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बीकानेर! काम आधा भी नहीं, दाम पूरा:शहरी रोजगार योजना में धांधली, पांच माह में 170 मजदूरों ने तीन बीघे में काटी 700 झाड़ियां

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काम आधा भी नहीं, दाम पूरा:शहरी रोजगार योजना में धांधली, पांच माह में 170 मजदूरों ने तीन बीघे में काटी 700 झाड़ियां
शहरी राेजगार गारंटी याेजना सिर्फ पैसा बांटने की याेजना बन कर रह गई है। इस याेजना के तहत हाे रहे कामाें की पड़ताल की ताे चाैंकाने वाली जानकारी सामने आई। इस याेजना के तहत शहरी बेराेजगाराें काे 15 सितंबर से 13 फरवरी तक 2 कराेड़ 83 लाख 26 हजार रुपए का भुगतान हाे चुका है। करीब 90 लाख का बिल बनना बाकी है। वहीं, जहां काम का दावा किया जा रहा है, वहां की हालत में काेई सुधार नहीं है।हर्षाेलाव तालाब के जीर्णाेद्धार के लिए 170 मजदूर 15 सितंबर से काम कर रहे हैं। सरकारी रजिस्टर से साफ है कि काम के घंटाें के लिहाज से ये मजदूराें ने 22 हजार दिन के बराबर काम कर चुके हैं। काम के नाम पर वहां लगभग 700 कीकर की झाड़ियां काटी गई हैं। ये एरिया बमुश्किल 3 बीघे का होगा। शिवबाड़ी तालाब में अब तक करीब 12 हजार दिन की दिहाड़ी के बावजूद झाड़ियां तक साफ नहीं हुई। घड़सीसर में भी कुछ ऐसे ही हाल हैं। कई पार्षद मेट-जेईएन काे पूरे शहर भर में साइट पर जाने से राेक रहे हैं। ट्रांसफर की धमकियां दी गई। जाे जेटीए कमाई के समीकरण में बाधा बने उनका ट्रांसफर भी करा दिया। जिस श्रमिक का नाम मस्टरराेल में नाम आ गया उसे बिना काम के पैसे दिलाने की हाेड़ है।पहले भी ऐसा सुनने में आया थाा। मामला बहुत गंभीर है। मैं निगम के बाहर से एक टीम बनाकर इस मामले की जांच कराऊंगा। ये एेसी स्कीम है जाे सीधे सीएम काे रिपाेर्ट हाेती है। बहुत गंभीर मामला है। मैं जल्दी 15 सितंबर से लेकर अब तक के पूरे मामलाें की जांच के लिए कमेटी गठित करूंगा।-भगवती प्रसाद कलाल, कलेक्टर
हर्षाेलाव : मौके पर 170 की बजाए 65 श्रमिक मिले, टीम देख मेट ने गैरहाजिरी सीएम अशाेक गहलाेत ने हर्षाेलाव से ही इस याेजना काे लांच किया था। यहां तालाब में 15 सितंबर से अब तक लगातार शहरी राेजगार गारंटी याेजना के तहत श्रमिक काम कर रहे हैं। रिकॉर्ड के अनुसार 170 श्रमिक राेज काम करते हैं। अब तक करीब 22000 दिन की दिहाड़ी हाे चुकी है। औसतन 57 लाख रुपए का काम हाे चुका। नवंबर तक के 22 लाख 65 हजार 299 रुपए का भुगतान हाे चुका। दिसंबर से अब तक का बिल बाकी है। काम देखें ताे माैके पर कीकर के करीब 700 ठूंठ दिखाई दिए। यानी 170 श्रमिकाें ने 22 हजार दिन काम करके 700 झाड़ियां काटी और कुछ मिट्टी हटाई। मीडिया टीम यहां पहुंची तो 65 श्रमिक मिले। सवाल किया ताे मेट ने बाकी श्रमिकों की गैरहाजिरी लगाई। यहां एक करोड़ 16 लाख की परियाेजना मंजूर हुई थी। घड़सीसर, सुजानदेसर, महाराजा गंगासिंह विवि के पीछे की एेसी तमाम साइटें हैं, जहां आधे श्रमिक नहीं जाते और भुगतान सबकाे हाे रहा है।लगाई
शिवबाड़ी तालाब : 12 हजार दिन की मजदूरी, एक फिट मिट्‌टी भी नहीं हटी
शिवबाड़ी तालाब के आसपास की कीकर हटाना और तालाब से मिट्‌टी निकालने का काम था। अब तक करीब 12 हजार दिन की दिहाड़ी हाे चुकी। मगर कीकर अब भी हैं। तालाब से एक फीट मिट्टी भी नहीं निकली। यहां जेटीए ने एक दिन में 600-600 श्रमिकाें का मस्टराेल बनाकर दिया, लेकिन माैके पर कभी 100 ताे कभी 50 श्रमिक ही पहुंचे। जेईएन ने गैरहाजिरी देख मस्टरराेल कम कर दिए। 200 श्रमिकाें काे लगाया ताे भी संख्या कभी 50 ताे कभी 70 से ऊपर नहीं पहुंची। डर के कारण यहां जेईएन-जेटीए भी निरीक्षण करने नहीं जाते। फिर भी नवंबर तक यहां 28 लाख 51 हजार 869 रुपए का भुगतान हाे चुका। 55 लाख तक यहां का खर्च पहुंचने की संभावना है। अगर 55 लाख का सरकारी ठेका दिया जाता ताे पूरे तालाब का जीर्णाेद्धार हाे जाता, लेकिन यहां सिर्फ कीकर ही कटे हैं।
पार्षद अरविंद बोले- पैसे लेकर श्रमिक लगवाने का ऑफर था
