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‘पिता ने पैसे जोड़कर एक्टर बनने मुंबई भेजा, ठगा गया’:एक्टर बोले- घरवालों से लोग कहते थे तेरा बेटा वापस आएगा; अब उनके सुर बदल गए

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‘पिता ने पैसे जोड़कर एक्टर बनने मुंबई भेजा, ठगा गया’:एक्टर बोले- घरवालों से लोग कहते थे तेरा बेटा वापस आएगा; अब उनके सुर बदल गए

कलर चैनल पर आ रहे टीवी सीरियल मेरा बालम थानेदार के प्रमोशन के लिए एक्टर शगुन पांडे और श्रुति चौधरी जयपुर आए। - Dainik Bhaskar

कलर चैनल पर आ रहे टीवी सीरियल मेरा बालम थानेदार के प्रमोशन के लिए एक्टर शगुन पांडे और श्रुति चौधरी जयपुर आए।

एक्टर शगुन पांडे और श्रुति चौधरी मंगलवार को जयपुर आए। इस दौरान उन्होंने कलर चैनल पर आ रहे टीवी सीरियल मेरा बालम थानेदार को प्रमोट किया। एक्टर-एक्ट्रेस ने हवामहल और अल्बर्ट हॉल पर पतंगबाजी की और लक्ष्मी मिष्ठान भंडार पर कचोरी और घेवर का लुत्फ उठाया। ऑफिस में एक्सक्लूसिव बातचीत में शगुन ने कहा- मेरे पिता ने एलआईसी एजेंट का काम करते हुए पैसे जोड़े और मुझे मुंबई भेजा था। यहां काम दिलवाने के नाम पर मुझसे ठगी हुई। एक आदमी डेढ़ लाख रुपए लेकर भाग गया। पिता ने इसके बाद भी मेरा हौसला कमजोर नहीं होने दिया। मैंने भी पहचान बनाने की ठान ली। जब अच्छे काम और पैसा मिला तो पिता को उनकी पसंद की ऊंची गाड़ी और मां को अपना घर दिलवाया।

उन्होंने कहा मेरे घरवालों ने मेरे नाम पर बहुत सुना है। लोग उनको कहते थे कि तेरा बेटा वापस आएगा, कुछ नहीं बनेगा। मां तब यहीं कहती थी कि कोई बात नहीं, जो होगा देख लेंगे। अब मेरे काम के बाद लोगों के सुर भी बदल गए है। वहीं, श्रुति ने कहा- कम उम्र में लीड किरदार मिलना बहुत बड़ी बात है। राजस्थान की लड़की के रूप में यहां की संस्कृति से जुड़ना खास रहा है।

सवाल: अपने किरदार के बारे में बताएं, किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही है?

शगुन पांडे: इस सीरियल की कहानी राजस्थान पर बेस्ड है। इसके जरिए हम यहां के रंग, पहनावा और यहां की बोली में शामिल हुए हैं। शशि सुमित प्रोडक्शन राजस्थान से बहुत प्यार करता है। उनकी कहानी यहां पर बेस्ड है। दो लोगों की यह मैन कहानी है। मैं वीर प्रताप सिंह का किरदार निभा रहा हूं, जो आईपीएस है। अपने क्षेत्र का असिस्टेंट पुलिस ऑफ कमिश्नर है। श्रुति बुलबुल का किरदार निभा रही है। वह बड़ी चंचल है, चटक है। रंगों में और खुशहाली बिखेरने में माहिर है। हम बाल विवाह को लेकर एक सोशल मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार ने शादी के लिए 18 साल तय की है। इस उम्र में ही आप वोट दे पाते है। लाइसेंस बनवा पाते हैं। शादी कर पाते है। यह इसलिए हुआ कि आप मेंटली, इमोशनली, फिजिकली और बायलोजिकली फिट रहते हैं। कई बार पेरेंट्स कुछ परेशानियों की वजह से बाल विवाह का कदम उठा लेते हैं। इस पर हम सवाल उठाते हैं।

सवाल: आप इसमें राजस्थान का किरदार निभा रही हैं, कितना कुछ अलग रहा?

