अदालतों में भी क्यों सेफ नहीं महिला जज:फिगर नापते हैं, कपड़ों पर कमेंट करते हैं, सेक्शुअल हैरेसमेंट कमेटी ही नहीं
‘मैं ये लेटर बहुत दुख और निराशा के साथ लिख रही हूं। इसका मकसद मेरी कहानी बताने के अलावा कुछ नहीं है। मैं अपने गार्जियन (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) से विनती करती हूं कि मुझे अपनी जिंदगी खत्म करने की अनुमति दें। मुझे कोर्ट में अपमानित किया गया। बार-बार सेक्शुअल हैरेसमेंट किया गया। ऐसा बर्ताव किया जैसे मैं कूड़ा-कचरा हूं। मैं दूसरों को इंसाफ दिलाती हूं, मगर मेरे बारे में कौन सोचेगा।’
ये यूपी के बांदा की एक महिला सिविल जज के लेटर की कुछ लाइनें हैं। इसे उन्होंने 15 दिसंबर, 2023 को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नाम लिखा था। 31 साल की इस महिला जज ने जिस घटना का जिक्र किया है, वो 7 अक्टूबर 2022 की है। तब वे बाराबंकी में पोस्टेड थीं।
वकीलों की हड़ताल थी, लेकिन महिला जज काम कर रही थीं। तभी कुछ वकील आए और बदसलूकी करते हुए कमरे की बिजली बंद कर दी, धमकियां दीं। मई, 2023 में जज का ट्रांसफर बांदा कर दिया गया।

महिला जज ने ये लेटर CJI को लिखा था। इसमें उन्होंने एक सीनियर जज पर शारीरिक शोषण का आरोप लगाया है।
इस केस के बहाने राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में काम कर चुकीं एक महिला जज और दो महिला वकीलों से बात की। जज और वकीलों ने जो बताया वो पीड़ित महिला जज की कहानी से अलग नहीं है। हैरेसमेंट के खिलाफ कार्रवाई तो बहुत दूर की बात है, कई अदालतों में आज भी महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट और CCTV कैमरा तक नहीं हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
पहली कहानी बर्खास्त जज एलिजा गुप्ता की
सीनियर जजों और वकीलों के खिलाफ बोला तो 2 साल में चार बार ट्रांसफर
बांदा की महिला जज का लेटर वायरल होने के बाद राजस्थान में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट रहीं एलिजा गुप्ता ने भी एक लेटर लिखा। इसमें एलिजा ने सीनियर जज और वकीलों पर उत्पीड़न के आरोप लगाए। उन्होंने ये लेटर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ के नाम लिखा था।

एलिजा गुप्ता ने ये लेटर 15 दिसंबर, 2023 को लिखा था। इसमें उन्होंने धमकी देने वाले वकीलों के नाम बताए हैं।
दिल्ली की रहने वाली एलिजा ने 2019 में राजस्थान ज्यूडिशियल सर्विस का एग्जाम पास किया था। 2020 में उनकी पहली पोस्टिंग राजधानी जयपुर से 30 किमी दूर बस्सी में हुई थी। तीसरी पोस्टिंग पर उन्होंने नागौर में जॉइन किया। आखिर में जोधपुर ट्रांसफर कर दिया गया।
एलिजा बताती हैं, ‘बांदा की महिला जज का साहस देखकर मुझे भी बोलने की हिम्मत मिली है। राजस्थान में पोस्टिंग के दौरान वकील ओमप्रकाश, कालूराम, महावीर बिश्नोई और चंद्रशेखर ने मुझे मेंटली बहुत टॉर्चर किया।’
‘मैंने इसकी शिकायत जिला जज और राजस्थान हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से की थी। उन्होंने भी कोई कार्रवाई नहीं की, उल्टा दो साल में मेरा चार बार ट्रांसफर कर दिया गया। कुछ दिन बाद नौकरी से ही निकाल दिया।’
एलिजा कहती हैं, ‘मैं अपने आसपास महिलाओं का शोषण होते देखती थी। मैं उनके लिए लड़ना चाहती थी, लेकिन ऐसा तभी कर सकती थी, जब मुझे बतौर महिला अपने अधिकार पता होते। इसलिए मैंने कानून की पढा़ई की।’
‘मेरी पहली पोस्टिंग जयपुर में हुई थी। वहां डॉ. ऋचा कौशिक मेरी सीनियर जज थीं। उनके पति ओमप्रकाश वकील हैं। मेरे आते ही उनके करीबी प्रेम गढ़वाल का ट्रांसफर हो गया था। मैं उनकी ही जगह जज बनकर आई थी।’
