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उत्तरकाशी की सुरंग में मुश्किल में हैं 40 जानें, क्यों याद आ रही चमोली की तपोवन आपदा?

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उत्तरकाशी की सुरंग में मुश्किल में हैं 40 जानें, क्यों याद आ रही चमोली की तपोवन आपदा?

उत्तराखंड में बार-बार हादसे क्यों होने लगे हैं? क्या विकास के नाम पर कुछ गलत हो रहा है। क्या हिमालय की भौगोलिक संरचना पर चोट पहुंचाई जा रही है? जब आप किसी एक्सपर्ट से बात करेंगे तो वे इसका स्पष्ट जवाब देंगे। वे संतुलन की बात करेंगे। दो साल पहले चमोली और इस बार उत्तरकाशी में हादसा। कहीं जमीन धंस रही है, बाढ़-बारिश से आपदाएं बढ़ती ही जा रही हैं। 

Uttarakhand Tunnel Collapse : मजदूरों को कैसे पहुंचाया जा रहा है खाना-पानी और ऑक्सीजन

नई दिल्ली: हम अंदाजा ही लगा सकते हैं कि उन 40 परिवारों पर क्या बीत रही होगी, जिनके अपने दिवाली की सुबह से उत्तरकाशी में धंसी टनल में फंसे हैं। उस दिन निर्माणाधीन सुरंग ढहने से 40 मजदूर भीतर ही रह गए थे। 48 घंटे बीत चुके हैं लेकिन अभी उन्हें निकाला नहीं जा सका है। राहत की बात यह है कि उन तक ऑक्सीजन और खाने-पीने की सप्लाई पाइप के जरिए की जा रही है। वॉकी-टॉकी के जरिए बातचीत भी हुई है और वे सुरक्षित बताए जा रहे हैं। हालांकि वक्त तेजी से बीत रहा है और घरवालों की चिंता बढ़ रही है। पुलिस ने टनल के अंदर फंसे श्रमिकों से पाइप के जरिए उनके परिजनों से बातचीत भी करवाई है, जिससे वे घबराएं नहीं। मलबा हटाकर उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने का मिशन युद्ध स्तर पर चल रहा है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा सुरंग में फंसे लोगों को स्टील पाइप से निकालने की योजना पर काम चल रहा है। पूरा देश प्रार्थना कर रहा है कि जल्द ही सभी 40 श्रमिक सुरक्षित तरीके से बाहर निकाल लिए जाएं। हालांकि उत्तराखंड में यह ऐसी पहली घटना नहीं है। 7 फरवरी 2021 को भी ग्लेशियर टूटने के बाद चमोली का तपोवन-विष्णुगढ़ प्रोजेक्ट बुरी तरह से तबाह हो गया था। एक सुरंग में फंसने के कारण 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।

क्या गलत हो रहा है?

क्या गलत हो रहा है?

