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भाषा-बोध ही राष्ट्र-बोध है”: डॉ. अन्नाराम शर्मा

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बीकानेर, 11 दिसंबर।अखिल भारतीय साहित्य परिषद, बीकानेर इकाई ने भाषाई एकात्मता दिवस पर आयोजित परिचर्चा और काव्य गोष्ठी में भाषाई सौहार्द और राष्ट्रीय एकता पर व्यापक विमर्श किया। कार्यक्रम में शहर के साहित्यकार, शिक्षाविद और कई गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

परिचर्चा के मुख्य वक्ता साहित्यकार मूलचंद वोहरा ने भाषाई एकात्मता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि देश में बहुभाषी वातावरण होते हुए भी संवाद, सहयोग और आपसी समझ की भावना मजबूत बने, यह समय की आवश्यकता है। उन्होंने सुब्रमण्य भारती के साहित्य और विचारधारा का विस्तार से उल्लेख किया।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अन्नाराम शर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में भाषाओं ने किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की। उन्होंने भारतीय भाषाओं को “राष्ट्र-माला के सुमन” बताते हुए कहा कि भाषा-बोध ही राष्ट्र-बोध का आधार है। साहित्य परिषद देश की सभी भाषाओं के प्रति सम्मान की भावना रखती है व भारतीय भाषाओं के सृजन को पोषित करती है।

विशिष्ट अतिथि एवं वरिष्ठ साहित्यकार शिवराज भारतीय ने विभिन्न भारतीय भाषाओं के परस्पर सम्मान और उनके बीच संवाद-पुलों के निर्माण पर जोर दिया। राष्ट्रीय चेतना के प्रखर साहित्यकार सुब्रहमण्यम भारती के रचना संसार पर चर्चा करते हुए उनके राष्ट्रप्रेम की कविताओं का भी वाचन किया । उन्होंने मातृभाषा-गौरव को राष्ट्रीय शक्ति का मूल तत्व बताते हुए इसी भाव पर आधारित अपना राजस्थानी गीत ‘ ममता रो मिंदर मा ‘ प्रस्तुत किया।

इंजीनियर आशा शर्मा ने परिषद के रीवा अधिवेशन में राष्ट्रीय मंत्री द्वारा प्रस्तुत भाषाई एकता संबंधी पत्र का वाचन किया। वरिष्ठ लेखिका सरोज भाटी ने राजस्थानी दोहे सुनाए, जबकि डॉ. बसंती हर्ष ने स्वागत वक्तव्य के साथ काव्य पाठ किया।

कार्यक्रम का संचालन कर रहीं साहित्यकार-समालोचक मोनिका गौड़ ने प्रसिद्ध तमिल कवि और स्वतंत्रता सेनानी सुब्रह्मण्यम भारती के जीवन-वृत और उनके योगदान का विस्तृत परिचय दिया। भारती का जन्मदिवस ही भाषाई एकात्मता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कार्यक्रम के समापन पर साहित्य परिषद महानगर इकाई के महासचिव जितेंद्र राठौड़ ने सभी साहित्य-प्रेमियों, वक्ताओं और अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया।

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