श्रमिकाें के मस्टरराेल तैयार कराने और उनकाे राेजगार दिलाने के लिए कुछ पार्षद योजना से जुड़े कर्मचारियों से झगड़ा तक कर चुके हैं। बात इतनी बढ़ी कि एफआईआर की नाैबत आ गई। आए दिन पार्षद और स्कीम में लगे कार्मिकों के बीच मतभेद होते हैं। निगम में श्रमिकों को काम दिलाने के लिए कई पार्षद रोज फाइलें लेकर घूमते हैं। जब इसका जवाब भाजपा पार्षद अरविंद किशोर आचार्य से पूछा तो वो बोले, मेरे पास ऑफर आया था कि 50 से 100 रुपए प्रति श्रमिक मिलेंगे मेरा नाम मस्टरराेल में जुड़वाकर 100 दिन का काम दिला दाे। आचार्य बाेले, मैंने मना कर दिया। हैरानी की बात ये है कि इस याेजना में लगे 80 प्रतिशत श्रमिक पार्षदाें की रिकमंडेशन से लगे हैं। कुछ श्रमिकाें के ताे फाॅर्म ही पार्षद भर रहे हैं।
श्रमिक बाेले- सिर्फ 50 रुपए में पूरे दिन की हाजिरी लगा देते हैं मेट
शहरी राेजगार गारंटी याेजना में अब जनप्रतिनिधियाें की भी नजर टिक गई है। साइटाें पर मेटाें पर 50 रुपए लेकर हाजिरी लगाने का आराेप है। हर्षाेलाव तालाब में एक श्रमिक संगीता बाेली, जाे श्रमिक काम पर नहीं आते और उसे हाजिरी लगवानी है ताे मेट काे 50 रुपए देते हैं। 50 रुपए में हाजिरी लग जाती है। गौरतलब है कि इस योजना मेंं जनप्रतिनिधियों का हस्तक्षेप बढ़ गया। हालात ये हाे गए कि जिस जाेन में चुने गए जनप्रतिनिधि से जेटीए या मेट का सामंजस्य नहीं बैठा उसका ट्रांसफर हाे जाता है। जेटीए संजना काे एेसे ही श्रीडूंगरगढ़ भेजा गया। जेटीए किरनदीप का भी जाेन बदला गया। यहां तक कि याेजना प्रभारी आेम चाैधरी काे पहले आयुक्त ने हटाया बाद में फिर वहीं लगा दिया।
जेईएन बाेला- नाैकरी करनी है इसलिए जो कहते हैं करता हूं
एक जेईएन ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि इस याेजना में इतना भ्रष्टाचार है कि पूछाे मत। दबाव चाराें तरफ से है। पार्षदाें से मिलकर मस्टरराेल बना दिए। उनकी मर्जी से जेटीए मस्टरराेल जेनरेट करते हैं। माैके पर एक चाैथाई श्रमिक भी नहीं आते। निरीक्षण करने जाते हैं ताे धमकियां मिलती हैं कि कपड़े फाड़ देंगे। मुझे मेरे ही जेटीए ने कहा कि साहब यहां मत आना वरना आपकाे दिक्कत हाेगी। वजह सबकाे पता है। मैं कुछ करने की काेशिश करूंगा ताे प्रशासन मेरी नहीं सुनेगा। मैं सरकारी आदमी हूं। मेरी मजबूरी है। बस चुपचाप नाैकरी करनी है इसलिए जाे हाे रहा वाे देख रहा हूं। जाे कहा जाता है वाे करता जा रहा हूं।
मजदूराें के साथ भी धाेखा, पूरी दिहाड़ी नहीं मिल रही
ईमानदारी से काम करने वाले श्रमिकों को पूरा पैसा नहीं मिलता। हर्षाेलाव तालाब में काम कर रही राजूदेवी का जाॅबकार्ड नंबर-202292015000314670 है। लगातार काम कर रही हैं। एक पखवाड़े के 13 दिन काम के बदले उनके खाते में 3367 रुपए मिलने चाहिए, लेकिन जमा हुए सिर्फ 2500 रुपए। नवंबर के बाद का बिल अटका है। वहीं, संगीता ने 13 दिन काम किया। खाते में सिर्फ 2600 रुपए आए। पूछने पर बाेली-मैंने शिकायत की, लेकिन काेई नहीं बता रहा कि इतना कम पैसा क्याें मिला। सरकार ने 259 रुपए प्रति दिन के हिसाब से भुगतान का आदेश दिया, लेकिन 70 प्रतिशत श्रमिकाें काे पूरी दिहाड़ी नहीं मिल रही। निगम का तर्क है कि मेजरमेंट में जाे श्रमिक जितना काम करता है उसके हिसाब से भुगतान मिलता है।
ऐसे बनता है मेजरमेंट
मस्टर राेल में रजिस्ट्रेशन के बाद काम मिलता है। मेट हाजिरी लगाकर कागज जेटीए और जेईएन काे भेजता है। जेटीए बंद कमरे में बैठकर अंदाजन मेजरमेंट बना देते हैं। इसके बाद टास्क मंजूर हाेता है और अकाउंट में बिल जाता है। जहां से पैसा सीधे श्रमिक के खाते में जमा हाेता है। यहां उस श्रमिक काे इस आधार पर पेमेंट हाेता है कि उसे काैन लाया, पार्षद, निगम का काेई जेटीए या साेशल वर्कर। इस वजह से ज्यादा काम करने वाले श्रमिक के खाते से पैसे काट लिए जाते हैं और कम काम करने वाले काे पूरा पैसा मिलता है।

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