गणतंत्र दिवस विशेष: कवयित्री अंत्रिका सिंह की भावपूर्ण रचना ‘सींचा जिन्होंने रक्त से माटी’
सींचा जिन्होंने रक्त से माटी
सींचा जिन्होंने रक्त से माटी, स्वतन्त्रता उपजाने को।
गाथा उनकी गाते हैं हम , गर्व है उनपे जमाने को।।
नित नित शीश नवाते हैं हम, गर्व है सारे जमाने को।।
निज मात पिता से ले विदा,मां भारती पर कुर्बान हुए,
जो घर के राजदुलारे थे , वो अमर शहीद जवान हुए,
सर्वस्व जिन्होंने वार दिया
स्वतंत्रता की अलख जगाने को।
गाथा उनकी गाते हैं हम , गर्व है उनपे जमाने को।।
जो अंग्रेजों से डरे नहीं , मुश्किल में भी थे झुके नहीं,
पथ में थे विषैले शूल किंतु,लड़ते ही रहे पग रुके नहीं,
अनगिन उपाय,सब यत्न, युक्ति,
निष्फल थे जिन्हें धमकाने को।
गाथा उनकी गाते हैं हम , गर्व है उनपे जमाने को।।
कारावास, डंडे, गोली, सब मौन धारकर झेल गए,
माटी का तिलक लगा हंसकर,फंदों से थे जो झूल गए,
कालापानी भी सक्षम न हुआ,
जिन शूरवीरों को डराने को।
गाथा उनकी गाते हैं हम , गर्व है उनपे जमाने को।।
अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए,पग पग पर धूल चटाई थी,
हथियारों से ले,सत्य अहिंसा,यह सत्याग्रह की लड़ाई थी,
पथ भिन्न, एक उद्देश्य थे जिनके,
विदेशियों से देश बचाने को।
गाथा उनकी गाते हैं हम , गर्व है उनपे जमाने को।।
स्वतंत्र हुई, गणतंत्र बनी , जनतंत्र बनी भारतभूमि,
बेदाग तिरंगा लहराया , अम्बर हर्षा , धरती झूमी,
माटी के अंक में विलीन हुए,
जो विजयध्वजा फहराने को।
गाथा उनकी गाते हैं हम , गर्व है उनपे जमाने को।।
कवयित्री अंत्रिका सिंह
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
स्वरचित एवं मौलिक
प्रयागराज की कवयित्री अंत्रिका सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों को समर्पित अपनी भावपूर्ण रचना ‘सींचा जिन्होंने रक्त से माटी’ के माध्यम से देशभक्ति की भावना को नई ऊंचाई दी है। उनकी यह कविता स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता, बलिदान और मातृभूमि के प्रति उनकी अटूट निष्ठा को शब्दों के माध्यम से जीवंत करती है।
देशभक्ति और बलिदान का गुणगान
कविता की शुरुआत उन महान बलिदानियों की महिमा का वर्णन करती है, जिन्होंने अपने रक्त से भारत की भूमि को सींचा और स्वतंत्रता का बीज बोया। कवयित्री कहती हैं,
“गाथा उनकी गाते हैं हम, गर्व है उनपे जमाने को।”
यह पंक्तियां हर भारतीय के दिल में उन शहीदों के प्रति गर्व और कृतज्ञता का भाव जाग्रत करती हैं।
शहीदों का अमर संदेश
कविता में शहीदों के अदम्य साहस और निडरता को रेखांकित किया गया है। चाहे वह जेल की सख्त यातनाएं हों, कालापानी की सजा हो, या फांसी का फंदा—इन वीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी निडरता और आत्मबलिदान को कवयित्री ने मार्मिक शब्दों में उकेरा है:
“कारावास, डंडे, गोली, सब मौन धारकर झेल गए।”
अहिंसा और सत्याग्रह की लड़ाई का गौरव
कवयित्री ने सत्य और अहिंसा के बल पर लड़ी गई स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को भी अपनी कविता में स्थान दिया है। यह पंक्तियां स्वतंत्रता संग्राम के उन वीर योद्धाओं को नमन करती हैं, जिन्होंने अंग्रेजों को सत्याग्रह के माध्यम से पराजित किया।
गणतंत्र की विजयगाथा
कविता के अंत में कवयित्री ने भारत की स्वतंत्रता और गणतंत्र की स्थापना को विजयध्वज के रूप में प्रस्तुत किया है। वे कहती हैं:
“स्वतंत्र हुई, गणतंत्र बनी, जनतंत्र बनी भारतभूमि।”
यह पंक्तियां आजादी के अमृतकाल में देश की प्रगति और गौरव को रेखांकित करती हैं।
देशप्रेम को समर्पित रचना
कवयित्री अंत्रिका सिंह की यह रचना न केवल स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा का गुणगान करती है, बल्कि आज की पीढ़ी को उनके बलिदान से प्रेरणा लेने का संदेश भी देती है। प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की यह प्रतिभाशाली कवयित्री अपनी रचना के माध्यम से देशभक्ति के स्वरों को बुलंद कर रही हैं।
गणतंत्र दिवस पर इस कविता को पढ़ना हर भारतीय को न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि उन शहीदों के बलिदान को याद दिलाएगा, जिन्होंने हमें यह स्वतंत्रता दी।
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