें इस बार मंत्री नहीं बनाया जाएगा। सागर में जब पीएम संत रविदास संग्रहालय के भूमिपूजन में पहुंचे थे, तब सबसे ज्यादा भीड़ रहली से ही पहुंची थी। 70 साल की उम्र भी उनके मंत्री बनने में रोड़ा बना। मोहन सरकार में मंत्री बनाए गए चेहरों में 67 साल के विधायकों को ही रखा गया है। भार्गव पहले ही घोषणा कर चुके थे कि ये उनका आखिरी चुनाव है। ऐसे में सरकार ने भविष्य को देखते हुए नए चेहरों को चुना है।
आगे क्या : ये इनका आखिरी चुनाव है। फिलहाल नई भूमिका मिलती नहीं दिख रही।
भूपेंद्र सिंह: शिवराज कैबिनेट में ताकतवर होने का नुकसान
भूपेंद्र सिंह, सागर जिले की खुरई सीट से लगातार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। पिछली बार नगरीय प्रशासन विभाग के कद्दावर मंत्री थे। बताया जाता है कि पिछली बार सागर के दूसरे विधायकों ने खुलकर भूपेंद्र की शिकायत की थी। गोविंद सिंह राजपूत से उनकी खुली अदावत भी संगठन तक पहुंची थी। लोकायुक्त में भ्रष्टाचार की शिकायत के कारण केंद्रीय नेतृत्व की इनसे नाराजगी भी रही। गोपाल भार्गव को मंत्री नहीं बनाया है, इसलिए बुंदेलखंड में क्षेत्रीय संतुलन की दृष्टि से भी इन्हें ड्रॉप किया है। शिवराज कैबिनेट में ताकतवर होने का भी नुकसान उठाना पड़ा।
आगे क्या: केंद्रीय नेतृत्व की नाराजगी की वजह इन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलती नहीं दिख रही।
बृजेंद्र प्रताप सिंह: खनिज मंत्री रहते चहेतों पर कृपा के कारण इमेज प्रभावित
बृजेंद्र प्रताप सिंह पन्ना से विधायक और पिछली सरकार में खनिज मंत्री थे। चार बार के विधायक रहे। खनिज मंत्री रहते रिश्तेदार और चहेते लोगों के खिलाफ कई शिकायतें संगठन तक पहुंची थी, जिस कारण उनकी इमेज प्रभावित हुई। सामान्य क्षत्रिय समाज से आते हैं, इस कारण जातिगत समीकरण भी इस बार इनके पक्ष में नहीं रहे। शिवराज के करीबी होने का नुकसान भी उठाना पड़ा।
आगे क्या : फिलहाल कोई जिम्मेदारी मिलती नहीं दिख रही।
मीना सिंह: भ्रष्टाचार के आरोप के चलते बाहर हुईं
मानपुर विधानसभा से पांचवीं बार की विधायक मीना सिंह पिछली सरकार में मंत्री थीं। आदिवासी एवं महिला कोटे से मौका मिला था। इस बार पार्टी ने उनकी बजाय मंडला से पूर्व राज्यसभा सांसद संपतिया उइके को मंत्री बनाया। मीना सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप थे, इसलिए आदिवासी कोटे से दूसरा चेहरा चुना गया।
आगे क्या : फिलहाल सरकार में कोई जिम्मेदारी मिलती नहीं दिख रही। संगठन में मौका मिल सकता है।
हरदीप सिंह डंग: मालवा का कोटा फुल होने से बाहर रह गए
सुवासरा से चार बार के विधायक हरदीप सिंह डंग को पिछली बार मंत्री बनने का मौका मिला था। ये भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। मालवा-निमाड़ से सीएम, डिप्टी सीएम के अलावा 7 विधायक मंत्री बन चुके हैं। डंग शिवराज के नजदीकी रहे, संगठन से तालमेल नहीं बन पा रहा था, जिस कारण भी बाहर रहना पड़ा।
आगे क्या : अभी मंत्रिमंडल में कोई भी सिख चेहरा नहीं है। आगे मौका मिल सकता है।
ओमप्रकाश सखलेचा : परफॉर्मेंस और क्षेत्रीय समीकरण में पिछड़े
जावद से पांचवीं बार विधायक ओमप्रकाश सखलेचा पूर्व सीएम वीरेंद्र सखलेचा के बेटे हैं। पिछली सरकार में मंत्री थे। जैन समाज से आते हैं। मालवा में पहले ही सबसे अधिक प्रतिनिधित्व हो चुका था। शिवराज कैबिनेट में एमएसएमई मंत्री रहते हुए इनका परफॉर्मेंस भी अच्छा नहीं रहा।
आगे क्या : लोकसभा चुनाव के लिए दावेदारी कर रहे हैं, यदि पार्टी वहां टिकट बदलती है तो मौका मिल सकता है।
बिसाहूलाल: विवादित बयान से समीकरण बिगड़े, आदिवासी कोटा भी फुल
1980 में अनूपपुर से जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे बिसाहूलाल सिंह महाकौशल के बड़े आदिवासी नेता हैं। 7वीं बार विधायक बने। उम्र 73 साल हो चुकी है, यही मंत्रिमंडल से बाहर होने की वजह बनी। पूर्व में महिलाओं पर उनके विवादित बयानों से पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। मंत्रिमंडल में आदिवासी कोटे से 4 मंत्री बनाने के बाद जगह भी नहीं बन रही थी।
अब आगे क्या: 73 साल की उम्र को देखते हुए इन्हें कोई जिम्मेदारी मिलती नहीं दिख रही।
ऊषा ठाकुर: क्षेत्रीय संतुलन में फिट नहीं बैठीं
मालवा में भाजपा का प्रमुख चेहरा ऊषा ठाकुर चौथी बार विधायक बनीं। चार बार तीन सीटों से लड़ चुकी हैं। क्षेत्रीय समीकरणों की वजह से मौका नहीं मिल पाया। इंदौर से कैलाश विजयवर्गीय और तुलसी सिलावट मंत्री बनाए गए हैं। संगठन के साथ इनका तालमेल भी नहीं बैठ पा रहा था। इसी के चलते विधायक के टिकट पर भी आखिरी मौके पर सहमति बनी थी।
अब आगे क्या : श्रीरामचंद्र वनगमन पथ न्यास में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।
डॉ. प्रभुराम चौधरी: तबादलों से सुर्खियों में रहे
सांची से विधायक डॉ. प्रभुराम चौधरी सिंधिया समर्थक हैं। पिछली बार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। उनके विभाग से संबंधित कई शिकायतें चर्चा में थी। उनके स्वास्थ्य मंत्री रहते तबादलों की खूब चर्चा हुई। इनके बंगले के बाहर पर्चे लगाए गए थे- बिकाऊ लाल चौधरी…। परफार्मेंस भी उल्लेखनीय नहीं रहा।
अब आगे क्या: फिलहाल कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने की उम्मीद नहीं।
बृजेंद्र यादव: यादव समीकरण के कारण बाहर रहना पड़ा
बृजेंद्र मुंगावली विधानसभा सीट से लगातार तीसरी बार जीते। सिंधिया समर्थक हैं। पिछली बार राज्यमंत्री बनाए गए थे। 5वीं पास बृजेंद्र यादव जातीय समीकरण के चलते बाहर हो गए। वे ओबीसी की यादव जाति से हैं। सीएम मोहन यादव के बाद कृष्णा गौर भी यादव समाज से ही आती हैं। ऐसे में तीसरा यादव एडजस्ट करना मुश्किल हो रहा था।
अब आगे क्या : लोकसभा चुनाव में मौका मिल सकता है।
Add Comment