“बच्चों के सपनों को उड़ान दें: अभिभावकों की जिम्मेदारी और सही दिशा”
पिछले कुछ समय में कोचिंग विद्यार्थियों की आत्महत्या की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसने समाज और विशेषकर सरकार को गहरी चिंता में डाल दिया है। जहां एक ओर शिक्षा को बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों की अत्यधिक महत्वाकांक्षाएं और प्रतिस्पर्धा बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। यह स्थिति बच्चों के लिए बेहद तनावपूर्ण हो सकती है, और कई बार वे इसके दबाव को सहन नहीं कर पाते।
आजकल के बच्चों पर कोचिंग की दुनिया में अत्यधिक दबाव डाला जाता है, खासकर उन बच्चों पर जो अपनी रुचियों के बजाय परिवार के दबाव के कारण शिक्षा के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर होते हैं। बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर या किसी प्रतिष्ठित पेशेवर के रूप में देखने की इच्छा रखने वाले अभिभावक अक्सर यह भूल जाते हैं कि बच्चों की अपनी इच्छाएं और सपने होते हैं।
यह सच है कि बच्चे हमेशा अपने माता-पिता की उम्मीदों को पूरा करने का प्रयास करते हैं, लेकिन यह भी जरूरी है कि अभिभावक बच्चों की इच्छाओं और रुचियों को समझें। जब माता-पिता बच्चों पर अत्यधिक दबाव डालते हैं, तो वे आत्मविश्वास की कमी महसूस करते हैं, और जब वे अपने परिवार की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाते, तो मानसिक तनाव और अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में बच्चे गलत संगत में फंस सकते हैं या अवसादित हो सकते हैं, और स्थिति इतनी गंभीर हो सकती है कि वे आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठा लेते हैं।
यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या अभिभावकों का यह कर्तव्य नहीं बनता कि वे बच्चों के सपनों को उसी प्रकार महत्व दें, जैसे वे स्वयं से कुछ उम्मीदें रखते हैं। आज भी, बहुत से अभिभावक अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर या किसी अन्य पारंपरिक पेशे में डालने के लिए अंधी दौड़ में शामिल होते हैं। छठी कक्षा से ही बच्चों को प्रतियोगिता की दौड़ में झोंक दिया जाता है, और उनकी व्यक्तिगत इच्छाओं और सपनों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
क्या कभी अभिभावकों ने अपने बच्चों से यह जानने की कोशिश की है कि वे वास्तव में क्या करना चाहते हैं? हर बच्चा अपनी जगह पर अनमोल होता है, और सभी बच्चों में कोई न कोई अद्वितीय प्रतिभा छुपी होती है। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को समझें और उनके सपनों को उड़ान दें। बच्चों के सपनों को उड़ान देना सिर्फ उनके उज्जवल भविष्य की कुंजी नहीं है, बल्कि यह उनके आत्मविश्वास को भी मजबूत करता है और उन्हें सही दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
अक्सर, बच्चों पर पढ़ाई के लिए डाले गए दबाव के कारण वे मानसिक रूप से टूट जाते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे इस दिशा में सकारात्मक सोच अपनाएं। उन्हें चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद करें, उनके मन को समझें और उनके साथ समय बिताएं ताकि वे खुलकर अपनी समस्याएं और विचार अभिव्यक्त कर सकें। बच्चों की संगति पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य और भविष्य को प्रभावित करता है।
माता-पिता से अच्छा दोस्त कोई नहीं होता। अगर माता-पिता अपने बच्चों के अच्छे दोस्त बनें, तो बच्चों को अपनी समस्याओं को साझा करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। माता-पिता को बच्चों की मानसिक स्थिति और उनकी भावनाओं को समझना चाहिए, ताकि वे उनके सपनों को पूरा करने में सहायक बन सकें।
यदि हम अभिभावकों के तौर पर बच्चों के सपनों को उड़ान देने में मदद करें, तो हम उन्हें किसी भी मुश्किल से उबारने में सक्षम होंगे। बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए, अभिभावकों को अपने कर्तव्यों को पहचानने की जरूरत है और उन्हें हर कदम पर बच्चों का साथ देना चाहिए।
समाप्ति में, यह हमारा कर्तव्य है कि हम बच्चों को स्वतंत्रता, समझदारी और समर्थन के साथ उनकी उन्नति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें, ताकि वे आत्मविश्वास से भरे और अपने सपनों की ओर बढ़ सकें।
लेखक: डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
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