सोनिया के राज्यसभा निर्वाचन से पहले राजस्थान कांग्रेस में टूट:विधायकों और वरिष्ठ नेताओं ने साथ छोड़ा, दिल्ली में थाम सकते हैं बीजेपी का दामन

सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा प्रत्याशी बनने के बाद कांग्रेस पार्टी को विधायकों और वरिष्ठ नेताओं के टूटने का डर सता रहा है। चर्चा है कि भाजपा बड़े उलटफेर की तैयारी में लगी है।
कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेता-विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। CWC सदस्य और पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय सोमवार को भाजपा में शामिल हो गए। अब गहलोत सरकार में केबिनेट मंत्री रहे लालचंद कटारिया, उदयलाल आंजना और राज्य मंत्री रहे राजेंद्र यादव सहित 7 से अधिक विधायक-नेताओं के कांग्रेस का दामन छोड़ने की चर्चाएं चल रही हैं।
इस हलचल से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई वरिष्ठ नेताओं की धड़कनें बढ़ गई हैं। कांग्रेस के विधायक टूटने से क्या सोनिया गांधी के राज्यसभा के निर्वाचन पर कोई फर्क पड़ेगा? विपक्ष को और भी बैकफुट पर क्यों लाना चाहती है भाजपा? BJP अपनी रणनीति में सफल रही तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने कैसे-कैसे संकट खड़े हो जाएंगे?
पढ़िए मंडे स्पेशल स्टोरी में….
1. राजस्थान में किस तरह के तनाव से गुजर रही है कांग्रेस?
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस में अंदरखाने तूफान मचा हुआ है और मेल-मुलाकातों व एक-दूसरे के संपर्क में रहने का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस को अंदाजा नहीं था कि सोनिया गांधी के राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने के बाद ऐसा सियासी संकट खड़ा हो जाएगा।

सोनिया गांधी को कांग्रेस ने राजस्थान से राज्यसभा चुनाव का प्रत्याशी घोषित किया है।
सोनिया गांधी के प्रत्याशी बनने के कारण इस राज्यसभा चुनाव से कांग्रेस की प्रतिष्ठा जुड़ गई है। विधायकों की संख्या के लिहाज से कांग्रेस के पास फिलहाल 19 वोट अधिक हैं, लेकिन राज्यसभा के लिए राजस्थान से सोनिया गांधी के पर्चा भरने के बाद खुद के खेमे में ऐसा माहौल और बयानबाजियों के चलते प्रदेश कांग्रेस को पूरे देश में शर्मिंदा होना पड़ रहा है।
2. कौन-कौन से कांग्रेस विधायक-नेता की पार्टी छोड़ने की चर्चाएं चल रही हैं?
वागड़ क्षेत्र के बड़े नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय भाजपा में शामिल हो गए हैं। वहीं, राजधानी की बात करें, तो पूर्व कैबिनेट मंत्री लालचंद कटारिया, पूर्वी राजस्थान से राज्य मंत्री रहे राजेंद्र यादव सहित अर्जुनसिंह बामनिया, नानालाल निनामा और रमीला खड़िया जैसे विधायकों के भाजपा से संपर्क में होने की चर्चाएं हैं। भाजपा सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के और भी विधायक व नेता उनके संपर्क में हैं।

