आलेख: श्रीमती अंजना शर्मा
(शंकर पुरस्कार भाजिता, पुरातत्वविद एवं लिपि विशेषज्ञ, प्रबंधक – देवस्थान विभाग, राजस्थान सरकार)
भारत की संस्कृति में नदियाँ केवल जल की धाराएं नहीं हैं, वे जीवन की प्रेरक शक्तियाँ हैं। इनमें भी माँ गंगा का स्थान सर्वोपरि है — एक ऐसी नदी जो धार्मिक चेतना, सामाजिक व्यवस्था और प्राकृतिक जीवनशैली का केन्द्र बिन्दु रही है। गंगा दशहरा, जो ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन मनाया जाता है, माँ गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति का पर्व है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे गहरी वैज्ञानिक सोच भी निहित है।
गंगा का दिव्य अवतरण: आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक
पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु घोर तपस्या की, जिसके फलस्वरूप गंगा का धरती पर अवतरण हुआ। शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर उसकी धारा को नियंत्रित किया, जिससे पृथ्वी उसका भार सहन कर सकी। इस कथा में तप, श्रद्धा, विनम्रता और समाधान जैसे मूल्यों की अद्भुत प्रस्तुति है।
गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान, विशेष पूजन, हवन तथा दान-पुण्य किए जाते हैं। यह दिन दस पापों से मुक्ति देने वाला माना गया है — इसलिए इसे ‘दशहरा’ कहा गया। गंगा को ‘मोक्षदायिनी’ एवं ‘पापनाशिनी’ माना गया है। वेदों में इसे ‘त्रिस्वर्गीय संजीवनी’ कहा गया है — एक ऐसी दिव्यता, जो आत्मा को शुद्ध कर मोक्ष की ओर ले जाती है।
गंगा जल की वैज्ञानिक विशेषता: जीवंत जल की शक्ति
आधुनिक विज्ञान भी अब यह स्वीकार करता है कि गंगा जल में विलक्षण जैविक गुण हैं। वैज्ञानिक शोधों में पाया गया है कि गंगा जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु पाए जाते हैं, जो हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर जल को शुद्ध रखते हैं। यही कारण है कि गंगाजल वर्षों तक बिना खराब हुए संरक्षित रहता है।
यह पर्व ग्रीष्म ऋतु के उस काल में आता है, जब शरीर को शीतलता और शुद्ध जल की आवश्यकता होती है। गंगा स्नान न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक प्रकार की जल चिकित्सा (हाइड्रोथेरेपी) भी है, जो शरीर को रोगों से मुक्त करती है।
सामाजिक एवं पर्यावरणीय सन्देश
गंगा दशहरा के अवसर पर दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। विशेषकर पंखा, घड़ा, जलपात्र, चप्पल, शरबत, फल आदि का दान लोककल्याण और मानव सेवा का प्रतीक है। यह कार्य पर्यावरण संरक्षण, संसाधनों की साझेदारी और परोपकार की भावना को जागृत करता है।
आज जब जल संकट और नदी प्रदूषण वैश्विक समस्या बन चुके हैं, गंगा दशहरा का सन्देश और भी प्रासंगिक हो जाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि गंगा केवल पवित्र नदी नहीं, अपितु जीवन की आधारशिला है। इसकी रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है!
गंगा दशहरा एक ऐसा पर्व है, जहाँ श्रद्धा और विज्ञान का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमारी परंपराएं केवल आस्था तक सीमित नहीं, वे जीवन की गहराइयों से जुड़ी हैं। माँ गंगा की आराधना के माध्यम से यह पर्व आत्मशुद्धि, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जागरूकता का महान संदेश देता है।
गंगा दशहरा केवल एक तिथि नहीं — यह भारतीय सांस्कृतिक चेतना की बहती धारा है, जो पीढ़ियों को जोड़ती है, चेतनाओं को जगाती है, और जीवन को पुनः शुद्ध करती है।
लेखिका परिचय
श्रीमती अंजना शर्मा
शंकर पुरस्कार से सम्मानित पुरातत्वविद एवं लिपि विशेषज्ञ हैं। वर्तमान में राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग में प्रबंधक पद पर कार्यरत हैं। भारतीय संस्कृति, लिपि विज्ञान एवं धार्मिक परंपराओं पर इनका विशेष शोधकार्य एवं लेखन रहा है।
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