लेस्टर की घटना के बाद क्या हिंदू-मुसलमान पहले की तरह घुल-मिलकर रह पाएँगे
ब्रिटेन के लेस्टर में पुलिस की मौजूदगी की वजह से एक अजीब-सी शांति दिखाई दे रही है. हैरान करने वाली यह शांति क़ायम करने में हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के नेताओं का भी योगदान रहा है.
यहाँ पुलिस और ऐसे नेताओं की कोशिशों से दोनों समुदायों के बीच तनाव कम हुआ है. अब यही सवाल सबके ज़हन में है कि क्या लेस्टर के लोग पहले की तरह मिल-जुलकर रह सकेंगे या उनके रिश्तों में धर्म के आधार पर दरार पड़ गई है.
28 अगस्त को एशिया कप के क्रिकेट मैच में भारत ने पाकिस्तान को हराया था, उसके बाद इस शहर में हंगामा और हिंसा शुरू हो गई थी.
लेस्टर सिटी काउंसिल पिछले हफ़्ते हुई घटनाओं की समीक्षा करने जा रहा है जिसमें देखा जाएगा कि कैसे हिंदुओं का एक समूह मुस्लिम इलाक़े से प्रदर्शन करते हुए गुज़रा. इसके विरोध में मुसलमानों ने भी हिंदू आबादी वाले इलाक़े में प्रदर्शन किया.
मुसलमानों के प्रदर्शन में पड़ोस के बड़े शहर बर्मिंघम से बहुत सारे लोग लेस्टर आ गए थे जिसके बाद तनाव और गहरा गया था.
लेस्टर में जो कुछ हुआ वैसा नज़ारा पहले कभी नहीं देखा गया था, शहर में हिंदू और मुसलमान, चाहे वे भारत से हों या पाकिस्तानी मूल के, मिलजुल कर और शांति से रहते आए हैं.
अपनी तरह का अनूठा शहर
लेस्टर की आबादी में तक़रीबन 35 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनका जन्म वहाँ नहीं हुआ है, यानी वे किसी और देश से आकर वहाँ बसे हैं. ऐसे लोगों में सबसे बड़ी तादाद उन लोगों की है जो युगांडा, कीनिया और तंज़ानिया जैसे देशों से आए हैं.
इनमें सबसे बड़ा हिस्सा गुजराती भाषी लोगों का है जिन्हें अँग्रेज़ों ने 1930-40 के दशक में अफ़्रीकी देशों में बसाया था, जब ये अफ़्रीकी देश आज़ाद हुए तो इन लोगों को काफ़ी तनावपूर्ण स्थितियों में वहाँ से जाना पड़ा, ये सभी लोग 1970 के दशक में इंग्लैंड आकर बस गए.
लेस्टर की आबादी में तक़रीबन 18 प्रतिशत मुसलमान और 14 प्रतिशत हिंदू हैं, इनमें दोनों देशों–भारत और पाकिस्तान–के मुसलमान शामिल हैं. ब्रिटेन में इन सभी लोगों की एक ही पहचान है–एशियन जिन्हें ब्रिटिश एशियन भी कहा जाता है.
लेस्टर की ख़ास बातें
•हिंदू 14 प्रतिशत
•मुसलमान 18 प्रतिशत
•कुल आबादी 3.5 लाख
•बड़ी आबादी गुजराती भाषी
•अफ़्रीकी देशों से आए भारतीय मूल के शरणार्थी
क्या कह रहे हैं हिंदू और मुसलमान?
धर्मेश लखानी, हिंदू समुदाय के एक नेता हैं जो मस्जिदों और मंदिरों के साथ मिलकर दोनों धर्मों के बीच आपसी संवाद बढ़ाने के लिए काम करते हैं. उन्हें लगता है कि लेस्टर में जो हुआ है वो हिंदू या मुसलमानों के बारे में नहीं है, इसका असर दोनों समुदायों पर पड़ा है जो कि यहाँ 50 सालों से शांतिपूर्ण तरीके से रह रहे थे और कभी कोई बड़ा मतभेद नहीं हुआ.
लखानी का कहना है कि ऐसी चीज़ें लेस्टर में अचानक होने लगी हैं.
वो कहते हैं, “हम लेस्टर में ऐसी कोई समस्या नहीं चाहते जो दूसरे देश से यहाँ लाई गई हो, हम इसे ख़त्म करना चाहते हैं.”
वो कहते हैं, “हमें साथ मिलकर समस्या का समाधान करना होगा. इस शहर को इस ज़ख्म से उबरने के लिए समय चाहिए. सारी एजेंसियां मिलकर काम कर रही हैं ताकि यहाँ पहले की तरह शांति स्थापित की जा सके और हमें उम्मीद है कि हम सफल होंगे.”
डॉक्टर इक्तेदार चीमा बर्मिंघम में इस्टीट्यूट फ़ॉर लीडरशिप एंड कम्युनिटी डिवेलपमेंट के डायरेक्टर हैं.
उनका मानना है कि हाल की सांप्रदायिक घटनाओं ने जितना नुक़सान पहुंचाया है, उसे ठीक करना मुश्किल होगा.
बात करते हुए वे कहते हैं, “दोनों ही समुदाय के लोगों को अपने राजनीतिक पूर्वाग्रहों और विचारधाराओं को अपने देश में पीछे छोड़ देना चाहिए था क्योंकि इनका सामाजिक प्रदर्शन शांति और सौहार्द के लिए ख़तरनाक है.”