मालवीय के साथ यादव अपने बयानों के जरिए कांग्रेस को अपनी नाराजगी जता चुके हैं। भाजपा में शामिल होने से पहले मालवीय दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। सूत्रों के अनुसार कटारिया, बामनिया जैसे कांग्रेस नेता दिल्ली में भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं। सियासी फेरबदल कभी भी हो सकता है।
3. डैमेज कंट्रोल को लेकर सबसे अधिक सक्रिय कौन नजर आ रहा है?
जाहिर है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी ने राजस्थान से राज्यसभा के लिए पर्चा भरा है, तो प्रदेश के सबसे बड़े कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कंधों पर ही सबसे अधिक जिम्मेदारी रहेगी। जिन विधायकों के पार्टी छोड़ने को लेकर नाम चल रहे हैं, उनमें वे लोग हैं, जिन्होंने सियासी संकट के दौरान सरकार बचाने में गहलोत का साथ दिया था।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत डैमेज कंट्रोल में जुटे हैं।
वरिष्ठ नेता और सोनिया के नजदीकी होने के नाते पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत डैमेज कंट्रोल को लेकर सबसे अधिक सक्रिय नजर आ रहे हैं। वे अपने राजनीतिक अनुभव का इस्तेमाल कर रहे हैं और विधायकों-नेताओं को कांग्रेस से जोड़े रखने के लिए मुलाकात के साथ उनसे संपर्क भी कर रहे हैं। गहलोत ने पिछले दिनों विधायक अर्जुन सिंह बामनिया, नानालाल निनामा और रमीला खड़िया को जयपुर बुला कर बातचीत भी की थी।
4. कांग्रेस के विधायक टूटने से क्या सोनिया गांधी के राज्यसभा के निर्वाचन पर कोई फर्क पड़ेगा?
सबसे अहम सवाल यही है, जो सभी के दिलों में उठ रहा है। इसका जवाब है…नहीं। राज्यसभा में राजस्थान से 3 सीट खाली हुईं और इतने ही प्रत्याशियों की ओर से पर्चा भरा गया है। कांग्रेस से सोनिया गांधी और BJP से मदन राठौड़ और चुन्नीलाल गरासिया।
तीन सीट पर तीन ही प्रत्याशी होने के कारण इनका राज्यसभा चुनाव में निर्विरोध निर्वाचन हो जाएगा। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यदि पिछले राज्यसभा चुनाव में ओंकार सिंह लखावत के जैसे भाजपा ने एक और प्रत्याशी खड़ा कर दिया होता, तो वोटिंग की जरूरत पड़ती। इससे कांग्रेस के लिए तनाव और बढ़ सकता था। गणित के अनुसार जीत के लिए सोनिया गांधी को 51 विधायकों का साथ चाहिए, जो कोई मुश्किल नहीं लग रहा। मान लीजिए थोड़े-बहुत विधायक छिटक भी जाएं, तब भी कांग्रेस के पास पर्याप्त संख्या में विधायक रहेंगे।
5. भाजपा क्यों विधायकों-नेताओं को तोड़ना चाह रही है?
इस सियासी उठापटक का सोनिया गांधी के निर्वाचन से कोई लेना देना नहीं है। एक्सपर्ट इसे लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखते हैं। एक्सपर्ट के अनुसार चुनावों को लेकर भाजपा की रणनीति बहुत एग्रेसिव और सामने वाली पार्टी के लिए चुनौतियां खड़ी करने वाली रहती है।

लोकसभा सांसद देवजी पटेल, नरेंद्र खींचड़ और भागीरथ चौधरी विधानसभा चुनाव में हार गए थे।
भाजपा एक तीर से दो निशाने साध रही है। भाजपा को मजबूत कैंडिडेट भी चाहिए और कांग्रेस को कमजोर भी करना है। इसे ऐसे समझते हैं कि भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव से एक राज्यसभा सांसद सहित 7 सांसदों को मौका दिया था। इनमें से किरोड़ी लाल मीणा, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, दीया कुमारी और बाबा बालकनाथ जीत गए और 3 की हार हुई।
सूत्रों के अनुसार सांसदों के विधायक बनने के बाद 3 लोकसभा सीट खाली हो गई हैं और विधानसभा चुनाव में हारने वालों को भी भाजपा इस लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देना चाह रही।
ऐसे में जयपुर ग्रामीण, अलवर, राजसमंद, अजमेर, झुंझुनूं और जालोर में नए चेहरों को मौका मिलेगा। यहां भाजपा को मजबूत चेहरे चाहिए होंगे और यदि कांग्रेस से महेंद्रजीत सिंह मालवीय के बाद लालचंद कटारिया, राजेंद्र यादव, अर्जुनसिंह बामनिया जैसे नेता भाजपा में शामिल हो जाते हैं, तो भाजपा को विकल्प के रूप में मजबूत कैंडिडेट मिल जाएंगे।

