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अब .303 राइफल नहीं, इन हथियारों से आतंकियों का सामना करेंगे ‘गांव’ वाले, रात में भी देंगे टक्कर

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अब .303 राइफल नहीं, इन हथियारों से आतंकियों का सामना करेंगे ‘गांव’ वाले, रात में भी देंगे टक्कर

सीमावर्ती गांवों में निगरानी बढ़ाने और सीमा पर संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सरकार ने वीडीजी का गठन किया था। वहीं वीडीजी को आतंकियों के अत्याधुनिक हथियारों से मिल रहीं कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि उनके पास पुरानी .303 राइफलें हैं, जो लेटेस्ट अमेरिकी एम-4 कार्बाइन के सामने फेल हैं।

विस्तार

जम्मू डिविजन में आतंकियों के तलाशी अभियान में सुरक्षा बलों की मदद विलेज डिफेंस गार्ड्स यानी ग्राम रक्षा गार्ड भी कर रहे हैं। भारी और अत्याधुनिक हथियारों जैसे एके-56 और एम-4 कार्बाइन से लैस आतंकियों का सामना कर रहे विलेज डिफेंस गार्ड्स ने आतंकवादियों को भागने नहीं देने की कसम खाई है। हालांकि सुरक्षा बलों के पास तो अत्य़ाधुनिक हथियार हैं लेकिन विलेज डिफेंस गार्ड्स (VDG) अभी भी पुरानी .303 राइफलों से आतंकियों का सामना कर रहे हैं। .303 राइफलें आतंकवादियों के स्वचालित हथियारों के सामने कुछ भी नहीं हैं। वहीं सरकार ने उन्हें भी आधनिक हथियार और उपकरण देने का फैसला किया है।  

मिलेंगे इंसास या एसएलआर जैसे सेमीऑटोमैटिक हथियार
सूत्रों के मुताबिक सरकार जम्मू क्षेत्र के आतंकवाद प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए ग्राम रक्षा समूह (वीडीजी) के सदस्यों को पुरानी .303 राइफलों के बदले इंसास या एसएलआर जैसे सेमीऑटोमैटिक हथियार देने की तैयारी कर रही है। इसके साथ ही, विलेज डिफेंस गार्ड्स को इन हथियारों पर लगाने के लिए नाइट विजन डिवाइसेज भी दिए जाएंगे, ताकि रात के अंधेरे में भी आतंकियों का सामना कर सकें। सरकार ने यह फैसला जम्मू के कई ग्रामीण इलाकों में आतंकवादी हमले बढ़ने के बाद लिया है। विलेज डिफेंस गार्ड्स आतंकियों से मुकाबले करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। आतंकियों के पास अमेरिकी एम4 कार्बाइन जैसे हथियार हैं, जो नाइट विजन डिवाइसेज से लैंस हैं। इन हथियारों को नाटो सैनिकों ने 2021 के बाद अफगानिस्तान से वापसी के बाद वहीं छोड़ दिया था।

संदेहास्पद गावों में पहले मिलेंगे हथियार
सूत्रों के बताया कि सरकार नई रणनीति के तहत अतिरिक्त वीडीजी सदस्यों की भर्ती करने की भी योजना बना रही है। ये भर्तियां उन इलाकों में की जाएंगी, जो आतंकवादी गतिविधियों के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं, उन क्षेत्रों के युवाओं को वीडीजी का सदस्य बनाया जाएगा। कुछ वीडीजी सदस्यों को पहले ही नए हथियार दिए जा चुके हैं। बाकी चरणों में सभी वीडीजी को सेमी ऑटोमैटिक हथियार उपलब्ध कराए जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक शुरुआत में, जिन संवेदऩशील पहाड़ी इलाकों में विदेशी आतंकवादियों को शरण देने का संदेह हैं, वहां के वीडीजी को सेमी ऑटोमैटिक हथियार दिए जाएंगे। जिसके बाद सभी वीडीजी को धीरे-धीरे ये हथियार मुहैया कराए जाएंगे। इसके लिए जम्मू के सभी जिला पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिया गए हैं कि वे वीडीजी को नए हथियार चलाने के लिए प्रशिक्षण दें। साथ ही, पहाड़ी इलाकों और आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ के लिए अकसर इस्तेमाल किए जाने वाले मार्गों पर नए वीडीजी सदस्यों की भर्ती करें। 

