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– बदलता इंसान

आदीमानव से मानव बना इंसान।
फिर भी इंसान की खाल में जानवर रहा इंसान।।
सोचने-समझने को शक्ति तो पाली इसने।
आधुनिकता की ओर अग्रसर भी रहा इंसान।।
कई विषयों पर विचार-विमर्श को किए इसने ।
आध्यात्मिकता को भी निचोड डाले इंसान।।
फिर भी हैवानियत को कम न कर पाया ये।
लालच की आड में अपनो की लीन गया इंसान।।
कभी जर-जोरु – जमीन के पीछे दौड़ा ये।
कभी अपनो का खून बहाए इंसान।।
कभी नशे की लत को लगा कर ये।
अपने प्यार-परिवार को निगल गया इंसान।।
पैसो की भूख इस इतनी ज्यादा बढ़ गई इसकी।
भगवान के नाम की आढ लेने से भी न रोक पाया इंसान।।
विश्वास की छाया लपेट कर घूम रहा ये।
विश्वास घात से पूरा ढाका हुआ इंसान।।
मान-सम्मान के नाम पर लड रहा ये। अपनी इज्जत को ही गंवा रहा इंसान।।
मंजूषा की कलम से…

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