फोटो में कांग्रेस नेता रिछपाल मिर्धा अपनी भतीजी और BJP नेता ज्योति मिर्धा के पीछे खींवसर से भाजपा के टिकट पर लड़ने वाले रेंवत राम डांगा और स्थानीय BJP नेताओं के साथ नजर आ रहे हैं।
6. भाजपा अपनी रणनीति में सफल रही तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने कैसे-कैसे संकट खड़े हो जाएंगे?
कांग्रेस को दो मोर्चों पर सीधा नुकसान होगा। लोकसभा चुनाव सिर पर है और आचार संहिता कभी भी लग सकती है।
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार विधानसभा में पहुंचे दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं। इनमें अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा जैसे दिग्गज नाम शामिल हैं।
कांग्रेस के सामने पहला संकट यही रहेगा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को अच्छी चुनौती देने के लिए दिग्गज नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मनाया जाए। दूसरा संकट यह कि PM नरेंद्र मोदी, राम मंदिर जैसे मुद्दों के सामने टिकने वाले कैंडिडेट्स ढूंढे जाएं। इस स्थिति में अगर मालवीय के बाद यदि कटारिया जैसे नेता छिटकते हैं तो कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।
7. कुछ नेता दल बदल का माहौल बना कर क्या कांग्रेस पर दबाव बनाना चाह रहे हैं?
नेताओं का चुनावों के दौरान पार्टियां बदलने का हथकंडा नया नहीं है। एक्सपर्ट के अनुसार दबाव बनाने के लिए कुछ नेता कांग्रेस पार्टी छोड़ने का माहौल बना रहे हों, इन बातों से इनकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस पार्टी कुछ सीटों पर नए चेहरे उतारना चाह रही है और ऐसे में वरिष्ठ नेता खुद की टिकट पक्की करना चाहते हैं।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने खिलाड़ी लाल बैरवा का टिकट काटा था और वे निर्दलीय चुनाव लड़कर हारे। सूत्रों के अनुसार अब लोकसभा चुनाव में धौलपुर-करौली सीट से कांग्रेस से टिकट मांग रहे हैं। हो सकता है कि इस कारण वे दबाव की राजनीति अपना रहे हों।
इसी तरह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लेने वाले लालचंद कटारिया को जयपुर ग्रामीण सीट से चेहरा माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान और सचिन पायलट यहां से किसी नए चेहरे को प्रत्याशी बनाना चाह रहे हैं। ऐसे में पार्टी में चर्चा है कि कटारिया खुद की टिकट पक्की करने के लिए भी दल-बदल करने का माहौल बना सकते हैं।
राज्यसभा चुनाव – क्या कहता है गणित, किसका पलड़ा भारी?
भले ही राजस्थान में भाजपा की सरकार है, लेकिन राज्यसभा चुनाव का गणित वही पुराना ही रहने वाला है। सीटों का गणित समान रहने के कारण राज्यसभा के इस चुनाव में खास रोचकता नहीं है। भाजपा फिर दो सीटें जीत लेगी। वहीं, कांग्रेस भी अपनी खाली सीट को बचाने में कामयाब हो सकती है।
गौरतलब है कि राजस्थान से 10 राज्यसभा सांसद चुने जाते हैं। वर्तमान में 6 सीटों पर कांग्रेस और 3 पर भाजपा के सांसद काबिज हैं। एक सीट खाली चल रही है।

कौन से फॉर्मूले से तय होगी जीत-हार?
राज्यसभा के सदस्यों को विधायक चुनते हैं। चुनाव के फॉर्मूले के तहत विधायकों की कुल संख्या में राज्यसभा की रिक्त सीटों में 1 जोड़कर भाग दिया जाता है। जैसे, राजस्थान में 200 विधायक हैं और राज्यसभा की 3 सीटें खाली हैं। ऐसे में 200 में 3+1(= 4) का भाग देने पर संख्या 50 आती है, जिसमें एक जोड़ने पर यह 51 हो जाता है।
इस तरह प्रत्येक प्रत्याशी को जीतने के लिए 51 वोट चाहिए। लेकिन सीट और प्रत्याशियों की संख्या में कोई अंतर नहीं होने से वोटिंग की नौबत आने की संभावना न के बराबर है।

वोटिंग हुई तो प्रायोरिटी कैसे होती है तय?
इसे वर्तमान राज्यसभा चुनाव के उदाहरण से समझते हैं। राज्यसभा चुनाव में जितने प्रत्याशी खड़े होते हैं, उनके नाम के आगे नंबर लिखे होते हैं। इसमें विधायकों को प्रायोरिटी (वरीयता) के आधार पर उस पर चिन्ह लगाने होते हैं।
भाजपा के पास 115 विधायक हैं। वर्तमान में भाजपा के दो प्रत्याशी हैं। ऐसे में प्रत्येक प्रत्याशी को पर्याप्त मत देने के लिए करीब आधे विधायक पहले प्रत्याशी को प्राथमिकता देते हैं और बचे आधे विधायक दूसरे प्रत्याशी को प्राथमिकता देने के लिए चिन्ह लगाते हैं।
इसी तरह कांग्रेस के पास 70 विधायक हैं। अपनी पार्टी के प्रत्याशी को प्राथमिकता देने के लिए कांग्रेस के विधायक चिन्ह लगाते हैं और ऐसे में कांग्रेस की एक सीट सुरक्षित है।

















Add Comment