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बांग्‍लादेश में सरेंडर के बाद पाकिस्‍तानी जनरल नियाजी की हो जाती मॉब लिचिंग, जानें कैसे एक भारतीय ने बचाई थी जान

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बांग्‍लादेश में सरेंडर के बाद पाकिस्‍तानी जनरल नियाजी की हो जाती मॉब लिचिंग, जानें कैसे एक भारतीय ने बचाई थी जान
भारत और पाकिस्‍तान (India-Pakistan) के बीच तीन युद्ध (India Pakistan War) हुए। हर युद्ध अलग-अलग वजहों से काफी खास रहा लेकिन सन् 1971 में हुई जंग आज तक नहीं भूलती। इस जंग में ही पाकिस्‍तानी सेना ने जनरल नियाजी के नेतृत्‍व में सरेंडर कर दिया था। वह तस्‍वीर आज भी पाकिस्‍तान को तकलीफ देती है।
REPORT BY SAHIL PATHAN
इस्‍लामाबाद: पिछले दिनों पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत के साथ हुए तीन युद्धों का जिक्र किया। उन्‍होंने कहा कि पड़ोसी देश के साथ तीन युद्धों की वजह से उनके देश में गरीबी और बेरोजगारी है। पाकिस्‍तान को आज तक भारत के साथ हुए युद्धों में मिली शिकस्‍त सालती है। सन् 1971 में हुई जंग ने तो इस देश के दो टुकड़े कर दिए। पूर्वी पाकिस्‍तान अलग होकर बांग्‍लादेश बन गया और शरीफ के देश को युद्ध दर्द देने वाला घाव दे गया। यह घाव उस समय नासूर बनने की तरफ बढ़ गया जब पाकिस्‍तानी आर्मी को सरेंडर करना पड़ा। करीब एक लाख सैनिकों के साथ पाकिस्‍तानी जनरल एएके नियाजी ने भारत के सामने हथियार डाले। यहां तक का किस्‍सा तो हर कोई जानता है। लेकिन इस सरेंडर के बाद भीड़ नियाजी मारने के लिए यानी उनकी लिचिंग को रेडी थी। तब एक इंडियन आर्मी ऑफिसर ने उनकी जान बचाई थी। जानिए इतिहास का वही किस्‍सा।
बदल गया दक्षिण एशिया का नक्‍शा
1971 की जंग ने दक्षिण एशिया का नक्‍शा ही बदलकर रख गया। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्‍तानी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल आमीर अब्‍दुल्‍ला खान नियाजी ने भारतीय सेना की पूर्वी कमान के सामने सरेंडर का डॉक्‍यूमेंट साइन किया। इस डॉक्‍यूमेंट के साइन होने के बाद जनरल नियाजी भीड़ के हाथों शिकार होने वाले थे लेकिन मेजर जनरल गंधर्व नागरा वह ऑफिसर थे जिन्‍होंने उनकी जान बचाई थी। विदेश मंत्रालय में उस समय (पाकिस्‍तान डेस्‍क) ज्‍वॉइन्‍ट सेक्रेटरी रहे एके रे एकमात्र असैन्‍य अधिकारी थे जो उस एतिहासिक पल के गवाह बने थे।
शाम 4 बजे हुआ सरेंडर
उनकी बेटी ने कुछ साल पहले अपने पिता के लिखे हुए पेपर्स के हवाले से उस पल के बारे में बताया था। एके रे ने लिखा था कि 16 दिसंबर 1971 को करीब 11 बजे उन्‍हें एक टेलीफोन आया और लाइन पर ले. जनरल जगजीत अरोड़ा थे। उन्‍होंने रे से पूछा था कि क्‍या वह ट्रैवल करने के लिए तैयार हैं। इसके बाद जब रे ने हां में जवाब दिया तो जनरल अरोड़ा ने उन्‍हें दमदम में दोपहर दो बजे आने को कहा। रे उस समय कलकत्‍ता में बने एक अस्‍थायी ऑफिस में थे। रे को ले. जनरल अरोड़ा ने कहा था कि शाम चार बजे सरेंडर होगा और यह एकदम तय है। रे इसके बाद ढाका के लिए निकल गए।
नियाजी पहुंचे मैदान
दमदम से भारतीय वायुसेना के एक एयरक्राफ्ट HS-748 से रे ढाका के लिए रवाना हुए। यहां पर मेजर जनरल जेएफआर जैकब ने उनका स्‍वागत किया। मेजर जनरल जैकब युद्ध के समय ईस्‍टर्न आर्मी कमांडर थे। यहीं पर मेजर जनरल गंधर्व नागरा भी मौजूद थे जो रे के नेशनल डिफेंस कॉलेज में उनके साथी थे। इसके बाद जनरल नियाजी यहां पहुंचे। जनरल नियाजी को रमना मैदान लेकर आया गया। इस मैदान पर एक टेबल और कुछ कुर्सियां रखी गई थी। जनरल अरोड़ा ने इसी टेबल पर इंस्‍ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर को रखा।
बांग्‍लादेश के अधिकारी मौजूद
उस समय एक समस्‍या थी कि बांग्‍लादेश की तरफ से कौन मौजूद होगा। तीन बटालियन के कमांडर्स ले. कर्नल सैफुल्‍ला, खालिद मुशर्रफ और जिया-उर-रहमान ऐसी जगहों पर थे जहां से उन्‍हें एयरलिफ्ट नहीं किया जा सकता था। इसी समय बांग्‍लादेश एयरफोर्स के ग्रुप कैप्‍टन एक खोंदकर को चुना गया। उस युद्ध के समय ही बांग्‍लादेश के वायुसेना का गठन किया गया था। ग्रुप कैप्‍टन खोंदकर की यूनिफॉर्म उस समय रेडी नहीं थी। ऐसे में उन्‍हें सादे कपड़ों में लेकर आया गया।
नियाजी को देखते ही भीड़ बेकाबू
मैदान पर पाकिस्‍तानी सेना के बस 300 जवान ही मौजूद थे। जबकि कुछ आम नागरिक भी थे। नियाजी ने डॉक्‍यूमेंट्स साइन किए। इसके बाद टोपी और बेल्‍ट उतारकर रख दी और रोने लगे। इसी समय एक व्‍यक्ति भीड़ से चिल्‍लाया, ‘ये तो नियाजी है’ और भीड़ बेकाबू होकर आगे बढ़ने लगी। मेजर जनरल नागरा और बाकी कुछ दर्जन लोगों ने नियाजी के चारों ओर एक घेरा बना लिया। मेजर जनरल नागरा ने तुरंत उन्‍हें जीप में बैठा और गोली की रफ्तार से कैंट की तरफ निकल गए। रे के मुताबिक नियाजी की सुरक्षा करना बेहद जरूरी था क्‍योंकि वह एक युद्धबंदी थे। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद उस दिन भीड़ उन्‍हें जिंदा मार देती।

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