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“ब्लैकआउट के दौरान शहर अंधेरे में डूबा, सड़कें सुनसान, लेकिन कोटगेट थाने का सिपाही अपने घर की लाइट जलाकर बैठा रहा!”

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“ब्लैकआउट के दौरान शहर अंधेरे में डूबा, सड़कें सुनसान, लेकिन कोटगेट थाने का सिपाही अपने घर की लाइट जलाकर बैठा रहा!”

बीकानेर।
देश की सुरक्षा तैयारियों को परखने के लिए गुरुवार रात बीकानेर में जिला प्रशासन द्वारा ब्लैक आउट किया गया।

ब्लैक आउट के दौरान लोगों को कहा गया कि अपने घरों की लाइट बंद रखें। इस दौरान वॉलंटियर्स और पुलिस जवान गली-गली जाकर लोगों को सूचित कर रहे थे, सायरन बजाए गए और देशहित में लाइटें बुझाने की अपील की गई। अधिकांश लोगों ने इसमें सहयोग किया, घरों की लाइटें बुझा दीं, सड़कों पर अंधेरा छा गया और वाहनों की आवाजाही भी थम सी गई।

लेकिन इसी बीच न्यू मातेश्वरी कॉलोनी में स्थित एक घर में रोशनी जलती रही।
जानकारी के अनुसार, यह घर कोटगेट थाना में पदस्थापित कांस्टेबल श्रवण यादव का है। जब वॉलंटियर्स ने कॉलोनी में सायरन बजाकर लोगों को सूचित किया और लाइट बंद करने को कहा, तो श्री यादव के घर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। वॉलंटियर ने कई बार आवाज दी, दरवाजा खटखटाया, लेकिन सिपाही साहब न तो बाहर आए और न ही घर की लाइट बंद की।

सवाल यह उठता है कि जब एक वर्दीधारी जवान ही ब्लैक आउट जैसे राष्ट्रहित प्रयासों में सहयोग नहीं करेगा, तो आम नागरिक से क्या उम्मीद की जा सकती है? क्या यह सीधे तौर पर आदेश की अवहेलना नहीं है?


जनता सहयोग कर रही, पर कुछ लापरवाह भी

बता दें कि बीकानेर जिला प्रशासन ने कल ही आदेश जारी कर दिए थे कि सुरक्षा कारणों से शाम 7 बजे से सुबह 5 बजे तक बाज़ार बंद रहेंगे, सभी प्रकार की लाइटें बुझाई जाएंगी और केवल आवश्यक सेवाओं को अनुमति दी जाएगी। अधिकांश बाजार, प्रतिष्ठान और आम नागरिकों ने इसका पालन किया।

लेकिन कुछ धार्मिक स्थलों पर रोशनी देखी गई और कई निजी समारोहों, फंक्शनों में भी लाइट जलती रही। यह प्रशासनिक आदेशों की खुली अवहेलना है।


बीकानेर में ब्लैकआउट ड्रिल प्रशासनिक प्रतिबद्धता और नागरिक जागरूकता का बड़ा उदाहरण बन सकती थी, लेकिन कुछेक लापरवाह अधिकारियों और धार्मिक संस्थानों की उदासीनता ने इस प्रयास पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। अब देखना होगा कि प्रशासन ऐसे मामलों में क्या सख्त कदम उठाता है।


आपका क्या मानना है? क्या वर्दीधारी जवानों को मॉक ड्रिल के दौरान आदर्श व्यवहार का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए?
क्या धार्मिक स्थलों और समारोहों में भी सुरक्षा आदेशों का पालन अनिवार्य नहीं होना चाहिए?

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