अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस एवं बाल अधिकार सप्ताह: एक चिंतन (संदर्भ 18 नवंबर: अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस)
सौंपोगे अपने बाद विरासत में क्या मुझे बच्चे का ये सवाल है गूँगे समाज से
किसी भी राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति उस राष्ट्र के बच्चे होते हैं। यदि भारत में बच्चों की स्थिति पर गौर करें तो दुनिया का हर पांचवा बच्चा भारत में रहता है। दुनिया का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारत में रहता है। हर दूसरा भारतीय बच्चा कम वजन का है।भारत में हर चार बच्चों में से तीन में खून की कमी (रक्त अल्पता) होती है।हर दूसरे नवजात शिशु में आयोडीन की कमी के कारण उनके सीखने की क्षमता का ह्रास होता है।
0 से 6 वर्ष में, स्त्री-पुरुष के अनुपात में सर्वाधिक गिरावट है: 1000 पुरुषों पर 927 महिलाएं हैं, जन्म का पंजीकरण सिर्फ 62% है।प्राथमिक स्तर पर शिक्षा जारी रखने का प्रतिशत 71.1% है।प्राथमिक स्तर पर लड़कियों के दाखिल का प्रतिशत 47.79% है।देश में 1104 लाख बाल मजदूर है। शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जन्म पर, बाल मृत्यु दर भी इतनी ही ज्यादा है, प्रति 1,00,000 जन्म पर 301 मृत्यु ,46 बच्चे निम्न दर के साथ पैदा होते हैं।
ये केवल आंकड़े भर है, यदि भारत में बच्चों की आर्थिक सामाजिक शारीरिक स्थिति का आकलन किया जाए तो यह समझ में आता है कि भारत में बच्चों पर बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है और सर्वाधिक आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्र में है।
इसी सोच के साथ यूनिसेफ और एसएसडीएस द्वारा विश्व बाल दिवस तथा बाल अधिकारिता दिवस मनाया जा रहा है ताकि बच्चों को उनके अधिकारों का ज्ञान हो सके और सरकार को उनकी जिम्मेदारियों का।
उनके सभी अधिकार, और सरकारों की जिम्मेदारियां सभी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और उन्हें बच्चों से दूर नहीं किया जा सकता है।बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन उन देशों के साथ एक महत्वपूर्ण समझौता है जिन्होंने बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने का वादा किया गया है।चाहे वे कोई भी हों, जहां रहते हैं, जो भाषा बोलते हैं, उनका धर्म क्या है, वे क्या सोचते हैं, वे कैसे दिखते हैं, चाहे वे लड़का हों या लड़की, अगर वे विकलांग हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके माता-पिता या परिवार कौन हैं या उनके माता-पिता या परिवार क्या मानते हैं या करते हैं। किसी भी बच्चे के साथ किसी भी कारण से अन्याय नहीं होना चाहिए।जीवन अस्तित्व और विकास हर बच्चे को जिंदा रहने का अधिकार है। सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे जीवित रहें और सर्वोत्तम संभव तरीके से विकसित हों। साथ ही बच्चों के नाम और राष्ट्रीयता बच्चों को जन्म के समय पंजीकृत किया जाना चाहिए और एक ऐसा नाम दिया जाना चाहिए जिसे सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त हो। इसके साथ ही बच्चों की सुरक्षा शिक्षा उनके साथ होने वाले अपराधों से बचाव उनके पूर्ण व्यक्तित्व के विकास इन सभी को ध्यान में रखकर यूनिसेफ और एसडीएस द्वारा भारत की संसद से लेकर भारत के गांव में सुदूर प्रांतों में बच्चों को अधिकारों के प्रति सजग बनाने और उनके जीवन स्तर को सुधारने के मंतव्य के साथ यह दिवस एवं सप्ताह आयोजित किया गया है। यूनिसेफ के इस मिशन ने भारत में भी बच्चों के अधिकारों को लेकर सकारात्मक वातावरण विकसित किया है।
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