नारी उत्थान
करते हैं हम नारी उत्थान की बातें ,
फिर महावारी में क्यों नहीं करते उनके सम्मान की बातें ।
जब बनती है मां नारी तो पुजा जाता है उसे , क्योंकि वो पाल रही है अंश हमारा,
प्रकृति के नियम में वही नारी महावारी में बन जाती अछुता।
क्यों बेटी को डराया जाता है, महावारी का खौफ दिखाया जाता है,
कभी स्कूल से हटाया जाता है , कभी दफ़्तर में ना बुलाया जाता है ।
बड़े- बुजुर्ग कहते बेटी अब स्कूल नहीं जा पाएगी,
महावारी और शिक्षा मे तालमेल नहीं बैठा पाएगी।
जब जाना नहीं उसे मन्दिर में तो शिक्षा
मन्दिर कैसे जाएगी,
वो तो अब अछुती बन जाएगी ।
क्यों भ्रम ये मन में पाला है , क्या इश्वर इन सबसे निराला है,
वो भी मां के गर्भ का ही आला है।
पेट की अंतड़ियां खिंचती , दर्द से बेहाल होती,
सब कुछ ये बेटी सहती, देखो फिर भी इसके होते कहते बेटी नहीं पढ़ पाती ,
क्योंकि इसे हर नारी शर्म की बात कहती।
काम पूर्ति या संभालना चुल्हा – चौका ही नारी का काम नहीं,
चलती आज मिलाकर कंधे से कंधा फिर तो महावारी छुपाना आसान नहीं।
कैसे छुपाएगी वो अपनी पहचान को।
ग़र नहीं समझाओगे, बताओगे, पढ़ाओगे उसे,
तो कैसे आगे बढ़ाओगे नारी के उत्थान को।
नारी के सम्मान में ही पौरूषता की
आन है ,
नारी के जीवन को बनाना सुशिक्षित और महान है ।
महावारी कोई नहीं है बिमारी , इन्हीं खून के थक्कों से नारी ने जनी दुनियां सारी।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के संग , बेटी को समझाओ, और महावारी से ना डराओ
ये भी एक स्लोगन बनाओ ।
प्रेम बजाज

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