श्रुति: यहां बहुत ज्यादा अपनापन देखने को मिला। मुझे यहां एक्सप्लोर करना था। मुझे जानना था कि कौनसी चीजें अपने किरदार में डाल सकती हूं। राजस्थानी लड़की को किस तरह और बेहतर बना सकती हूं। इस चीज को सबसे ज्यादा नोटिस किया। यहां आकर देखा तो लगा कि कितने स्वीट लोग हैं। काफी प्यारे है। बहुत रंगीन हैं। यहां आई तो बहुत कुछ सीखा। कोशिश यही रहेगी कि मैं अपने किरदार में वह सब कुछ डाल सकूं, जो मैंने यहां के लोगों को करते हुए देखा है। लोग भी इसे रिलेट कर पाएंगे, लोगों को यह ऑर्गेनेकिक ही लगेगा।

सवाल: आप बिहार में जन्मी है और राजस्थानी किरदार में है, किस तरह का मैसेज देने वाले है?

श्रुति: एक नाबालिग लड़की है, जिसकी शादी हो रही है। मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं है। इसी को समझाया गया है। यह राजस्थान या बिहार ही नहीं हर छोटी जगह पर यह बड़ी समस्या के रूप में है। लोग मानते है कि बेटी बाप के लिए बोझ है। हमारे सीरियल में लोग इसे देख पाएंगे कि यह कितनी बड़ी समस्या है। एक लड़की को किस तरह की समस्या उठानी पड़ती है। अगर लोग इस सीरियल देखने के बाद थोड़ा भी समझ पाए तो हमारे लिए यह बड़ी जीत होगी। बच्चे अपने मां-बाप से अपनी बात कह पाए, यही हम चाहते है। मेरी कोशिश यही है कि उन छोटी लड़कियों के दर्द को बयां कर सकूं। इसके लिए मैंने भी बहुत मेहनत की है।

एक्टर शगुन पांडे और श्रुति चौधरी जयपुर के मार्केट में भी घूमने पहुंचे।

एक्टर शगुन पांडे और श्रुति चौधरी जयपुर के मार्केट में भी घूमने पहुंचे।

सवाल: आपके पिता ने पैसे जोड़कर मुंबई भेजा, किस तरह की जर्नी रही?

शगुन: 10वीं और 12वीं के बाद आस-पास के ही लोग पूछने लग जाते है कि पांडेजी आपका बेटा क्या कर रहा है। जब बोलते कि एक्टर बनेगा, तब लोग हाथ खड़े कर देते हैं। सोचते हैं कि एक और बांद्रा स्टेशन या चर्च टेग उतरेगा। कुछ साल में आ जाएगा। मेरे लिए भी समाज ने हाथ खड़े कर दिए थे। मैं स्कूल से ही थिएटर कर रहा था। नुक्कड़ नाटक हो या पूरे प्ले। मैं कर रहा था। नुक्कड़ नाटक में 300 रुपए और पूरे नाटक के 800 रुपए मिला करते थे। पैसे जोड़-जोड़कर पोर्टफोलियो शूट करवाने की सोची। जब थिएटर वालों को पता लगा कि मैं टीवी के लिए ट्राई कर रहा हूं ताे उन सभी ने वहां से निकाल दिया। वहां से मुसीबत शुरू हो गई। पैसे जोड़कर पोर्टफोलियो करवाया। इस समय घरवालों को यह आशा ताे थी कि थिएटर करता है। यह कुछ न कुछ तो जरूर करेगा। पंजाब के युवाओं की ज्यादा अच्छी स्थिति नहीं थी, क्योंकि वहां अधिकांश नशे में रहते है। ऐसे मेरे घरवालों को मुझसे अलग उम्मीदें थी।