उन्होंने कहा कि ब्रितानी सरकार को तुरंत क़दम उठाने चाहिए और किसी भी तरह की नुक़सान पहुँचाने वाली विचारधाराओं को कंट्रोल करना चाहिए, इससे पहले कि काफ़ी देर हो जाए.
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “दोनों समुदायों के बीच बातचीत से ही टेंशन को कम किया जा सकता है और इसी तरीक़े से नुकसान की भरपाई की जा सकती है. वहाँ रहने वाले मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों, मुसलमानों और सिखों के बीच अच्छा संवाद होता रहता है, लेकिन मुसलमानों और हिंदुओं के बीच संवाद जैसा होना चाहिए, वैसा नहीं है.”
डॉक्टर चीमा ने दोनों समुदायों के बीच संवाद बढ़ाने और इसके लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करने पर ज़ोर दिया.
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चमकता हुआ शहर
लेस्टर ब्रिटेन का सबसे ज़्यादा विविधता वाला शहर है. इसे एक समय में कई संस्कृतियों को साथ लेकर चमकते हुए शहर के तौर पर पेश किया जाता रहा है.
2021 की जनगणना का जो आंकड़ा अब तक जारी हुआ है उसके मुताबिक़ इस शहर की आबादी क़रीब 3 लाख़ 68 हज़ार है. साल 2011 से 2022 के बीच इस शहर की आबादी 11.8 फ़ीसदी बढ़ी है.
इस दौरान इंग्लैंड के बाक़ी शहरों की आबादी 6.6 फ़ीसदी बढ़ी है यानी लेस्टर की आबादी इंग्लैंड के बाक़ी शहरों के मुक़ाबले लगभग दोगुनी बढ़ी है.
लेस्टर की आबादी का बदला स्वरूप
कहा जाता है कि पिछले कुछ साल में लेस्टर की आबादी के स्वरूप में बड़ा बदलाव आया है. इसमें सबसे बड़ा योगदान भारत के दमन और दीव से आकर बसने वालों का रहा है.
दमन-दीव गुजरात के क़रीब मौजूद है. लेस्टर में आकर बसने वाले ये लोग भी गुजराती ज़ुबान बोलते हैं.
हिन्दू समुदाय के कुछ प्रमुख नेताओं ने दमन-दीव से आकर यहाँ रह रहे हिन्दू युवकों पर लेस्टर में हुए हाल के हंगामे का आरोप लगाया है.
दमन के पाटिल, टंडिल, मतना और मछी समुदाय के लोग लेस्टर में आकर बसे हैं.
पुर्तगाली क़ानून के मुताबिक़ 1961 से पहले गोवा, दमन और दीव में जन्मे लोग, उनके बच्चे या पोते-पोतियां भी पुर्तगाली पासपोर्ट के लिए आवेदन कर सकते हैं. असल में 1961 के पहले तक यह इलाक़ा पुर्तगाल के अधीन था.
साल 2016 में ब्रिटिश अख़बार ‘डेली मेल’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस योजना के आधार पर 20 हज़ार भारतीयों ने पुर्तगाली पासपोर्ट हासिल कर लिया.
ये लोग वहाँ से सीधे ब्रिटेन आ गए क्योंकि लेस्टर में पहले से गुजराती भाषी हिंदू आबादी थी जिसके साथ ताल-मेल बिठाना उन्हें ज़्यादा आसान लगा.
इस नई हिंदू आबादी की वजह से लेस्टर में समुदायों के आपसी अनुपात में अंतर आया है और कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अब हिंदू आबादी मुसलमानों से अधिक हो गई है, हालाँकि इसके भरोसेमंद आँकड़े मौजूद नहीं हैं क्योंकि बहुत सारे लोगों ने ख़ुद की पहचान नास्तिक व्यक्ति के रूप में दर्ज कराई है.
नए संगठनों का जन्म
हाल के संकट के बाद लेस्टर में दोनों समुदायों की स्थानीय राजनीति बहुत तेज़ी से बदल रही है.
अभी तक स्थानीय मस्जिदों और सामुदायिक केंद्रों से मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन फ़ेडरेशन ऑफ़ मुस्लिम ऑर्गेनाइज़ेशन यानी एफ़एमओ की तरफ़ से आवाज़ लगाई जाती रही है.
अब कुछ कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम समुदाय को लामबंद करना शुरू कर दिया है. ये मुसलमानों के नज़रिए को ज़्यादा असरदार तरीक़े से रखने के लिए एक एक्शन कमेटी बना रहे हैं.
अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा वाले इन कार्यकर्ताओं ने इस ऐक्शन कमेटी का सदस्य बनने के लिए सदस्यता अभियान भी शुरू कर दिया है. इनका मक़सद व्यापक आधार वाली एक ऐक्शन कमेटी बनाना है.
इस तरह नए बन रहे कट्टर विचारों वाले संगठनों में यह क्षमता है कि वो लेस्टर की राजनीति के समीकरण को बदल दें.
दूसरी ओर, भारत में जारी हिंदुत्व की राजनीति का असर सोशल मीडिया के ज़रिए लेस्टर में रहने वाले हिंदुओं पर पड़ता दिखता है, वे धर्म के आधार पर पहले से अधिक संगठित होते दिख रहे हैं.
लेस्टर में दोनों ही समुदाय हाल की हिंसक घटनाओं से बढ़े तनाव को कम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस घटना से दोनों समुदायों के रिश्तों पर जो घाव लगे हैं उन्हें भरना आसान नहीं होगा.
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