‘ओमप्रकाश की मुझसे नहीं बनती थी। इसलिए उन्होंने कोर्ट में मेरे लिए माहौल बहुत खराब कर दिया था। मुझे तरह-तरह से परेशान करते थे। एक दिन ओमप्रकाश ने गैराज में खड़ी मेरी कार लॉक कर दी, ताकि मैं घर न जा पाऊं। मैंने ओमप्रकाश के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी। वे मुझे धमकियां देते थे, इसलिए मैंने पुलिस सुरक्षा भी मांगी थी।’
एजिला बताती हैं, ‘नागौर का माहौल तो और बुरा था। दो वकील थे एडवोकेट कालू राम और चंद्रशेखर। उन्होंने मुझे बहुत परेशान किया। एक दिन मेरे चैंबर में घुस आए और बदतमीजी करने लगे।’
‘वे कहते थे- किस पागल ने इस औरत को जज की सीट पर बिठा दिया है। मुझसे कहते थे कि तू खुद को समझती क्या है। अभी तुझे मजा चखाते हैं। इसकी चोटी पकड़कर कुर्सी से नीचे उतारते हैं। वे 50-60 वकीलों को जमा कर लेते और मेरे खिलाफ नारेबाजी करवाते थे।’
‘दरअसल कुछ सीनियर जज मुझे अपने चैंबर में बुलाकर मुझसे किसी के फेवर में ऑर्डर पास करने के लिए दबाव डालते थे। वे मुझसे फाइलों में छेड़छाड़ करने के लिए कहते थे। मुझे ये सही नहीं लगता था। इसलिए मैंने कभी ऐसा नहीं किया। बल्कि मैं इसके खिलाफ बोलने लगी थी।’
‘एक जज थे एस. आर. खेकर। उन्होंने मेरे खिलाफ लॉबी बना ली थी। वे अपने वकील को मेरे चैंबर में भेजकर गाली-गलौज कराते थे। उन्हें बस कोई पॉइंट चाहिए था, जिससे वे मेरे खिलाफ हाईकोर्ट में शिकायत कर सकें। वे चाहते थे कि मेरा नागौर से ट्रांसफर हो जाए।’
एलिजा बताती हैं, ‘मैंने पुलिस से एडवोकेट कालू राम और चंद्रशेखर की शिकायत की थी। मैंने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज को भी लिखा था। कहीं से मदद नहीं मिली तो मैंने सोशल मीडिया पर लिखा। इसके दो या तीन महीने बाद वकील महावीर बिश्नोई मुझसे मिलने आए। उन्होंने मुझसे बहुत बदतमीजी से बात की। मुझे ये ऑर्डर शीट में लेना पड़ा। मैंने हाईकोर्ट में भेजा, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया। कुछ पता नहीं चलता था कि मेरी शिकायत पर कितनी कार्रवाई हुई है।’
‘नागौर की अदालत में CCTV कैमरे नहीं थे। मैंने कई बार इसकी मांग की, ताकि ये घटनाएं कहीं रिकॉर्ड तो हो जाएं। अदालत में प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट एक्ट या इंटरनल कम्प्लेंट्स कमेटी भी नहीं है। हम डिस्ट्रिक्ट जज को ही शिकायत लिखकर भेजते थे।’
‘मेरे समय में मदन मोहन भाटी थे। उनसे पहले संगीता शर्मा जज थीं। मैंने उन्हें भी शिकायत की थी। उन्होंने मेरी शिकायत हाईकोर्ट भेज दी थी। आज तक उस पर कोई जवाब नहीं आया है। इसी दौरान 18 सितंबर 2023 को मेरा जोधपुर ट्रांसफर कर दिया गया।’
पुरुष वकीलों के खिलाफ बोलने की कीमत चुकाई
एलिजा कहती हैं, ‘मेरी शिकायतों की वजह से मुझे बिना कोई सूचना और सुनवाई का मौका दिए अक्टूबर, 2023 में बर्खास्त कर दिया गया। कोर्ट में जज और वकीलों को लगता था कि एक महिला जज उनके ऊपर कैसे बैठी है। उन्हें इस बात से भी चिढ़ थी कि मैं दिल्ली से हूं।’
‘मैं बस्सी में थी, तब वहां के लोग मेरे कपड़ों और मेरे बात करने के तरीके को गलत समझते थे। मेरे घर के गेट पर पत्थरबाजी की गई। मैंने इसकी भी शिकायत की थी। महिलाओं के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है। तंग करने वालों के बजाय महिला जज का ट्रांसफर कर देते हैं या मेरी तरह निकाल देते हैं।’
दूसरी कहानी मध्यप्रदेश की वकील सुषमा की