इस बार, उत्तरकाशी में जिस जगह हादसा हुआ है वह ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा और डंडालगांव के बीच है। 900 मिमी व्यास वाली स्टील पाइप को सुरंग में डालने के लिए सिंचाई विभाग के विशेषज्ञों की एक टीम भी पहुंची है। अंदर फंसे लोगों को लगातार पानी, खाना, ऑक्सीजन और बिजली उपलब्ध कराई जा रही है। उत्तरकाशी में 4,531 मीटर लंबी सिलक्यारा सुरंग सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की चारधाम सड़क परियोजना का हिस्सा है। इसका निर्माण 853.79 करोड़ की लागत से नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी से कराया जा रहा है। हर मौसम के अनुकूल बन रही इस साढ़े चार किमी लंबी सुरंग का निर्माण पूरा होने के बाद उत्तरकाशी से यमुनोत्री धाम तक की दूरी 26 किमी कम हो जाएगी। यह तो रही विकास की बात, अब दूसरा पहलू पढ़िए।
कुछ समय पहले शायद आपने जोशीमठ धंसने, घर दरकने, सड़कें टूटने की खबरें पढ़ी होंगी या तस्वीरें देखी होंगी। ऐसे में सवाल उठता है कि उत्तराखंड में बार-बार हादसे क्यों हो रहे हैं? क्या कुछ गलत हो रहा है? उत्तरकाशी हादसे के बाद जानेमाने पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा इसका जवाब देते हैं। उन्होंने कहा कि अगर पारिस्थितिक चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो उत्तरकाशी जैसी भयावह घटनाएं होती रहेंगी। चोपड़ा ने पिछले साल ‘चार धाम ऑल वेदर रोड’ पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने समिति के अधिकार क्षेत्र को परियोजना के केवल दो ‘गैर-रक्षा’ वाले हिस्सों तक सीमित करने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश पर निराशा जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि आधुनिक तकनीकी हथियारों से युक्त इंजीनियर हिमालय पर हमला कर रहे हैं। वैसे, आप उत्तराखंड के आम लोगों, प्रकृति प्रेमियों, विशेषज्ञों से बात करेंगे तो वे ‘चारधाम ऑल वेदर रोड’ के निर्माण खासतौर से सड़कों को चौड़ीकरण के लिए अपनाए जा रहे तरीकों से नाखुश मिलेंगे।

गलत तकनीक त्रासदी बनी

गलत तकनीक त्रासदी बनी

उत्तराखंड के लिए ये ऑल वेदर सड़कें खास तौर से उनके चौड़ीकरण के लिए उपयोग में लाई जा रही गलत तकनीकों के कारण एक त्रासदी बन गई हैं। अगर आप ढलानों को छेड़ेंगे तो भूस्खलन जैसी आपदाएं आएंगी।
– राज्य योजना आयोग के पूर्व सलाहकार हर्षपति उनियाल

2010 के बाद बढ़ी अनहोनी

2010 के बाद बढ़ी अनहोनी

एक्सपर्ट कहते हैं कि उत्तराखंड राज्य बनने के पहले दशक में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या कम थी। साल 2002 में टिहरी जिले के घनसाली क्षेत्र में बादल फटने की एक घटना में 36 लोगों की मृत्यु हुई थी जबकि 2003 में उत्तरकाशी में वरूणावर्त पहाड़ से हुए भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई थी। हालांकि 2010 के बाद प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बहुत इजाफा हुआ। 2013 में केदारनाथ आपदा ने मौत और तबाही की विनाशलीला दिखाई। मॉनसून के दौरान तो छोटी-बड़ी आपदाएं आती रहती हैं।
इस साल भी मॉनसून के दौरान भारी बारिश और उसके कारण आई आपदाओं ने जमकर कहर बरपाया। केदारनाथ और बदरीनाथ राजमार्गों पर दरारें आईं। चारधाम ऑल वेदर सड़क परियोजना को भी गढ़वाल क्षेत्र में कई जगह नुकसान हुआ। इसरो के भूस्खलन-क्षेत्र मानचित्र में रूद्रप्रयाग जिले को आपदाओं की दृष्टि से बहुत संवेदनशील दिखाया गया है लेकिन सरकार ने इन्हें कम करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए हैं। केदारनाथ धाम रूद्रप्रयाग जिले में है।

जोशीमठ में भूधंसाव का मामला सामने आया तो लोगों ने इस समस्या के लिए एनटीपीसी की 520 मेगावाट तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना को जिम्मेदार ठहराया था। वे कह रहे हैं कि भूमिगत सुरंग के कारण शहर के भवनों और रास्तों में दरारें आईं। सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद चमोली के मुताबिक हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए विकास परियोजनाओं को अनुमति दिए जाने से पहले उनकी हर पहलू से जांच की जानी चाहिए। जल्दबाजी में बेतरतीब विकास किया जाएगा तो आपदाएं आएंगी।

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