SPORTS / HEALTH / YOGA / MEDITATION / SPIRITUAL / RELIGIOUS / HOROSCOPE / ASTROLOGY / NUMEROLOGY

शिशु चिकित्सा व नाड़ी परीक्षण के ज्ञाता थे–लंकापति रावण: जानें रावण के बारे में ये अनसुने तथ्य

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

आलेख: श्रीमती अंजना शर्मा(ज्योतिष दर्शनाचार्य)(शंकरपुरस्कारभाजिता) पुरातत्वविद्, अभिलेख व लिपि विशेषज्ञ प्रबन्धक देवस्थान विभाग, जयपुर राजस्थान सरकार

पांडुलिपियाँ विपुल ज्ञान का भंडार है। राजस्थान में प्राचीन समय से ही ज्ञान का संरक्षण, लेखन, अन्वेक्षण, होता रहा है। सभी राजघरानो से विद्वानों को संरक्षण प्राप्त होता रहा उसी के साथ इस धरोहर को भी सहजा जाता रहा है। जिससे आज हम लाभान्वित हो रहे हैं। पांडुलिपि सर्वेक्षण के दौरान कई दुर्लभ ग्रन्थो का पता चला जिनमें से लंकापति रावण रचित चिकित्सा शास्त्र के ग्रंथ हैं ।रावण कृत तंत्र मंत्र, संहिता, ग्रन्थो का तो उल्लेख पर्याप्त मिलता है ।परंतु रावण चिकित्सा शास्त्र के सिद्धहस्त रहे हैं, यह जानकारी निश्चित ही नवीन है और अचरज में डाल देती है।

आयुर्वेद की प्राचीनता:-

आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय शास्त्र है। चरकसंहिता के अनुसार धमार्थकाममोक्ष के साधन में शारीरिक शक्तियों के दौर्बल्य से बाधा हुई तो कल्याणकारी 52 ऋषियों की मण्डली हिमालय-घाम में एकत्र हुई। सभी ऋषियों ने चिन्तन से जाना कि देवराज इन्द्र ही मृत्युलोक के रोग-शमन का उपाय बता सकते हैं। तदनुसार ऋषि भारद्वाज इन्द्र के पास पहुँचे और उन्होंने उनसे आयुर्वेद-ज्ञान प्राप्त किया। ब्रह्मा ने. ऋषियों की सुविधा हेतुआयुर्वेद-आगम को आठ भागों अर्थात् तंत्रों में विभक्त किया (1) शल्य (2) शालाक्य (3) काचिकित्सा (4) भूतविद्या (5) कौमारभृत्य (6) अगदतंत्र (7) रसायन और (8) वाजीकरण

रावण रचित चिकित्सीय ग्रंथ:
कौमारभृत्य – चिकित्सा के प्रथम आचार्य माने जाते हैं, जिन्होंने इस तंत्र का ज्ञान प्रजापति कश्यप से प्राप्त किया। तदुपरान्त पार्वतक बंधक प्रौर रावण के नाम उल्लेखनीय है। रावण की रचनाओं में कुमारतंत्र, बालचिकित्सा, नाड़ी-परीक्षा अर्कप्रकाश और उड्डीशतंत्र आदि उल्लेखनीय हैं। श्री गिरीन्द्रनाथ ने ‘कुमारतंत्र’ का कर्त्ता लकाधिपति रावण को ही माना है ।

कौमारभृत्य विषय परक अर्थात् बालतंत्र विषयक अनेक आयुर्वेदीय अप्रकाशित रचनाए राजस्थान के विभिन्न ग्रन्थ-भण्डारों में उपलब्ध हैं। जिनकी जानकारी चिकित्साक्षेत्र में आवश्यक है। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जयपुर,पद्म श्री नारायण दास संग्रहालय एवं पांडुलिपि शोध संस्थान जयपुर, अजय जैन ग्रंथालय बीकानेर एतद्विषयक अनेक अप्रकाशित रचनाएं विभिन्न हस्तलिखित ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं। यद्यपि ऐसी अनेक रचनायों का विवरण प्रतिष्ठानो की हस्तलिखित ग्रन्थ-सूचियों में भी प्रकाशित किया गया है। तथापि वैद्य-समाज का ध्यान अभी तक इस दिशा में अपेक्षित रूप में आकर्षित हो जाये तो य़ह ज्ञान हमे लाभान्वित कर पायेगा I

FacebookWhatsAppTelegramLinkedInXPrintCopy LinkGoogle TranslateGmailThreadsShare

About the author

THE INTERNAL NEWS

Add Comment

Click here to post a comment

error: Content is protected !!