मेरे पिता चंडीगढ़ में एलआईसी में रहे हैं। यह ऐसा काम है, जहां हर रोज कमाना होता है। बचपन से पिता को यह काम करते हुए देखा है। मेरे काम को छोटे शहर में एप्रिशिएशन ज्यादा मिलता था। हफ्ते-दो हफ्ते में एक-दो खबर आ जाती थी। ऐसे में घरवालों को यह अच्छा लगता था। ऑडिशन देने लगा। यहां कुछ काम हुआ नहीं, मैं तो छोटा-मोटा ऐड भी करने को तैयार था। समाज के लोग भी सवाल पूछने लगे थे। फिर मुंबई चला गया। वहां मुझे किसी ने डेढ़ लाख रुपए लेकर काम दिलवाने की बात कही। वह आदमी भी पैसे लेकर गायब हो गया। तब मेरी उम्र 17 साल थी, उस समय मुझे फोन से भी घबराहट हो गई थी। मिडिल क्लास आदमी के जोड़े हुए पैसे डूब जाए तो कैसा होगा, फिर भी पिता ने मुझे एहसास नहीं होने दिया और मेरा मोरल भी डाउन नहीं होने दिया। मुझे ठगने वाले का नाम डेनी जोसेफ नाम था। वह नाला सोपारा का था।

इसके बाद मैं वापस चंडीगढ़ आ गया, यहीं से ऑडिशन देना शुरू किया। उस समय मैं 100 किलो का था, तब मुझे एक कंचन मैडम मिलीं। उन्होंने एक लड़की को मेरे साथ खड़ा किया। पूछा कि तुम किस नजर से लीड एक्टर लगते हो। मुझे रियलिटी समझ आ गई। मैंने अब शरीर पर काम करना शुरू किया। 6 महीने में अपने आप को बदल दिया। वापस मुंबई आ गया। किसी तरह पहला शो मिला जय संतोषी मां, तीन दिन का काम मिला। तीन दिन के 9 हजार रुपए मिले। इसी में महीना चलाना था। इसके बाद मैंने हौसला नहीं छोड़ा और ऊपर वाले ने साथ नहीं छोड़ा। धीरे-धीरे काम मिलते रहे और आगे बढ़ता चला गया। मैंने अपनी पहचान को बढ़ाने के लिए स्प्लिस्ट्सविला शो किया। इसके बाद लीड रोल मिला, जो विलेन था, वह चल गया। इसके बाद आगे की कहानी बदल गई, काम अच्छा मिलता रहा।

श्रुति चौधरी ने कहा- राजस्थान में बहुत ज्यादा अपनापन देखने को मिला। यहां आकर बहुत कुछ सीखा।

श्रुति चौधरी ने कहा- राजस्थान में बहुत ज्यादा अपनापन देखने को मिला। यहां आकर बहुत कुछ सीखा।

सवाल: कम उम्र में लीड किरदार मिलने को किस तरह देखते है?

श्रुति: लीड किरदार करना काफी लोगों का सपना होता है। मैं भी खुशनसीब हूं कि कम उम्र में मुख्य किरदार मिला। हालांकि मैं इसे ग्रांटेड नहीं ले रही। मैं अपने किरदार पर बहुत काम कर रही हूं। डेब्यू ही मेरा ऐसा है, जाे यादगार है। मैंने बहुत मेहनत की है, लोगों को यह जरूर पसंद आएगा।

सवाल: पेरेंट्स ने बहुत कुछ किया, आपने क्या किया उनके लिए?

शगुन: मेरे घरवालों ने मेरे नाम पर बहुत सुना है। लोग उन्हें कहते थे कि तेरा बेटा वापस आएगा, कुछ नहीं बनेगा। मां तब यहीं कहती थी कि कोई बात नहीं, जो होगा देख लेंगे। अब मेरे काम के बाद लोगों के सुर भी बदल गए हैं। मैंने बचपन में पिता को ऊंची गाड़ी चलाते हुए देखा था और वह उनको पसंद थी। गाड़ी ऐसी की जब उसका गेट बंद हो तो टफ से टफ से आवाज करे। पिता को ऊंची कार दिलाई और मां के नाम पर घर पर लिया। यह कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन मैंने यह काम सबसे पहले किया है। जब मैं बिग बॉस में यह शो प्रमोट करने गया, तब मम्मी-पापा को भी लेकर गया। सलमान भाई से भी मिलकर आए।

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