क्लाइंट से हंसकर बात कर लो, तो उससे अफेयर की अफवाह उड़ा देते हैं
सुषमा मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले की कोतमा कोर्ट में वकील हैं। उन्होंने 2014 में वकालत शुरू की थी। तब अनूपपुर में सिर्फ 4 महिला वकील थीं।
सुषमा बताती हैं, ‘कोतमा में अभी 350 पुरुष वकील हैं। सिर्फ 9 महिलाएं हैं। इसलिए हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। एक बार एक बुजुर्ग वकील ने मुझसे कहा कि मैडम आपका फिगर बहुत अच्छा है। आप इसे कैसे मेंटेन करती हो।’
‘मुझे ही बोला गया कि क्या तुमने अपने क्लाइंट की पत्नी की जगह ले ली है। अगर मैं अपने क्लाइंट से हंसकर बात कर लेती, तो ऐसी बातें होने लगती थीं कि मेरा उसके साथ चक्कर चल रहा है। हम सिर्फ बोलकर ही उनका विरोध कर सकते हैं। मैंने कोर्ट में प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट एक्ट के लिए बात की थी, लेकिन जज ने रुचि नहीं दिखाई।’
‘महिला वकील के तौर पर हम लोग कई मुश्किलें झेलते हैं। पुरुष वकील हमारे साथ भेदभाव करते हैं। शादी के बाद चीजें और मुश्किल हो जाती हैं। अगर किसी वकील की पत्नी भी वकील है, तो वो उसे वापस इस प्रोफेशन में नहीं आने देते।’
तीसरी कहानी दिल्ली की वकील आरुषि मिश्रा की
सही कपड़े पहनने की सलाह, मेकअप करने पर कमेंट
दिल्ली में काम कर रहीं एडवोकेट आरुषि मिश्रा बताती हैं कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में महिलाओं के लिए रास्ते खुले हैं, लेकिन उन्हें भी दिक्कतें होती हैं। महिला वकील को काम पर रखते वक्त उनसे पूछा जाता है कि क्या तुम्हारे पास कार है? क्या तुम रात को देर तक काम कर सकती हो?’
‘अभी कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर जज और कई सीनियर महिला वकीलों ने जूनियर महिला वकीलों से अपील की थी कि वे अदालत में प्लाजो पैंट पहनने से बचें। महिलाओं के पहनावे को गंभीरता से लिया जाता है। हमें प्लाजो पैंट न पहनने की सलाह दी जाती है, ताकि हम प्रोफेशनल लगें और हमारी बातों को सीरियस लिया जाए। इस प्रोफेशन में हमारी निष्ठा हमारे कपड़ों से देखी जाती है।’
आरुषि ने दिल्ली में जो अनुभव किया, उस पर महाराष्ट्र के पुणे में बाकायदा नोटिस जारी हुआ था। 20 अक्टूबर, 2022 में पुणे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की ओर से जारी नोटिस में कहा गया था कि महिला वकील ओपन कोर्ट में अपने बाल संवारती हैं, इससे कोर्ट के कामकाज में अड़चन पैदा होती है। महिला वकीलों ने इस नोटिस का विरोध किया, तो इसे वापस ले लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में अब तक 268 जज हुए, इनमें सिर्फ 11 महिलाएं
सुप्रीम कोर्ट में बीते 73 साल में 268 जज हुए हैं। इनमें से सिर्फ 11 ही महिलाएं हैं। उनका औसत कार्यकाल 4.3 साल है। ये 1950 के बाद से सुप्रीम कोर्ट में सभी जजों के औसत कार्यकाल से 1 साल कम है। हाईकोर्ट में 788 जज में से सिर्फ 107, यानी 13% महिलाएं हैं।
अभी गुजरात को छोड़कर देश की किसी हाईकोर्ट में महिला चीफ जस्टिस नहीं हैं। कॉलेजियम ने इस साल जुलाई में जस्टिस सुनीता अग्रवाल को गुजरात हाईकोर्ट में नियुक्त किया था।
सुप्रीम कोर्ट के 33 जजों में सिर्फ तीन महिलाएं हैं। इनमें जस्टिस हिमा कोहली, बेला त्रिवेदी और बीवी नागरत्ना शामिल हैं। जस्टिस नागरत्ना 25 सितंबर, 2027 को भारत की पहली महिला CJI बन सकती हैं, पर उनका कार्यकाल सिर्फ 36 दिन का होगा।









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