मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं का प्रतिबिंब: कवयित्री दीप्ति सीता विजयकुमार का काव्य संग्रह ‘भाव व्योम’
डॉ शालिनी यादव
‘भाव व्योम’ काव्य संग्रह कवयित्री दीप्ति सीता विजयकुमार का प्रथम काव्य संग्रह है परन्तु कही से भी ऐसा प्रतीत नही होता। इस संग्रह में उनका विषय चयन अत्यधिक व्यापक हैं और उनकी समसामयिक विषयों पर प्रकाश डालती कविताएं आमजन के मार्गदर्शन में सहायक जान पड़ती हैं और जीवन को सकारात्मक तरीके से जीने के लिए अग्रसर करती हैं। यह काव्य संग्रह राइटर्स इंटरनेशनल एडिशन के द्वारा प्रकाशित किया गया है।
फार्म, रचना, अभिव्यक्ति और शब्दों के चुनाव की अगर बात करें तो दीप्ति सीता विजयकुमार एक अलहदा व्यक्तित्व की धनी और कला में माहिर प्रतीत होती हैं। कही उनमें महादेवी वर्मा की झलक मिलती है और कही सुभद्रा कुमारी चौहान की।
संग्रह की कविताएं गीतिल, मुखर और सरल है और प्रकृति और मानवीय मूल्यों के प्रति सजगता और संवेदनशीलता को उजागर करती हैं। कवयित्री का जिज्ञासु मन सृष्टि की रचनाओं और नियमित चक्र पर सवाल उठाता है-
क्यों होती हैं सुबह? क्यों होती हैं रात?
निकलती क्यों हैं धूप? क्यों होती बरसात?
कहाँ से आती खुशबू फूलों में? भरता रंग हैं इनमें कौन?
तकनीकी युग में जब देश का युवा वर्ग नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीन होता जा रहा हैं और एकल जीवन की तरफ झुकाव बढ रहा हैं ऐसे दौर में स्वामी विवेकानंद और विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर की तरह अपनी लेखनी के माध्यम से कवयित्री देशप्रेम और सार्वभौमिक भाईचारे की अलख जगाना चाहती हैं और लिखती हैं-
एक ईश्वर की हम संतान
मेरा भारत महान
कश्मीर की धरती, मुकुट हिमालय
हिमालय से निकली गंगा की धारा।
कन्याकुमारी के चरणों में शीश के फूल चढाएंगे
देश के लिए ही जिएंगें, देश के लिए मर जाएंगे
रेगिस्तानों में हम मिलकर प्रेम के पौधे लगाएंगें
भेदभाव सब मिटाकर हम सबको गले लगाएंगें।
कवयित्री बेरोजगारी, गरीबी और महामारियों जैसी ज्वलंत समस्याओं से मिलकर लड़ने की सलाह देती हैं और भारतीय समाज में धर्म, रंग, जाति भेद से परे सबको समान अधिकार की पैरवी करती है-
हिन्दु मुस्लिम का भेद मिटाएँ, ऊँच-नीच को जड़ से हटाएँ,
सबको समान अधिकार दिलाएँ आओ सब मिल कर एक हो जाएँ।
कवयित्री सद्भाव और सवेंदनशीलता की परिचायक के रूप में पशु-पक्षियों के प्रति दयावान बने रहने का संदेश भी देती हैं और ‘मानव और जानवर’ कविता के माध्यम से मनुष्य के पशुओं के प्रति बढते अत्याचार और अमानवीय व्यवहार को लेकर चिंता व्यक्त करती हैं-
सह कर यह सब वे कह सकते न कुछ पर
क्या यह सब सह कर समझते ना होंगे हमें तुच्छ।
आज का मनुष्य देखो कितना स्वार्थी बन गया है
दया हैं उसमें फिर भी निर्दयी बन गया है।
जरूरत के लिए करता था मानव शिकार
पर शौक के लिए भी क्यों मानव उठाता पशु पर हथियार।
दीप्ति सीता विजयकुमार अपनी कुछ विशिष्ट कविताओं में समाज में प्रचलित ढकोसलों, कुरीतियों और लोगों की दूषित मानसिकता पर कटाक्ष भी करती है। ‘क्योकि हम अच्छे लोग हैं’ कविता में वह वर्तमान में लोगों के दोगले चेहरों पर से पर्दा उठाते हुए व्यंग्य करती हैं-
सड़कों पर नजरें झुका कर चलो
हंसी को अपनी दबा कर चलो
चोर से क्या सिपाही से दामन बचा कर चलो
ईमानदारी आजकल मिलना संयोग हैं
क्योकि अच्छे लोग हैं।
जहाँ एक तरफ दीप्ति सीता विजयकुमार का काव्य जिसमें सृष्टि की सुंदर रचनाओं का बखूबी उपयोग किया गया है जैसे कि सूर्य, चंद्रमा, तालाब, नदियां, पशु, पक्षी, पर्वत इत्यादि, हमें प्रकृति के और करीब रहने और इसे सरंक्षित रखने के लिए प्रेरित करता हैं वही दूसरी तरफ मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं के भवसागर में गोते खाते मानवीय मन को झकझोरने और सही जीवनदर्शन का ज्ञान देने का कार्य भी करता है।
कल्पनाओं की दुनियाँ और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक अनूठे लोक में विचरण करवाकर फिर यथार्थ के मजबूत धरातल तक ले आने की यही विशेषता ‘भावव्योम’ संग्रह को पाठक के चेतनमन तक पहुँच उसे मंत्रमुग्ध करने में सक्षम बनाती हैं।
डॉ शालिनी यादव
प्रोफेसर, लेखिका & स्तंभकार
जयपुर, राजस्थान
Add Comment