सरकारें बदल रहीं मगर काम रफ्तार नहीं पकड़ रहा:50 हजार लोगों के लिए मुसीबत बना है अधूरा लालगढ़ आरओबी
लालगढ़ रेलवे क्रॉसिंग पर ओवरब्रिज का काम डेढ़ साल से बंद है। वो भी तब जब ब्रिज का काम डेडलाइन से तीन साल पीछे चल रहा है। अभी भी काम एक साल में पूरा हो जाएगा इसकी कोई उम्मीद नहीं। यह मार्ग शुरू हो जाय तो रोज करीब 50 हजार लोगों को राहत मिलेगी, अधूरा होने से 5 साल से लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है। 83 करोड़ से बनने वाले इस 830 मीटर लंबे ब्रिज में 530 मीटर काम हो चुका है। मात्र 300 मीटर काम कराया जाना बाकी है।
2017 के आसपास ओवरब्रिज का काम शुरू हुआ था। तब कई साल रास्ता बंद रहा। अब हल्के वाहनों के लिए रास्ता खुला है। इस रास्ते से पूगल और खाजूवाला से आने वाले वाहन मंडी तक आते हैं। जोधुपर-जयपुर बाईपास और श्रीगंगानगर रोड की तरफ वाहनों को जाने में आसानी होती है। रामपुरा, मुक्ताप्रसाद की आेर जाने का आसान रास्ता था। इसी को देखते हुए 83 करोड़ रुपए की लागत से ओवरब्रिज बनाने की योजना बनाई गई थी। दिसंबर 2020 तक इसे पूरा करना था। 2024 के भी दो महीने बीत गए हैं।
एक निजी संपत्ति के विवाद का निस्तारण ना होने से पूरा काम रुका है। ब्रिज न बनने से पूरी सड़क जर्जर हो चुकी है। लालगढ़ रामपुरा वालों के लिए रास्ता ही अब गजनेर रोड होकर आने जाने के लिए बचा है। नई कलेक्टर नम्रता वृष्णि ने दिन भर बैठक करने के बाद तय कर दिया कि नगर विकास न्यास ही निजी संपत्ति का आंकलन कर मुआवजा राशि तय करे और आरएसआरडीसी को दे। आरएसआरडीसी उसका भुगतान कर आगे काम शुरू कराए।
83 कराेड़ खर्च करने के बाद भी 17 महीने से लालगढ़ आरओबी का काम ठप है, 29 कराेड़ के टेंडर फिर बुधवार काे मुख्यालय भेजे
2 बार टेंडर किए कोई नहीं आया, पहले कोरोना फिर मुआवजे के विवाद में रुका काम
इस आरओबी में शुरू से ही अडंगे आते रहे हैं। इसे पूरा करने के लिए तीन साल पहले डेड लाइन दिसंबर 2020 थी। 2019 में आए कोरोना के कारण श्रमिक और मशीनें नहीं मिली। उस वक्त सरकार ने भी तमाम निर्माण कार्य रोकने के लिए कह दिया था ताकि कोरोना न फैले। उसके बाद दूसरी लहर आई लेकिन तब काम शुरू कर दिया था। तब रेलवे की भी अनुमति नहीं थी लेकिन बाद में मिल गई। 830 मीटर लंबे ब्रिज का करीब 500 मीटर हिस्सा ही तैयार हो पाया है।
रेलवे का पूरा हिस्सा बाकी है। इसे पूरा करने के लिए आरएसआरडीसी फर्म को कई पत्र लिख चुका है लेकिन ठेकेदार पर जूं तक नहीं रेंगी। रही। बाद में मामला एक निजी संपत्ति का आ गया। उसका भी न्यायालय ने निर्धारित समय के भीतर निस्तारित करने के लिए कहा। जब मामला निस्तारण पर आया तो आरएसआरएसडीसी और यूआईटी में ये विवाद हो गया कि आखिर इस जमीन के हक और मुआवजे का काम कौन करेगा।
शटरिंग भी गिर गई
डेढ़ साल पहले इस ओवरब्रिज का एक हिस्से की शटरिंग ढह गई। आरकेबी रेनू इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा.लिमिटेड ने पुलिस में केस दर्ज कराया था कि मौके से गुजर रही एक डंपर की टक्कर से शटरिंग सरक गई थी लेकिन ये बात किसी के गले नहीं उतर रही। डंपर का कोई नुकसान नहीं हुआ और वो मौके से फरार हो गई लेकिन इतनी मजबूत शटरिंग आखिर सरक कैसे गई। इसकी जिस स्तर से जांच हाेनी चाहिए थी वाे भी नहीं हुई। पता लगाना होगा कहीं इसके निर्माण में खामियां तो नहीं।
कलेक्टर के साथ मीटिंग हाे गई। तमाम नियमाें के बाद तय हुआ कि यूआईटी निजी संपत्ति के मामले का निस्तारण करेगी। जाे भी लागत आएगी हम उसका भुगतान करेंगे। ये सही है कि इस विवाद में कुछ समय लग गया। 29 कराेड़ के टेंडर की फाइल भी हमने जयपुर भेज दी है। टेंडर प्रक्रिया पूरी हाेते ही इसके निर्माण का काम पूरा हाे जाएगा।
शिल्पी कच्छावा, एक्सईएन आरएसआरडीसी
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