डेसा के जंगल में आतंकियों से भिड़ गए थे वीडीजी सदस्य
सीमावर्ती गांवों में निगरानी बढ़ाने और सीमा पर संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सरकार ने वीडीजी का गठन किया था। वहीं वीडीजी को आतंकियों के अत्याधुनिक हथियारों से मिल रहीं कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि उनके पास पुरानी .303 राइफलें हैं, जो लेटेस्ट अमेरिकी एम-4 कार्बाइन के सामने फेल हैं। .303 राइफलों से लैस विलेज डिफेंस गार्ड्स जम्मू डिविजन के जिलों में सुरक्षा बलों को उन आतंकवादियों की तलाश में मदद कर रहे हैं, जिन्होंने कठुआ, डोडा, राजौरी, पुंछ में भारतीय सेना पर और रियासी जिले में तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस पर हमला किया था। इससे पहले डोडा में आतंकवादियों के साथ एक घंटे तक चली भीषण मुठभेड़ के बाद डेसा के जंगल में वीडीजी सदस्यों ने महत्वपूर्ण ठिकानों पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया था। पुराने हथियारों से लैस होने के बावजूद, वीडीजी ने सेना के साथ बहादुरी से आतंकियों का सामना किया था।

पहचान पत्र और वर्दी देने की मांग
विलेज डिफेंस गार्ड्स ने आतंकवादियों को इलाके से भागने नहीं देने की कसम खाई है, लेकिन उनका कहना है कि भारी हथियारों से लैस आतंकियों का मुकाबला करने के लिए उनके धीमी रफ्तार वाले बोल्ट-एक्शन हथियारों की जगह एडवांस ऑटोमैटिक राइफलें मिलनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के वीडीजी सदस्य सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि हम चौबीसों घंटे ड्यूटी कर रहे हैं क्योंकि हम इलाके की भौगोलिक स्थिति जानते हैं। अगर हमारे पास लेटेस्ट हथियार हों, तो हम आतंकवादियों मार गिरा सकते हैं। सरकार को हमें लेटेस्ट हथियार, पहचान पत्र और उचित वर्दी देनी चाहिए, ताकि हम आतंकवाद का खुलकर मुकाबला कर सकें। उन्होंने आगे कहा कि हम इस इलाके की भौगोलिक परिस्थितियों से परिचित हैं और आतंकवादियों से निपटने के लिए हमें ऑटोमैटिक हथियारों की जरूरत है। 

10 गुना अधिक ताकत से लड़ेंगे
वीडीजी सदस्य शर्मा ने कहा कि जब से विदेशी आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों पर हमले तेज किए हैं, तब से वे जंगली इलाकों में में आतंकवादियों को ढूंढ रहे हैं। जब से हमें राइफलें दी गई हैं, हम आतंकवादियों से लड़ रहे हैं, लेकिन अगर हमें अत्याधुनिक हथियार दिए जाएंगे, तो हम 10 गुना अधिक ताकत से लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि हालांकि वे सुरक्षा बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे हैं, लेकिन पहचान पत्र न होने से उन्हें दिक्कत आती है।

1990 के दशक में हुआ था गठन
वीडीजी को पहले ग्राम रक्षा समितियां (वीडीसी) के नाम से भी जाना जाता था। उनकी स्थापना पहली बार 1990 के दशक के मध्य में जम्मू के डोडा-किश्तवाड़ जिलों में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों के खिलाफ ग्रामीणों को हथियार और प्रशिक्षण देने के लिए की गई थी। इसमें ग्रामीण और पुलिस अधिकारी शामिल होते हैं। 15 अगस्त, 2022 को जम्मू-कश्मीर ने आधिकारिक तौर पर वीडीजी को मंजूरी दे दी, उन्हें 4000-4,500 रुपये सेलरी दी जाती थी। इनका नेतृत्व विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) करते थे। वहीं वीडीसी योजना में केवल एसपीओ को भुगतान किया जाता था, लेकिन 2022 के बाद, वीडीजी के सभी सदस्यों को सरकार वित्तीय मदद देती है।  

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक केंद्र शासित प्रदेश में पहले 4,125 वीडीसी थे, जिन्हें सेना ने हथियार चलाने और खुफिया जानकारी जुटाने का प्रशिक्षण दिया था। वर्ष 2015 में पुलिस विभाग ने 60 वर्ष की आयु वाले वीडीसी सदस्यों को सेवा से अलग करने का निर्णय लिया था, लेकिन बाद में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के हस्तक्षेप के बाद इस फैसले को स्थगित कर दिया गया था।

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